बूढ़ा बरगद

कुछ जड़ॆं‚
उस बूढ़े बरगद की।
फकीर की दाढ़ी के‚
बालों सी।
एक अरसे का‚
अहसास कराती हैं
मानो जमीं को‚
अपने ही बाशिन्दों की‚
हरकतें‚
रास नहीं आती हैं।

– शरद पटेल