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आवेग–संवेग
चरखी में लिपटी मैं डोर तुम पतंग‚ मस्त मलंग खींच ही लेते हो अपने वेग से और कभी मजबूर करते हो कि नियन्त्रण मैं करूँ कटने से डरते हो क्या?
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