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ममता
भय है , आनन्द है या है ममता का आकर्षण
क्या है इस शिशु की व्याकुलता का कारण ?
इससे विचलित न हो, खुशी से बाहें पसारे खङी है
माता,
जो भी है प्रेमरस, आज ढाल देगी शिशु पर ममता ।
भय
दीर्घ होती साया बताती दिन की आयु रह गया कुछ ही क्षण,
अधंकार से पहले ही जा रहा शिशु, ममता के शरण ।
कौन दैत्य रुप रात में शायद न लेले सागर, भ्रम ये शिशु को होता
देख ऐसी व्याकुलता संतान की, गदगद हो रही ममता ।
पिछे मॉं की एकत्रित होती लहरें, कहीं दानव का रुप न कर लें वरण,
सरल, सुन्दर और प्रिय मेरी मॉं को, कहीं मुझसे न कर लें हरण ।
शिशु की आशकांयो से अनजान, र्निद्वन्द्व खडी है माता,
दौडे किन्तु सरल शिशु मॉं की और विपदा में है आज ममता ।
आनन्द
प्रफुल्ल हृदय को करते, तन पे गिरते सागर कण,
अद्भुत् दृश्य एक बनाते, अस्थिर अनेक लहर गण ।
इतना आनन्द कहां शिशु, अपने में सीमित रख पाता,
पास ही है मॉं, चलो मिलाकर देखें इस आनन्द के साथ ममता ।
शिशु की नन्हें पगों ने ्रले लिया है रेत का एक आवरण ,
उन्मुक्त शरीर शिशु का लगे पुष्प जैसा, पा कर अस्त सूर्य किरण ।
सागर की लहर, शिशु की लडक्पन में भि उन्माद लाता ,
अस्थिर दृत पग को, यूं शान्त कर देगी मॉं की ममता ।
ममता
जैसे व्यग्र होता समुद्र, करने के लिये समुद्रगा को ग्रहण ,
वैसे मॉं बुलाये शिशु को निकट , नहीं उसे है कुछ और स्मरण ।
खुली बाहों से स्फुरित होता, मॉं की हृदय की सरलता ,
आमत्रण देती लीन हो जाने को अपने अन्दर , व्याकुल मॉं की ममता ।
मॉं के हृदय की विस्तृता , करती एक ही संदेश का वितरण ,
गहराइ समुदृ की , ऊंचाई अम्बर का तुच्छ है ममता के आगे,
करले इसी में आत्मसमर्पण ।
देख ले इन्हे भी तू, ये तो हैं निर्जीव सुन्दरता,
बनाया है जिसने तुझे सजीव, वे तो है मेरी ममता।
वो तो है मेरी ममता ।।
अम्लान मिश्र
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