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मायूसी
बेज़ार जिन्दगी में ढूंढता हूं
कुछ पल कुछ लम्हें
अपने लिये, अपने सपनों के लिये
उसकी याद ही तो है
जो खींचे चली जाती है
उसकी तमन्ना ही है
जो लिये चली आती है
उन हंसीन लम्हों की
एक साफ तस्वीर
फासले तो हुए हैं बहुत,
पर उम्मीद आज भी है कायम,
मायूस नहीं हूं
क्यों कि ऐसी ही थी, है,
और रहेगी, तकदीर
हर रात देखता हूं ख्वाब
सुबह उड़ाता हूं हंसीं उनकी
क्यों कि रात की मधोशी में
दिख नहीं पाती गहराइयां
सच के उजाले की – – –
सोचता हूं आज फिर किसी से
प्यार का इज़हार करूं
सोचता हूं आज फिर किसी के
लिये हाथ में लिये दिल
गिराये राह में निगाहें
इंतज़ार करू
पर यह तो सब बेज़ुबान दिल के
हिचकोले हैं
क्यों कि सच तो यह है 'कमल'
मोहब्बत ने ही ज़िन्दगियों में
ज़हर घोला है

– नीरज माथुर
 

सुबह
रफ्ता रफ्ता
जिन्दगी बढ रही है
आहिस्ता – आहिस्ता
नये पन्ने पलट रही है
सोचता हूँ
अबकी बार
क्या ले के आएगी
“ऐ कमल”
यह जो सुबह
नयी खिल रही है।
– नीरज माथुर
11अक्तूबर 2000
क्या यही प्यार है?
हर शख्.स वहीं है. ,
हर याद है ताज़ा
हर बात है याद,
घाव कुछ भरा सा
यूं तो बीता है अरसा,
लगता है दिल को फिर भी
गोया बीता हो एक ही
अभी दिन., ज़रा सा
याद है अभी वो पुरवाई..,
तुम्हारा साथ
हमारा तुम्हारा वो अफसाना.,
कुछ अनकहा सा
आगे निकल आए हैं.,
हम भी, तुम भी
मगर रह गया है यादों में
चेहरा, छुपा सा
भले ही मिले हों साथ कई,
हों बदले प्यार
दिल में फिर भी हुआ
इक अहसास आज, हल्का सा
समझाया था इसे बहुत,
माना ही नहीं यह दिल
ले आया आँख में पानी,
दर्द, दबा सा
क्या यही प्यार है ?

– नीरज माथुर
 

 

तू
बैठा हूं आज,
अपने मकान से दूर
“घर” तो कह न सकूंगा
...क्यों क़ि उसमें तू ही नहीं।

बहार का समाँ है,
खिलती धूप में मस्त है
आज मौसम “आशिकाना” है,
कह न सकूंगा
क्यों कि साथ मेरे तू ही नहीं।
गुम सुम हूं,
खेल रहा हूं बेजान तस्वीरों से
“अच्छी” हैं, कह न सकूंगा
क्यों कि इनमें तू ही नहीं।
चल रहे हैं आज,
फिर वही गाने
याद आ रहे हैं
, बीते फसाने
“मधुर” हैं, कह न सकूंगा
क्यों कि गीत तेरे ही नहीं।
क्या करूं इन सांसों का
रूकती ही नहीं
चल रही हैं ये, चला रही हैं मुझे
हंसता हूं, रोता हूं,
खाता भी हूं, सोता भी
गुज़ार रहा हूं तेरी यादों के सहारे।
यह बचा सफर
जी रहा हूं “ज़िन्दगी”
यह न कहूंगा ऐ “कमल”
क्यों कि साथ इसमें
मेरे हमसफर, तू ही नहीं।

– नीरज माथुर
 

   

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