मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!



 

 

 

कोंपलें
कितने ढलानें
चढ़ती उतरती है वह
पैदा होने के बाद ही से
फिसलती है वक्त की
तेज़ धार पर
बचती – बचाती अपना कौमार्य
छू लिया किसी ने समझ कर जंगली फूल
तो अपराध उसी का होगा
चख लिया किसी ने उसका सौंधा स्वाद
तो बेज़ायका हो जायेगी
ज़िन्दगी उसी की

खुद तो डरती ही है
अपनी आकार लेती देह से
कुछ मां डरा देती है
खुद तो उलझती है
अपने बदलते मनोभावों से
कुछ मां उलझा देती है
कब तक
रखना और देना होगा हिसाब
महीने की तारीखों का
मां को

इससे तो अच्छा होता
वह लड़का होती
या होती एक पेड़
या कोई मौसम
गर्वित होती
अपने बदलावों पर
छिपाने न पड़ते
अन्दर करवटें लेते परिवर्तन
न झुलसतीं ग़लीज़ निगाहों से
नई – नई कोंपलें
मुट्ठी में भींचने नहीं पड़ते
एक एक कर गिरते बचपन के पत्ते

-मनीषा कुलश्रेष्ठ

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com