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समय सरिता



हर क्षण‚ हर क्षण
समय सरिता बहती है कल–कल
दूर दूर तक ना कोई किनारा
ना ही कोई ठहराव
ना ही कोई मांझी और ना ही कोई नाव
उदगम है दिग् दिगन्त् और यही इसका अन्त
बस इसमें तो बहते जाओ‚ बहते जाओ
हर क्षण‚ हर क्षण
समय सरिता बहती है कल–कल
कहीं तो कुछ मिलेगा
कुछ नहीं तो विप्लव मिलेगा
अशांत और व्यथित भंवरो से
शांत और निर्मल लहरों तक
पुनश्च लौटकर वहीं तक आओ
और फिर से लौटकर वहीं तक जाओ
हर क्षण‚ हर क्षण
समय सरिता बहती है कल–कल
जब प्रज्ञा के घंटे बोलें
आत्मसूर्य उदित हो जाये
मनमंदिर के पट खुलें
और मानसमूर्ति पावन हो जाये
समयसरिता बने सरस्वती
तब इसमें ही विलुप्त हो जाओ
तब तक नहीं तो बहते जाओ बहते जाओ
हर क्षण हर क्षण
समय सरिता बहती है कल कल

– दीपक रस्तोगी

सूरज का गुस्सा

किन गलतियों की सजा दे रहे हो
ओ सूरज देव
क्यों इतना गरमाते हो

हस्तिनापुर के किस्से इतिहास हुए
ओ भास्कर
क्यों आज आगबबूला होते हो

आप का बैर तो था अर्जुन से
या फिर कृष्ण से
क्यों बेवजहा धरती को तड़पाते हो

राधेय भी तो थे अधर्म में शामिल
ओ कर्णपिता
क्यों पुत्रप्रेम में अंधाते हो

माफ भी तो कर सकते हो
ओ स्वयंप्रकाशित
क्यों प्रतिशोध में भभकते हो

– डॉ सी एस शाह
 

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