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मेरी चदरिया

उस सुबह , जब मैंने अपनी चादर उठाई तो
दिखाइ दिया एक नन्ह सा छेद,
चादर के आर पार,मेरी नीन्द का परिणाम
वह दिन मेरे लिए रेशमी धागों से उलझने का साबित हुआ
अगली नीन्द से पहले मेरे पास एक खिड़की थी
जिसमें से दिखे कई नए सपने

दूसरे दिन फिर एक नया छेद
इस बार रेशम का साथ दिया रंगों ने
रात से पहले तैयार था एक दरवाजा

नीन्द को बहाना मिल गया
खिड़की झाँकने की जगह दरवाजे से निकल
रात भर भटकने का
लेकिन हर सुबह एक नए छेद के साथ आती रही
दुपहर रेशम, रंगो और कूंचियों में व्यस्त रही

लेकिन अब मेरी चदरिया में विशाल आँगन, उस में घना बरगद
बरगद पर परिन्दे, और परिन्दों की चोंच में लाल सितारे
सूरज चाँद अब भी दूर थे

मेरी सुबहें छेद को तलाशने लगी
जिससे बुन जाए सूरज चाँद
इस आदम ब्रह्माण्ड के ही नहीं
उस पार के पार
अनेकों ब्रह्माण्डों के

और फिर अन्त में एक ऐसा छेद
जिससे निकल मैं समा जाऊ
अपरम्पार

छिद्र रहित आलोक में
 

-रति सक्सेना
7 दिसंबर 2014

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