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दिवाली का दिन

हे राम! एक पल को भी आराम नहीं है
कौन कहता है बच्चों को कोई काम नहीं है

दोनों भाईयों में इस बरस दौड़ लगी है
किसका पहला पटाखा होगा होड़ लगी है
कई बार इसका गणित आंक चुके हैं
पटाखे सांझे कर फिर बांट चुके हैं

आज फिर पापा साथ बाज़ार गए थे
उन्होंने भी कुछ पटाखे और लिए थे
पापा बोले "यह केवल मेरे हंै –"
हंस कर बोले " न तेरे हैं‚ न तेरे हैं "
हम जानते हैं पापा यूं ही सदा कहते हैं
हमारे पटाखे खत्म होने पर हमें देते हैं

हर दुकान खूब सजी थी
तेली के भी भीड़ जमी थी
मोटू हलवाई भी खुश दिखता था
उसका माल भी खूब बिकता था

"चलो बच्चो दिये भिगो दो पानी में "
दादी मां यूं बोल रही हैं
"अब सब मिल रूई की बाती ओटो"
उनकी बातें रस घोल रही हैं
कई बार पापा से बोला "बेटा सुन ले
अभी लानी है 'हाट'‚ चावल की खीलें
खांड के खिलोने और चोमुख दिया भी लाना है
जल्दी घर आना अभी मन्दिर भी सजाना है"

बच्चों पर तो रात की प्रतीक्षा भारी है
उनकी तो सुबह से पटाखों की तैयारी है
सांझ होते ही हर चौखट पर दिये सजा रहे हैं
हर दीवार पर रंग–बिरंगी मोमबत्तियां लगा रहे हैं

"मां जल्दी से पूजा करो हम क्यों रुके हैं
पड़ोस में तो पटाखे शुरु हो चुके हैं
हे भगवान् तू भी तो कभी बच्चा होगा
आज हवा न चले तो अच्छा होगा
बार बार दिया मोमबत्ती बुझ जाती है
'हवाई' भी तो उड़ कहां की कहां जाती है"

चल भैय्या फिर सांझ कर लेते हैं
मिला कर पटाखे देर तक चलते हैं
सुबह फिर हमें जल्दी जल्दी उठना है
मेहतर से पहले अनचले बमों को चुगना है
दीवारों पर बिखरी मोम को जमा करेंगे
फिर पिघला कर क्या क्या खिलोने बनेंगे

हे राम! एक पल को भी आराम नहीं है
कौन कहता है बच्चों को कोई काम नहीं है
 

– सुमन कुमार घेई

हाट –– पंजाब की रीत है कि दीवाली पर एक छोटा सा मिट्टी का बना घर चावल की खीलों और खांड के खिलोनों से भर कर पूजा के समय लक्ष्मी मां के चरणों में रखा जाता है।
 

दीपावली
अपनों के साथ मनाने में ही दीपावली की सार्थकता है - अनुपमा
अब के ऐसी दिवाली आये - आस्था
अलि प्रिय अब तक न आए - सुधा रानी
ओ चंचला लक्ष्मी - सुधा रानी
इस बार दीपावली कुछ अलग तरह मनाएं - मनीषा कुलश्रेष्ठ
एक दीपावली पापा के बिना - अंशु
एक नन्हीं बच्ची की दीपावली - अवनि कुलश्रेष्ठ
कर भला होगा भला - सुषमा मुनीन्द्र
गायें गीत बालदिवस के - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
तुम्हारी बातें दीपक कतार सी - नीलम जैन
दिवाली का दिन - सुमन कुमार घेई
दिवाली का पर्व - राजेन्द्र कृष्ण
दिवाली दिवाली - संगीता गोयल
दिवाली स्तुति - सुमन कुमार घेई
दीपावली - राज जैन
दीपावली 2001 - राजेन्द्र कृष्ण
दीपावली और बालदिवस - अंशुल सिन्हा
पंचमहोत्सव का मुख्य पर्व - दीपावली - अचरज
यही तो है दीपावली - आयूषी श्रीवास्तव
लक्ष्मी पूजा - सुधा रानी
सुबह का भूला - मनीषा कुलश्रेष्ठ

 

संत्रास
कितना टूटा हूं मैं
कितना टूटा हूं मैं
निलमा रहित नभ सा
पंख वहीन खग सा
गहन वन में
अकेला अबोध छूटा हूं मैं
कितना टूटा हूं मैं
कितना टूटा हूं मैं
महाकाव्य की
छूटी अन्तिम पंक्ति
महा संदेश की
अधूरी अभिव्यक्ति
ज्योत्सना सरोवर में
कलुषित घट फूटा हूं मैं
कितना टूटा हूं मैं
कितना टूटा हूं मैं

– सुमन कुमार घेई

पुकार

समय की दीवार के पीछे से
झांकता है कोई
आंखों में भर आंसू
आंचल में ढेर सा प्यार,
मेरी हर चोट को सहलाता है कोई
दुर्गा रूप धर
हर हौव्वे को भगाता
ढाल बन हर विपदा,
स्वयं सह जाता है कोई
आज उसी बीमार माँ की आंखों में
देख एक दर्द, एक लाचारी
बेबस भयभीत बालक सा
फिर ढूंढता हूं––
अपनी गोद में छिपाएगा कोई?
जब दिन के साथ ढलती
परछाँई को देख घबराता हूं
तो बचपन की गलियों में
बदहवास, गुम भागता
माँ माँ पुकारता है कोई

– सुमन कुमार घेई

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