मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | फीचर | बच्चों की दुनिया भक्ति-काल धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन स्वास्थ्य | साहित्य कोष |

 

 Home | Boloji | Kabir | Writers | Contribute | Search | FeedbackContact | Share this Page!

 

गज़ल
छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग
छोटी सी बिगड़ी बात को सुलझा रहे हैं लोग
ये और बात है कि यूं, उलझा रहे हैं लोग
चर्चा तुम्हारा बज्म में ग़ैरों के इर्द – गिर्द
कुछ इस तरह से दिल मेरा बहला रहे हैं लोग
अरमां नये, साहिल नये, सब सिलसिले नये
उजड़े हुए दयार से, दिखला रहे हैं लोग
कहते हैं कभी इश्क़ था, अब रख – रखाव है
फिर आज क्यों यूं देख कर, शर्मा रहे हैं लोग
हमने ख़ुद अपने जुर्म का इक़रार कर लिया
अब क्यों "रज़ा" से इस क़दर कतरा रहे हैं लोग

-अब्बास रज़ा अल्वी
 

गीत
फिर तेज़ हवा का
झोंका
फिर तेज़ हवा का यह
झोंका सावन की याद दिलाता है
शायद तुमने फिर याद किया चिट्ठी का रंग बतलाता है
शायद अमिया के पेडों पर फिर बौर नया लग आया हो
कोयल की गूँजी कू कू ने हर गीत मेरा दोहराया हो
फिर पक्षी डाल पे डोला हो हर ग़ुन्चा ग़ुन्चा झूला हो
बीते बचपन की यादों में क्यों बिछड़ा पल तड़पाता है
फिर तेज़ हवा का यह
झोंका सावन की याद दिलाता है
शायद तुमने फिर याद किया
चिठ्ठ का रंग बतलाता है
शायद पीपल की छावों में एक याद सताने लगती हो
बीते बचपन की बातों में यह बात रुलाने लगती हो

क्यों रिश्ते नाते टूट गये क्यों साथी सारे छूट गये
क़िस्मत ने कैसी चाल चली क्यों हर पल तुम्हें रुलाता है
फिर तेज़ हवा का यह
झोंका सावन की याद दिलाता है
शायद तुमने फिर याद किया चिट्ठी का रंग बतलाता है

-अब्बास रज़ा अल्वी

Hindinest is a website for creative minds, who prefer to express their views to Hindi speaking masses of India.

 

 

मुखपृष्ठ  |  कहानी कविता | कार्टून कार्यशाला कैशोर्य चित्र-लेख |  दृष्टिकोण नृत्य निबन्ध देस-परदेस परिवार | बच्चों की दुनियाभक्ति-काल डायरी | धर्म रसोई लेखक व्यक्तित्व व्यंग्य विविधा |  संस्मरण | साक्षात्कार | सृजन साहित्य कोष |
 

(c) HindiNest.com 1999-2021 All Rights Reserved.
Privacy Policy | Disclaimer
Contact : hindinest@gmail.com