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गीत
मैं और मौत

मौत तुम्हारे नाम से आखिर‚ दुनियां क्यों डरती है?
मौत तम्हारे हाथों ही ये‚ दुनियां क्यों मरती है?

मौत तू सुंदर है कि असुंदर‚ अबतक जान न पाया‚
मौत तुम्हारे रंग रूप को‚ मैं पहचान न पाया‚मौत तुम्हारे दरस की हठ में‚ ये रूह क्यों रहती है?

मौत तू जबभी मिलने आना‚ यौवन काल में आना‚
मौत तू कोई लोरी या फिर‚ गीत प्यार का गाना‚
मौत ये दुनियां हर प्रेमी को‚ पागल क्यों कहती है?

मौत तू मेरा अंत नहीं है‚ मेरा जनम नहीं है‚
मौत तू सबसे बड़ा सत्य है‚ कोई वहम नहीं है‚
मौत तू मुझको आखिर इतनी‚प्यारी क्यों लगती है?

-अशोक कुमार वशिष्ठ

ग़ज़ल
घरों में दौलत बढ़ती गई
दिलों में ग़ुर्बत बढ़ती गई
फ़ासले उतने ही बढ़ते गए
जितनी क़ुर्बत बढ़ती गई
सच के दाम यहां मिल न सके
झूठ की कीमत बढ़ती गई
बावजूद तेरे तग़ाफुल के
मेरी मुहब्बत बढ़ती गई
वो जब निकल अमन के लिये
लोगों में दहशत बढ़ती गई
जब जब बढ़ी मेरी आमदनी
हर बार जरूरत बढ़ती गई
जीने का लुत्फ़ तो घटता गया
जीने की चाहत बढ़ती गई

-विजय कुमार सुखवानी

 

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