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आसमान में लड़की वह उतरती है सीढ़ियां जैसे उतरती है आसमान से वह भींचे रखती है मुट्ठी अपनी सख्ती से उसे डर है मुट्ठी से निकलते ही आसमान बिला जायेगा आसमान में वह मजबूती से पकड़े रखना चाहती है उन सब को जो अपने न होने पर भी है दिन भर मुट्ठी भींचे रखने के बाद शाम को पाती है वह सिर्फ याद है एक या एक मुट्ठी उसका चेहरा गायब हो गया है वह अब चेहरा नहीं मुट्ठी देखना चाहती है और वह आसमान जो उसके न होने पर भी होगा। |
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