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सावन बहका है

लो, सावन बहका है
बूंदों पर है खुमार, मनुवा भी बहका है |

बागों में मेले हैं
फूलों के ठेले हैं,
झूलों के मौसम में
साथी अलबेले हैं |

कलियों पर है उभार, भँवरा भी चहका है |

ऋतुएँ जो झाँक रही
मौसम को आँक रही,
धरती की चूनर पर
गोटे को टांक रही |

उपवन पर हो सवार, अंबुआ भी लहका है |

कोयलिया टेर रही
बदली को हेर रही,
विरहन की आँखों को
आशाएँ घेर रही |

यौवन पर है निखार, तन-मन भी दहका है |


- रजनी मोरवाल
 

 

 

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