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भाषाई अवरोध

वह दिन अब ज्यादा दूर नही है जब भाषाई कफ़स से इन्सान आज़ाद हो ज़ायेंगे ! जब भाषाओं की दीवारें और भाषाई अवरोध हट जायेंगे,तब , एक अच्छे वातावरण का निर्माण होगा और वसुधैव कुटुम्बकम् की धारणा सार्थक होगी , हिंसा और वैमनस्य पराजित होंगे, ऐसे ही माहौल में भारत विश्वशक्ति कहलाएगा और विश्वशांती का हेतु होगा, अगर कभी ऐसा परिपूर्ण साफ़्टवेयर सुलभ हो जाये जो तमाम भाषाओं का परस्पर अर्थ करके अनुवादित कर जोड़ सके और त्वरित संप्रेषण भी हो तो हमारे भारत का समृद्द् भारतीय दर्शन और संस्कृति अन्य भाषाई क्षेत्रों /देशों के लोगों में फ़ैल सकेगी और निश्चित ही सुग्राह्य होगी ; यहाँ मैं स्पष्ट करना यह चाहता हूँ कि जैसे हम हिन्दी भाषी है और अन्य भाषाओं पर पकड़ कमजोर है तब हमारी हिन्दी में कही गयी बात उक्त साफ़्टवेयर के द्वारा एकदम सहीं तुरन्त उस भाषा मे अनुवादित हो सके जो कि सामने जिस-से वास्ता है उसकी भाषा है तो वह उसे समझ कर अपनी भाषा में जो कुछ व्यक्त करे वह हम तक हमारी भाषा में पहुंचे तो ठीक से संभाषण शुरु हो जायेगा और विचार जाने जा सकेंगे, परिमार्जन हो सकेगा, बहुत कुछ हम दे सकेंगे और कुछ प्राप्त भी हो सकेगा ।

हमारी समृद्द् संस्कृति और वैचारिक दर्शन हमारी विरासत है, इसे हमने सहेज रखा है । भले ही हम आर्थिक दृष्टि से विकासशील हो लेकिन इस क्षेत्र में हम प्रचुरता से विकसित है । वैश्वीकरण के इस दौर में बढ़ती हुई रफ़तार ने दूरियां कम कर दी है , यह सही है कि हमारे आर्थिक ढ़ांचे की मजबूती हमारे विचारों के ठीक तरह से प्रसारण पर निर्भर है और भाषा का विकास से सीधा संबंध है , किसी भी पहलू पर जब हम अपने दृष्टिकोण भलीभाँती स्पष्ट करने में सफ़ल होंगे तभी लक्ष्य पा सकेंगे, ये हमारी आवश्यकता है अतैएव इस दिशा मे हम धीरे-धीरे आगे सरक रहे है, यदि हमारे नीतिकार इस बात को गंभीरता से समझें और इस दिशा में महती कार्ययोजना बने तो हम अपने लक्ष्य की ओर गति से आगे बढ़ सकते है ।

पुरुषोत्तम अग्रवाल
अक्टूबर1,2007

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