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ग़ज़ल 
सूरज को जुस्तजू है

उनकी तरफ से जीने की हमको दुआ मिले
हम खुद ही चाहते हैं कि हमको सज़ा मिले
 

चलता है सुबहो - शाम अंधेरों की राह पर
सूरज को जुस्तजू है कि कोई नक्शे - पा मिले
 

तकता है हर किसी को बड़ी हसरतों के साथ
आईना इस तलाश में है कि कोई आईना मिले
 

मुद्दत हुई कि उस घड़ी हमसे मिले थे वो
इंसा के लिबास में जैसे खुदा मिले
 

लो आज भी गिला है कि हम पूछते नहीं
जब भी मिले वो हमसे यूं ही खफा मिले

लो गम मिला, अलम मिला, आप जब मिले
आज़ुर्दा दिल को आपसे अब क्या जज़ा मिले

 

 

 

-प्रो. मोहम्मद ज़मां आज़ुर्दा
 

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