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भाषा हाय मैं सच कहती हूँ मैं इसे समझी नहीं नहीं समझी बिलकुल नहीं समझी यह सारे संसार से पृथक पद्धत्ति का जो तुम्हारा प्यार है ना इसकी भाषा समझ पाना क्या इतना सरल है तिस पर मैं बावरी जो तुम्हारे पीछे साधारण भाषा भी इस हद तक भूल गई है। – धरमवीर भारती |
स्व से स्वयं तक
मेरे स्व को स्वयं की ही समझ नहीं और स्वयं में स्वयं को खोजता रहा हूं अब तक‚ नहीं जानता कि धरातल से आकाश की यह दूरी कैसे तय होगी ओ‚ मेरे पूरक तुम माध्यम बन सको तो अपना स्व स्वयं में तुम्हें ढूंढ कर स्वयं को खोज सकूं मैं। |
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