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अवनीश गौतम की कविताये
दुख

मैने पूछा
तुम्हारे दुख के बिरवे मे
पतझर नही आता क्या?

वह बोली
पतझर तो आता है
लेकिन फिर
नये पत्ते भी आ जाते है

मैने पूछा
फिर फूल भी आते होंगे
वह बोली
फूल ही नहीँ फल भी आते है
रुको कुछ दिन
चख कर जाना तुम भी

मै रुका नही
कैसे रुकता
कोई नही रुका था पहले
न पिता न पितामह.

वो और वो
वो कपडोँ की तरह उसे पहनती है वो बिस्तर की तरह उसे बिछाता है वो खुश्बू की तरह सूंघती है
वो धुये की तरह उसे उडाता है वो बालोँ की तरह उसे सुलझाती है वो जालो की तरह उसे उलझाता है
वो हज़ार तरह की शिकायते करती है
तो वो दो हज़ार तरह के ताने देता है
पर सच्ची बात तो यह है कि
वो प्यार करना जानती है
और वो प्यार करना चाहता है

आपके जैसा
1
हमारे और आपके आसुओं में एक फर्क है
हमारे आंसू आपके आसुंओं की तरह गोल नहीं,
नुकीले हैं...तीर की तरह नुकीले..
एक दिन हम आपकी दुनिया के
इस गलीज़ मुह को
अपने तीरोँ से बीन्ध देंगे
2
आपको गुस्सा अच्छा नही लगता
लेकिन आपको गुस्सा आता है
आपको घिन अच्छी नहीं लगती
लेकिन आपको घिन आती है
मैं आता हूँ तो आपको गुस्सा आता है
मैं आता हूँ तो आपको घिन आती है
वैसे आती है तो आए मेरी बला से
मैं तो अब आता हूँ
आपका एक एक दरवाजा
आपका एक एक ताला तोड़ते हुए
मैं तो अब आता हूँ
ये घर मेरा है और
अब मैं इसमे रहने आता हूँ
कब्जेदारों!
जो तुमने जला रखे हैं अपनी महान
संस्कृति के हवन कुंड
ए पवित्र देवताओ उन्ही में तुम्हारी हुंडियाँ
जलाने आता हूँ
ये जो तुमने चमका रखी हैं
अपनी झूठी और विशाल छवियों को प्रक्षेपित
करती विशाल काँच की दीवारें
उनको अपनी चीत्कारों से गिराने आता हूँ
ड्योढ़ी से ले कर गुसलखाने तक
अपना दावा जताने आता हूँ
अपने घर को मैं अपना बनाने आता हूँ
क्या करूँ
मुझे भी गुस्सा अच्छा नही लगता
लेकिन मुझे भी गुस्सा आता है
3
आप कहते हैं
मैं प्यार की बात नहीं करता
आप पर भरोसा नही करता
तो आप ही बताएँ
आप पर भरोसा कैसे किया जाए
आपने प्यार से मुझे शक्कर कहा
और अपने दूध में घोल कर मुझे गायब कर दिया
गायब क्या कर दिया आप तो मुझे पी ही गये
फिर आपने मुझे नमक कहा और
अपनी दाल में डाल कर मुझे गायब कर दिया
गायब क्या कर दिया आप तो मुझे खा ही गये
आपको धोखा पसंद नहीं
लेकिन आपको धोखा देना आता है
मुझे भी धोखा देना पसंद नहीं
लेकिन मैं भी सीख लूँगा
सब्र कीजिए एक दिन
आपको वैसा ही प्यार करूँगा
जैसे आपने मुझे किया

मैं, तू और सदियां
1.
तू सदियों से उजाले मे रहा है
मै सदियों से अंधेरे में
आ पास आ, गले मिल
उजाला अंधेरे से मिलेगा
तो भोर का रंग बनेगा
आ, भोर करें
2.
तू सदियों से मुझे रुलाता रहा है
मैं सदियों से तुझे हँसाता रहा हूं
चल तू भी हंसना बंद कर
मैं भी रोना भूल जाता हूं
तू भी सदियां उतार के मिल
मैं भी सदियां उतार के मिलता हूं
आ मिल दिगंबर
3.
तेरे पास सदियों की घिन है
मेरे पास सदियों का गुस्सा
आ एक खेल खेले
तू अपनी घिन थूक
मैं अपना गुस्सा थूकता हूँ
4.
देख सदियों के बोझ से झुकी जा रही है
तेरी भी पीठ, मेरी भी पीठ
चल अब उतार कर फेक दें ये बोझ
आ अब रीढ़ सीधी करें

छाता
आपके पास छाता है
आपके पास लाल रंग का छाता है
नारंगी रंग का, हरे रंग का, नीले रंग का
और पीले रंग का भी छाता है
आपके पास सतरंगी छाता है
आप लाल रंग का छाता लगाते है
आपका चेहरा लाल हो जाता है
आप हरे रंग का छाता लगाते है
आपका चेहरा हरा हो जाता है
आपके पास बहुत सारे छाते है
जिन्हे आप बदल बदल कर लगाते है
आप उबते नहीँ,
उबते हैँ तो नया छाता ले आते है
आपके दोस्तो के पास भी हैँ बहुत सारे छाते
आप सब मिल कर
रंग बदलने वाला खेल खेलते है
मै दूर खड़ा
आपका यह खेल देखता हूं
मेरे पास कोई छाता नहीँ
धूप बढती जा रही है
मेरा चेहरा काला होता जा रहा है
और गर्म भी.

- अवनीश गौतम

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