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(प्रस्तुत
कथा श्री रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों को माया का प्रभाव समझाने के लिए
सुनाया करते थे।)
श्रोताओ सुनो यह पुरानी कहानी |
जीवन का संगीत जीवन का संगीत बज रहा अविरल अक्षुण्ण तुम भी इसमें अपनी तान मिला दो। कान्हा का यह रास चल रहा निशिदिन तुम भी इसमें अपने कदम मिला दो। ‘‘रस ही है परमात्मा.,’’ कहती है श्रुति आस्वादन में इसके अपना चित्त रमा दो। भिन्न नहीं जगदीश्वर कोई इस जगती से इस जग के अर्चन की अपनी वृत्ति बना लो। नहीं बहो प्रतिकूल जगत की इस गंगा के इस गंगोदक से ही अपनी प्यास बुझा लो। “ईशावास्यं इदं सर्वं,” वेद वाक्य यह इस कथनी को तुम अब अपना चरित बना लो। कब उर से
कविता उठती है
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