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रूमानियत

मेरे अंतरंग
यह बस मैं या कि तुम
जान सकते हो.
जो लोग खण्डहर - खण्डहर इतिहास की
छाँव पल रहे होते हैं,
अजब रुमानियत उनमें रिस आती है...
ऎसी रूमानियत/ वो धुँधलका
जिसमें ज़िन्दगी की रेत भी
पिघलते सोने की नदी हो जाती है
उन्हें पता तक नहीं होता...
कैसी अनंतता में
जीने का एक यकीन लिए
वो बड़े हो रहे हैं.
वो पाल रहे हैं
विषधरों से भरे आँगन में
कुछ ललमुनिया – सपन
इतिहास पलट देने का
सूर्यपुष्प को अलकपाश में
गूँथ लेने का


-मनीषा कुलश्रेष्ठ


7 दिसम्बर 2014

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