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कुछ बचा कर रख लेती थी, माँ

कुछ बचा कर रख लेती थी, माँ

कैसी भी परिस्थिति में
किसी भी दुविधा में खाली नहीं होता था,
माँ का भण्डार, थोड़ा बहुत बचा कर रख लेती थी
तेल, अनाज, दाल या अचार
भड़िया में नमक के दानें, मर्तबान में गुड़
जी लेते थे सदियाँ, उस जादुई कोठरी में
सिम सिम कहे बिना, जिसमें से माँ निकाल ले आती थीं
थोड़ा बहुत जरूरत का सामान, किसी भी समय

माँ बचा कर रखती थीं, थोड़ा बहुत माँस
कमर और कूल्हों पर
एक के बाद एक जनमते सात बच्चों की
भूख के लिये, जो नही कर सकती थी दुर्दिन का साक्षात्कार
और उन्हीं गुदगदे अहसासों पर
सोई सुख से उसकी अगली पीढ़ी

बचा कर रखती थी, वे किस्से कहानियाँ
अनजानी धुने, सपनों की सीढ़ियाँ
बच्चों के उन बच्चों के लिये, जो
बड़े होने तक ठिठके रहे नानी की कहानियों में

माँ ने आखिरी समय बचा कर रखी कुछ साँसें
बेटियों के मैका बनाये रख पाने के लिये
पानी में पड़ी शक्कर की बोरी सी घुलती रही
और फिर छोड़ गई चासनी सी मीठी अनगिनत यादें

रति सक्सेना
7 दिसंबर 2014

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