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थोड़ा वक्त और बर्बाद करें...

चलो बहकी-बहकी बात करें...
थोड़ा वक्त और बर्बाद करें...
मेरे बड़बोलेपन को तुम थाम लो, कस के...
तुम्हारी ज़ुबान फिसले तो मैं सम्हाल लूं...
तुम अपनी बात का सर, पैर काट दो...
मैं अपनी बात का वज़न घटा दूं...
तुम्हारी बात भी, मासूम बनकर तुतलाए...
मेरी भी बात का थोड़ा फिगर ठीक हो जाए...
तुम अपने झूठ का तड़का लगा दो...
मैं अपने सच की कड़वाहट दूर कर दूं..
मैं तुम्हारी ज़ुबान पे लगा ताला खोल दूं...
तुम फिर मेरी आवाज़ में मदहोश हो जाओ...
मेरी बात को बीच में काटकर, तुम अपनी पुरानी रट शुरू कर दो...
मैं तुम्हारी रट को अनसुना करके, तुम्हारे खूबसूरत लबों को घूरूं...
एक बार फिर मेरी बातों के, तुम गलत मायने निकालो..
एक बार फिर, मै तुम्हारे नागवार मायनों पर सफाई दूं...
मेरे कानों में, अपने होठों को सटाकर कू कर दो....
मुझे कान खुजाते देख, तुम अपनी मुस्कुराहट मुझे सौंप दो....
एक बार फिर चलो, इत्मिनान से बातें करें...
शाम का वक्त हो...
वो बिना किसी डिजाइन का, ओरिजिनल वाइट कप हो..
वो सुर्ख तेज पत्ती वाली चाय हो...
चलो अपने बेडरूम के सन्नाटे को दूर करें...
चलो बहकी-बहकी बात करें...
थोड़ा वक्त और बर्बाद करें...
 

 

-नीरज मिश्रा
28 नवंबर 2014  


 

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