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समझौता तुझे दोष कैसे दूँ प्रिये मैं तिनका हूँ तू है प्रवाह कैसे कह दूँ तू तेज है मैं भी चाह सकता था तेज़ धारा से बचना चट्टान बन तुझे रोकना तेरी धारा को दिशा दिखाना कर सकता था मैं यह प्रयत्न लेकिन फिर तेरा मेरा साथ साथ न कहलाता यह तो हो जाती बाज़ी जीत हार की दो प्रतिद्वंदियों में हमने तो साथ रहने का साथ चलने का वादा किया है तू प्रवाह है तो तेरे अनुरूप मुझे धारण करना है रूप ताकि हम बह सकें साथ साथ चाहे चट्टान बनने की चाह और संभावना हो फिर भी दबा कर उसे क्योंकि साथ चलना है संग रहना है।
एक गज़ल |
हरे पात और कांटे |
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