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नववर्ष की कविताएं
नववर्ष का संदेश
बदला समय
बदल गया है
कलैन्डर,
लो भाई आ गया है
नये साल का
उत्साह सबके अन्दर।

लेकर नये संकल्प
और संदेश,
आओ करे हम
नये वर्ष
का श्रीगणेश।

न हो अब कोई
बच्चा भूखा,
चाहे पड़े दु:खा
या सूखा।

स्वप्न यह
हमने है देखा,
सबके हाथों में
हो लक्ष्मी की रेखा। भटकों को
मिले किनारा जीवन का ये मंत्र
तुम भी अपनाना,
अपने संग
एक गरीब को
आगे बढ़ाना।
असहाय को सहारा
फैले चारों ओर भाईचारा,
देखो रह न जाये
फिर कोई
दु:खियारा, बेचारा।

नव
वर्ष पर लेकर
ये पावन उद्देश्य
आओ फैलाये
हम चारो ओर
मानवता का संदेश,
मिटा कर आपस
के सारे क्लेश।

अमित कुमार सिंह

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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ये तुम्हारी सुबह है
सुबह सुबह सूरज की नन्हीं किरणें
खिले हुए चेहरों पर उतर आयी हैं
खिड़कियों की दराज से आती हवा की शुद्धता
फेंफड़ों में ताकत की तरह भर जाती है

खेतों की तरफ जा रहे हैं किसान
गांव त्यौहार की तैयारी कर रहा है
कारखानों से चू रहा है मजदूरों का पसीना
चूल्हों को इत्मिनान है
अगले दिन की रोटी का

टहल कर घर लौट रहे हैं पिताजी
घर पांव छू कर उनका प्रणाम कर रहा
सुबह की चाय के साथ अकबार
बेहतर दिनों के स्वाद की तरह लग रहा है

कलम के आस पास जुटे हुए हैं अक्षर
वर्षों बाद एक प्रेम कविता के लिये
आग्रह कर रहे हैं
ये तुम्हारी सुबह है

तुम्हारी सुबह लिखने के लिये
दिन डुबने के बाद से ही
लैम्पपोस्ट की रोशनी में बैठकर
कविताएं पढ़ रहा हूँ.

प्रदीप मिश्र
 


एक जनवरी की आधी रात को

एक ने जूठन फेंकने से पहले
केक के बचे हुए टुकड़े को
संभाल कर रख लिया किनारे

दूसरा जो दारू के गिलास धो रहा था
खम्गाल का पहला पानी अलग बोतल में
इकट्ठा कर रहा था

तीसरे ने
नववर्ष की पार्टी की तैयारी करते समय
कुछ मोमबत्तियां और पटाखे
अपनी जेब के हवाले कर लिये थे

तीनों ने एक जनवरी की आधी रात को

पटाखे इस तरह फोड़े
जैसे जता रहे हों कि
जिसे लोगों ने कल मनाया
वह झूठ था
आज है असली नववर्ष

दारू की धोवन से भरी बोतल का
ढक्कन यूं खाल जैसे शैम्पेन की बोतल हो
वे पी रहे थे
कॉकटेल का मज़ा ले रहे थे

जूठे केक के टुकड़े खाते हुए
उन्होंने एक दूसरे को
नववर्ष की शुभकामनाएं दीं

पीढ़ियों से वे सारे त्यौहार
इसी तरह मनाते आ रहे हैं
कैलेण्डर और पंचांग को
चुनौती देते हुए - से!

 

प्रदीप मिश्र

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