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पत्थर में राम

पत्थर में राम नहीं है मूरख
राम तो तेरे चित में।
तेरे चित के राम से मिलकर
राम हुये पत्थर में।
राम हुये पत्थर में
कमल कीचड़ से निकला।
परस राम पद
पत्थर से निकली थी अहिल्या।
सुन्दरता तन में नहीं मूरख
सुन्दरता तेरे मन में।
तेरे मन की सुन्दरता से
सुन्दरता हुयी तन में।
सुन्दरता हुयी तन में
सीप से मोती निकला।
काले कोयले की खदान से
हीरा निकला।
जग में राम नहीं हैं मूरख
राम हैं तेरे चित में
तेरे चित के राम से मिलकर
राम हुये सारे जग में।
सारे जग में राम
राम में जग हैं सारे।
राम चित्त में तेरे
तू ही राम है प्यारे।

-लक्ष्मीनारायण गुप्त

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