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कैसा तेरा प्यार
मोम काया को मिले पथ खुरदरे। डबडबाये नैन हैं आँसू झरे।। कागज़ी सम्बन्ध ही जोडे. गये। रेशमी अनुबन्ध सब तोड़े गये।। शब्द भेदी शर चुभे हैं विषभरे। डबडबाये नैन हैं आँसू झरे।। हम नहीं वो जो सितारों से जड़े। शखं–सीपी से रहे तट पर पडे.।। तृषा के हाथों हुए हम अधमरे। डबडबाये नैन हैं आँसू झरे।। हर चरण हर मोड़ में भटकाव है। शून्य ही बस नियति का बर्ताव है।। मुक्त पंखो को मिले हैं कटघरे। डबडबाये नैन हैं आँसू झरे।। समय के विस्तार में हम कौन हैं? प्रश्न अनसुलझे दिशायें मौन हैं।। स्वप्न फिर भी छेड़ते हैं सिरफिरे। डबडबाये नैन हैं आँसू झरे।।
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पिन्जरा
पिन्जरा ही मैं बदल सकी, जब–जब अवकाश मिला। मुक्त गगन की बात चली, तो आखें भर आयीं।। जब–जब सरजू पार, किसी मैना ने टिहुँक भरी। दूर कहीं अधबने, नीड़ की सुधियां घिर आयीं।। यों बबूल वन में भी, कचनार खिले होंगे। किन्तु याद वह तब आया, जब सांझ उतर आयी।। शायद ही अब, इस पड़ाव से आगे जा पाऊँ। क्योकि यहीं चन्दन से, तन की गाछें मुरझायीं।। चन्द शब्दों से अधिक, हम कुछ भी कह पाये नहीं। और कितना चाहते हैं, ये बता पाये नहीं ।। बस हवा में बात करके, जिन्दगी कटती कहां। टूटे सपने देखकर, ख्वाहिशें मिटती कहां।। इस हकीकत से कभी हम, जबकि कतराये नहीं। और कितना चाहते हैं, ये बता पाये नहीं ।। मान लो हर राज दुनिया का, पता कर भी लिया। मुक्ति का एहसास भी यदि, जी लिया तो क्या जिया।। ये करिश्में भी किसी के, काम तो आये नहीं। और कितना चाहते हैं, ये बता पाये नहीं ।। जब कभी भी बात अपनी, साफगोई में फंसी। तो रही दो आंसुओं में, डूबने की बेबसी ।। मौन से ज्यादा सुरीले, गीत भी गाये नहीं ।। |
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