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ग़ज़ल
आंधियों में इक दिया जलता रहा
देखकर ये हौसला मिलता रहा
आँधियों में इक दिया जलता रहा

डूबने का गम उसे होता नहीं
जो बशर तूफान में पलता रहा

मंज़िलों को एक दिन पा जायेगा
राहरौ गर राह में चलता रहा

रूह का सदियों से जारी है सफर
जिस्म फानी है सदा जलता रहा

जब खुदा का आसरा ' साधक' मिला
आ के खतरा जीस्त में टलता रहा

 



 

 

ग़ज़ल
हमें इन दुखों ने निखारा तो है
जहां में किसी का सहारा तो है
ज़माने में कोई हमारा तो है

अंधेरा अगर है कोई गम नहीं
फलक पे चमकता सितारा तो है

न सुन पाए तू ये अलग बात है
तिरा नाम हमने पुकारा तो है

यही बहुत है ज़िन्दगी के लिये
तिरे साथ इक पल गुज़ारा तो है

किनारे पे लग जाये कश्ती मिरी
नदी में इसे अब उतारा तो है

गिला रंज का क्यों किसी से करें
हमें इन दुखों ने निखारा तो है

— जगदीश जोशी ' साधक'


 

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