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दीप-द्वं राजकोट के
परकोटे पर सुन ऐ
दीपक दीन-हीन किरोसीन
की कृपा से भोग की
लालसा में
अमित कुमार
सिंह मोहने का उपक्रम गांव में पास में
बैठी मेरी पत्नी ने मैं उस
बच्ची की ओर एक निश्छल
आत्मश्लाघा के भाव से मेरी
पत्नी ने उससे कहा पत्नी उसे
लालच देने हेतु, तब भी उसे
सकुचाते देखकर और हमारी
हंसी से कमरा गूंज उठा पत्नी हंसते हुए डुपट्टा लाई, जिसको सिर
पर ओढ़कर वह ठुमका लगाते हुए, हंसी के
फव्वारों के बीच
|
जब
गुजर जाएगा वह, जिसे,
मुझसे
दूर कहाँ जाओगे उर्फ जिजिविषा
पाताल तो
पाताल है मैं जितनी
तरल हूँ विरल इतनी
कि सांसों में बस जाऊंगी रोज सुबह
दरवाजे पर दस्तक देती हूँ
अशोक प्रितमानी
उठो
तुम्हें जीना है उठो कि उन
आंखों को पोंछो, जिनसे
आंसू छलक रहे हैं, उठो कि उन
भूखों को पूजो, जो
फांकों से खेल रहे हैं, उठो कि
उनको खुशी खिलाओ, जो
मुस्काना भूल गए हैं, उठो कि
उनको गले लगाओ, जो अपनो
से बिछड़ गए हैं, उठो कि
उनसे रिश्ता जोड़ो, जो
रिश्तों से टूट गए हैं, उठो कि
उनको जीना सिखाओ, जो
जीवन से हार रहे हैं, उठो कि
उनको इतना बता दो,
दुनियां उनके साथ खड़ी है,
उठो कि उनको कसम खिला दो,
हमको जीना ही जीना है, उठो कि
उनको यकीं दिला दो, बुरे
वक्त से जो भी लड़ा है, |
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