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सभ्यता के अवशेष
फिर वह चाहे कितनी ही
असभ्य क्यों न रही हो
अवशेष हमेशा किसी न किसी
सभ्यता के ही कहाते हैं।
कितना अच्छा है आज से
पांच – दस हज़ार वर्ष
आगे चल कर
हमारे भी जीवाश्म
किसी सभ्यता की खोज कहायेंगे।

इन दिनों
इन दिनों हाथी सीधी चाल नहीं चलता
और न घोड़ा ढाई घर
न ऊंट टेढ़ा सरकता है
आगे – पीछे‚ दायें – बायें
अब राजा को शह लगती है
और न ही उसकी होती है मात
मगर आज भी
हर तरह की चाल चलता है वज़ीर
और हाँ आज भी मरने को तैयार
प्यादे खड़े हैं अगली पंक्ति में

विडम्बना
फिर एक बूंद पानी भी
किसी काम न आ सका
अपने किस्मत पर
उसने खूब बहाये खारे आंसू
समन्दर से मिलकर नदी को क्या मिला?
 

समय साक्षी है
समय साक्षी है तुम्हारी हर भूल
हर अपराध‚ हर पाप का
परन्तु वह तुम्हें कभी
किसी कटघरे में नहीं खड़ा करेगा
और न ही देगा
तुम्हारे खिलाफ गवाही कोई
मगर तब भी
जीवन में कोई फैसला
जब तुम्हें अपने हक में ना लगे
तो समझ जाना
कोई पुराना हिसाब था उसका
आज चुकता हो गया है।

अभी तो
अभी तो शब्द उतरे हैं
पन्नों पर कविता बन कर

किन्तु जब वे धार बन कर
चलेंगे सड़कों पर्र घूमेंगे गलियों में
तब तुम्हारा कोई अन्याय
उनके सामने ठहर नहीं पायेगा

और न ही उनके आगे
तुम्हारा कोई झूठ चलेगा
शब्दों में आंच हो तो
उन्हें तलवार बनते देर नहीं लगती।

-क्रान्ति

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