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फागुनी बसन्त 

 

 

 

 

 

महक महक उठा मन फागुनी बसन्त में
बहक बहक उठा तन फागुनी बसन्त में

समझ नहीं पाया क्या जीवन अभिशाप है
उलझा सा जीवन पथ पुण्य है या पाप है

तभी ये बयार आई बसन्ती गीत लिए
कानों में गुनगुनाई, नयनों में प्रीत लिए
फूंक दिए प्राण फिर जीवन पंथ में

महक महक उठा मन फागुनी बसन्त में
बहक बहक उठा तन फागुनी बसन्त में

पीताम्बर ओढे हुए धरती मधुमास है
अंबर की छांव तले छाया उल्हास है
कण कण में घुला हुआ जीवन का सार है
जड
र चेतन का सुखमय आधार है
तृप्त हुआ अन्तरमन आदि और अनन्त में

महक महक उठा मन फागुनी बसन्त में
बहक बहक उठा तन फागुनी बसन्त में

 

-श्याम '' साहिल''

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