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गुल्लक बिटिया बड़े जतन से सिक्के जोड़ती कान से सटाकर देखती बजाकर गुल्लक में सिक्के खन-खन करते पिता के सामने गुल्लक रखती उसकी हथेली पर गुल्लक में भरने एक सिक्का और रखते पिता बिटिया जाती गुल्लक छुपाती माँ हँसती बिटिया बड़ी हो चुकी, ब्याह हो चुका जा चुकी अपने घर कहाँ आ पाती है पिता के घर चिट्ठियाँ आती हैं जब कोई चिट्ठी उसकी आती है घर में बसी उसकी यादें गुल्लक में भरे सिक्कों-सी खन-खन बजती हैं |
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