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इक मां बिलखती है
इक मां बिलखती है
इधर भी, उधर भी ।
इक बेटा शहीद है
इधर भी, उधर भी ।
दिल तो जला बहुत
चूल्हा नही जला है
नफरत सुलगती है
इधर भी, उधर भी ।
हिम्मत तो नंगे होकर
बज़्म में आओ
पाकीज़गी का चोला
इधर भी, उधर भी ।
मानस की ज़ात एक
ग्रंथों में रह गई
दीन का ज़ोर है
इधर भी, उधर भी ।
रब्ब से डरें “अश्क” गर
शायद कुछ कर भी पाएं
फतवों ने किया नपुंसक
इधर भी, उधर भी ।

वैंकूवर सन की 30 जनवरी 2004 की एडीशन में दो चित्र साथ – साथ थे। एक में पैलेसटीन की फातिमा अटवी और दूसरे में इज़राईल की टसीपोरा एवीटान अपने बेटों के मारे जाने पर ज़ार – ज़ार रो रहीं थी।ये कविता मेरा एक छोटा सा यत्न है उनकी पीड़ा को सामने लाने का इस. अमानवीय जंग के खिलाफ आवाज़ उठाने का ।

-हरदेव सोढ़ी 'अश्क'
फरवरी 15‚ 2004

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