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मन के भाव

मन के भाव
संस्कार की
देहलीज़
पर अटके हुए
भक्ति से भरे हुए
बहुत ही पावन ।
धर्म के नियमों
में बंधकर
मर्यादा का
उल्लंघन
करे बिना ही
मन ही मन
उमड़ उमड़ कर
रिश्ते की
पवित्रता को
और और और
बढाते
ये मन के भाव ।

– आस्था

   

 

 

उसका ही नाम

हर वक्त मन में रहता
बस एक उसका नाम ।

बरसों से मन ही मन
दोहराते दोहराते
गहरा होता गया
बस एक उसका नाम ।

मेरी भक्ति में
मन की शक्ति में
अथाह आस्था बढ़ाता
बस एक उसका नाम ।

चाहूँ मैं लेना जनम
बार बार
जाने कब कहाँ कैसे
किस जगह मिल जाये वह ।

मोक्ष ना देना ऐ रब्ब मुझे
जब तक की नज़र मिलाकर
पुकार ना लूं
बस एक उसका नाम ।

– आस्था
 

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