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अनिरुद्ध उमट
अधूरी कविता या अधूरे चित्र की तरह शाम को एक
सूखा बरगद याद आता है. जिसके नीचे बिल्ली द्वारा अधखाये कबूतर सा कोई पंख -पंख
इधर उधर बिखरता है।
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मेरी डायरी -
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