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आज मैंने तुम्हारे सपने को देखा

आज मैं ने तुम्हारे सपने का चेहरा देखा
तुम्हारे भटक रहे सपने का रास्ता रोककर खड़ा हो गया
और उससे उसका पता पूछा
तुम्हारे सपने को टूट टूट कर सृष्टि के कण कण में बिखरते देखा
सपने में फूल‚ पत्ते‚ बारिश‚ गंध
और दुनिया की एक अरब औरतों के चेहरे को देखा
आज मैं ने तुम्हारे सपने के निराकार और साकार दोनों रूप देखे
मैं ने तुम्हें सपने की बारिश में भीगते और किसी पेड़ का पता पूछते देखा
तुम्हारे सपनों को रेत की तरह हवा में उड़ते
और किसी टीले पर इकट्ठा होते देखा
तुम्हारे सपनों को लू में झुलसते‚ शीत में ठिठुरते देखा
मैं ने देखे तुम्हारे सपनों के बीज‚ उनकी मिट्टी देखी‚
उनका उगना‚ वृक्ष बनना‚ फूलना‚ फलना‚ पकना
फिर बीज बनकर झरना और धरती में दबना देखा
आज मैं सपने में भागता रहा तुम्हारे सपनों के पीछे
मैं ने सपने में तुम्हारा सपना देखा
तुम्हें सपने को मुठ्ठी में लिये आकाश की सीढ़ी से उतरते देखा
मुझे देखकर फैला दिये तुमने अपने दोनों हाथ
तुम्हारी दोनों हथेलियों से सपनों की नदी को बहते देखा
मैं ने देखा तुम्हारे वज़ूद में सपनों का समुद्र
उस समुद्र में आसमान को उतरते और चांद को भीगते देखा
मैं ने देखी तुम्हारे सपनों की चट्टान और तुम्हारे चट्टानी सपनों को
काँच की तरह टूटते देखा
आज मैं ने तुम्हारे सपनों को कराहते
और तुम्हें टूटे हुए सपनों की किरिच बटोरते देखा
देखा तुम्हें टूटे हुए सपनों पर हंसी का गुलाबजल छिड़कते
तुम्हारे सपनों का कांपना‚ थरथराना‚ अवाक् रह जाना
और उठ कर खड़े होना‚ चलना देखा
मैं ने तुम्हारे सपनों का साहस‚ संकल्प‚ उनकी जद्दोजहद देखी
तुम्हारे सपनों में देखा समृतियों का फूटना
और भविष्य में उनके उगने की खुश्बू देखी
आज मैं ने तुम्हारे सपने में नियति का चेहरा देखा
तुम्हारे सपने में काल की तीनों दशाओं
भूत‚ वर्तमान और भविष्य को देखा
मैं ने देखा तुम्हारे सपने में एक ही सृष्टि को बार बार बनते और बिगड़ते
मैं भागता रहा तुम्हारे सपने के पीछे
मैं ने दुनिया की सबसे हसीन औरत के सपनों की थ्योरी पढ़ी
आज मैं ने तुम्हारे सपनों की प्रयोगशाला में दुनिया की
एक अरब औरतों के सपने को देखा

– संजय कुमार गुप्त

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