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गज़ल
खुशी की राह में‚
ग़म सैकड़ों मिले हैं मुझे‚
तूने पूजा जिसे‚
वो जिंदगी सज़ा है मुझे‚
तूने रह–रह के सलीके से पुकारा मुझको‚
पर तेरा कोई करम‚
अब न गवारा मुझको‚
फ़ना के बाद भी‚
चाहत ये रहेगी मुझको‚
तू रहे शाद और आबाद‚
यही हसरत मुझको‚
खुशी की…
चांद तारे भी कहीं दूर टिमटिमाते हैं‚
प्यार के नक्श‚
निगाहों में झिलमिलाते हैं‚
ज़िदगी अब न जला‚
राहे तमन्ना में चराग़‚
इनके साये‚
क्यूं न जाने मुझे झुलसाते है‚
खुशी की…
पलट के लौट के आना पड़ेगा तब मुझको‚
तेरी बेकल सदायें‚
जब मुझे पुकारेगी‚
ज़मीं से आसमां के बीच‚
ऐ मेरे हमदम‚
होगी दुश्वारियां‚
मगर न रोक पायेगी‚
किसी बेचैन रूह की मानिंद‚
मैं तेरे दामन से लिपट जाऊंगी‚
और कुहासे की तरह जानेजहां आगोश में तेरे‚
मैं सिमट जाऊंगी‚
चंद लम्हों के लिए ही सही‚
ऐ जाने वफा‚
दोनो आलम को भूल जाऊंगी‚
नींद टूटेगी तो ऐ मेरे सनम‚
ख्वाबों का शहर छोड़ आऊंगी‚
फिर झटक कर‚
तेरा वो साथ हसीं‚
हवा के झोंके की रफ्तार सी‚
खो जाऊंगी‚
खुशी की…
होके मायूस‚ तू शायद मुझे तलाशेगा‚
तेरी बांहे भी मुझे पुकारेगी
पर जमीं से कभी क्या‚
आसमान मिलता है‚
मैं न आ पाऊंगी‚
फ़क्त मेरी खुशबू‚
मेरा एहसास‚
उम्र भर तुझे करवायेगी।

– सुधा सक्सेना

राष्ट्र भाषा

हिन्दी है वरदान देश का‚
हिन्दी है अभिमान देश का
सुर की धाराओं में इसकी बसता है संगीत प्रीत का
इसके गीत है मानो रंगो की फुलवारी
कहीं प्रेम का आलिंगन‚
कहीं बालक की किलकारी
कहीं शास्त्रीय के सुर सजते कहीं लोक धुनों की क्यारी
सुगम गीत के सुगमों से‚
महकी है बगिया सारी
नील गगन और हरित धरा‚
कहीं गीत मिलन के गाते
सूरज‚ चांद‚ सितारे बन‚
जग में आलोक लुटाते
कुतुब ताज और मंदिर–मस्जिद‚
गीतो में यूं लगते
गीत नहीं आभूषण में ज्यों‚
जड़े नगीने सजते
मादक मौसम के सुर गुन–गुन‚
न जाने क्या गाते
तन–मन को छू‚ कानो में‚
गुप–चुप कुछ कह जाते
कहीं पर्व कहीं उत्सव न्यारे‚
त्योहारों की थापें
गीतो के द्वारा हृदय के उद्गारो में ढ़ल जाते
भक्ति गीत के स्वर जब‚
पावन झोंकों से लहराते
भक्ति लीन हो तब हम सब श्रद्धा की जोत जगाते
देश गीत के ओज पूर्ण स्वर‚
वीरो को हर्षाते
मातृभूमि पर मर मिटेने को‚
तब वे कदम बढ़ाते
वीर शहीदो को याद कर‚
करुण गीत जब गाते
नयन भीगकर न जाने‚
कितने सावन बरसाते
हास्य गीतो की‚
हंसी–ठिठोली मन हल्का कर जाती
पीड़ा दु:ख सब हर लेते‚
मन ही मन हम मुस्काते
पर जो गीत‚ बहा पसीना‚
कृषक खेत में गाते
वे पावन माती को छूकर‚
सोना है उपजाते
हिन्दी है अति प्यारी अपनी‚
सब इसके गुण गाते
शब्द इसके सक्षम है इतने भाव सभी दर्शाते।

– सुधा सक्सेना

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