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बेबस बेवतन
थका हुआ हूँ इसी रास्तो में रहने दे
मुझे ए दोस्त मेरे दिल का हाल कहने दे.

मै जिंदगी से और लड नहीं सकता
मेरा वजूद जहाँ है वहीं पे रहने दे.

मै मंजिलों से नहीं रास्तों से डरता हूँ
मुझ पे एहसान कर और दर किनार रहने दे.

जमीन वो कि जो बिन मेरे आज अकेली है
मुझे तन्हाइयों के साथ अब तू रहने दे.

सफर खतम हुआ जिंदगी भी खतम ही समझो
कब्र मेरी खुदी जिस पार वहीं पे सोने दे.
 
मैं इस कहानी का किरदार हो नहीं सकता
मुझे इस देश में परदेश का ही रहने दे.
 
मैं जानता हूँ कि मुझको भूला दिया होगा
मगर वो याद–ए–वतन जेहन मे रहने दे.

-समीर
 

खोया मुसाफिर
बहुत खुश हूँ, फिर भी न जाने क्यूँ
आँखों में एक नमीं सी लगे
मेरी हसरतों के महल के नीचे
खिसकती जमीं सी लगे.
 
सब कुछ तो पा लिया मैने
फिर भी एक कमी सी लगे
मेरे दिल के आइने पर
यादों की कुछ धूल जमीं सी लगे
 
जिंदा हूँ यह एहसास तो है फिर भी
अपनी धडकन कुछ थमीं सी लगे
खुद से नाराज होता हूँ जब भी
जिंदगी मुझे अजनबी सी लगे .

कुछ चिराग जलाने होंगे दिन मे
सूरज की रोशनी अब कुछ कम सी लगे
चलो उस पार चलते हैं
जहाँ की हवा कुछ अपनी सी लगे

-समीर
 

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