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ग़जल
देखने दुनिया को सीधा
, खुद को तिरछा कीजिये
भागती मंजिल है तेरी
, कुछ तो पीछा कीजिये.

राह ये अंजान, मिलती ठोकरें हैं हर कदम
आसमां को ताकती
, नजरों को नीचा कीजिये.

आदमी से आदमी ही डर रहा है इस कदर
जानवर को साथ ले
, जीवन गुजारा कीजिये.

आ गये जो आंख मे, उन आंसूओं को रोकिये
इस तरह ना उस चमन को आप सींचा
कीजिये.

 

-समीर लाल 'समीर'

 


 

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