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इराक युद्ध
मानवता आरंभ से ही युद्धों की मार से त्रस्त रही है। सदियों से युद्ध मानवता पर थोपे गये हैं। इन युद्धों को एक प्राकृतिक विपदा की तरह मानव स्वीकार भी करता आया है। और इन विनाशकारी लीलाओं को परिवर्तन और विकास की ओर एक कदम की संज्ञा समय समय पर दी गई है। या परिवर्तन के नाम पर मानव को बहलाया गया है।
भारत के दोनों महाकाव्य – महानग्रन्थ रामायण और महाभारत दो युद्धगाथाएं हैं जिन्हें हम वन्दनीय मानते आये हैं।
क्योंकि हम ताकतवर के आगे सदैव झुके हैं। ताकतवर की नीतियां ही सदैव से सच मानी गईं।
क्या रामायण व महाभारत के युद्ध दो राजपरिवारों की निजी शत्रुता की वजह नहीं थे या उन युद्धों से आम जनता का कुछ भला होने जा रहा था? राम की पत्नी सीता के अपहरण की सजा पूरी लंका और वानर सेना ने क्यों सही? या फिर द्रौपदी के अपमान के बदले में और हस्तिनापुर के राज्य को लेकर पूरा कौरववंश तो स्वाहा हुआ ही‚ हस्तिनापुर की निर्दोष जनता घुन की तरह पिस गई।
अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मिनी भा गई और कष्ट सहा सेना ने‚ स्वयं उसकी सेना चित्तौड़गढ़ के किले के नीचे बिना रसद पड़ी रही‚ साथ ही राजपूतों की आन बचाने के लिये स्त्री बच्चों वृद्धों को भी अपनी ज़िन्दगी देकर खामियाजा भुगतना पड़ा। सिकन्दर की ज़िद थी विश्वविजेता बनने की‚ उसकी इस ज़िद पर कुर्बान हुए लाखों सैनिक अपने भी और दुश्मनों के भी।
तो फिर क्या ये युद्ध महज राजनेताओं की एक सनक नहीं? सत्ता का यह विनाशकारी इस्तेमाल नहीं है? क्या राजनीतिज्ञ युद्ध नहीं थोपते देशों पर? मानवता पर युद्धों का यह संकट शायद ही कभी टले।क्योंकि पृथ्वी पर शांतिस्थापना व नेतृत्व की ज़िम्मेदारी नेताओं के हाथ है‚ ये नेता एक बार सत्तारूढ़ होने के बाद अपने पीछे की अवाम की ताकत को शांति में कम अपने अहम्‚ लाभ या सनक के लिये अधिक इस्तेमाल करते हैं।
क्या कभी एक सैनिक से पूछा जाता है उन्हें बलि का बकरा बनाने से पहले कि ये युद्ध नीतियुक्त है भी या नहीं? उसे तो लड़ना ही है चाहे वह अपने नेता के आदेश का सवाल हो या देश को बचाने का।
बुश जब अपनी छुट्टियों का मज़ा ले रहे होते हैं क्या उन्हें बंकर में तेज धूलभरे तूफान में छिपे अपने एक अदना सिपाही के कष्ट का अहसास भी होता है? सद्दाम हुसैन जब अपने महल के परमाणुहमला रोधी पूर्ण सुविधाओं से युक्त तहखाने में छिपे होते हैं तब उनकी जनता की ज़िन्दगी तबाही के दर्दनाक हमलों से जानवरों के रेवड़ की तरह बचती – पनाह ढूंढती भटकती है।
माना कि इराकी शियाओं के पास पूरी वजह है कि वे सद्दाम को नापसन्द करें एक शासक के रूप में‚ लेकिन उन्हें भी अपने देश के मामलात में बुश की दखलन्दाज़ी नागवार गुज़री है। इसका सबूत यह है कि उन्होंने उम्मकस्त्र‚ बसरा और नसीरिया जैसी जगहों पर गठबन्धन सेनाओं को काबिज़ नहीं होने दिया है और पूरी वफादारी से उन्होंने देश के लिये संर्घष किया है। इराक के लोगों ने गठबन्धन सेना को ' मुक्तिदाता ' के रूप में शुरु से ही स्वीकार नहीं किया है। माना कि सद्दाम हुसैन अपने लोगों तथा अपने पड़ौसियों पर विनाशकारी अत्याचारों के दोषी हैं। यह भी माना कि उनकी अधिकतर जनता उन्हें नापसन्द करती है‚ लेकिन क्या इराकी लोग अपनी मातृभूमि पर हमला करने वाले लोगों को स्वीकार करेंगे? सद्दाम का तो ओसामा बिन लादेन की तरह कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। लेकिन इराक एक और उजड़ा हुआ देश अफगानिस्तान न बन जाये इसकी आशंका लगातार इराकियों को है। युद्ध के बाद एक देश विकास के पच्चीस वर्ष पीछे चला जाता है यह नंगा सच इराकियों को पता है।अब बुश बतायें कि उनके सही इरादे क्या थे? तब फिर तमाम दुनिया यह कह रही है कि यह तेल और वर्चस्व का खेल है तो क्या गलत कहती है? संयुक्त राष्ट्र संघ तक को उन्होंने दयनीय हालत में ला खड़ा किया है। कोफी अन्नान हाथ बांधे विवश खड़े हैं। जिन्होंने महाभारत पढ़ा है वे जानते हैं कि कितना ही भीष्म पितामह‚ द्रोणाचार्य और विदुर ने दुर्योधन को समझाया कि यह नीति विरुद्ध है ‚मत करो लेकिन वह अपनी ज़िद पर अड़ा था। अंततÁ युद्ध हुआ तो सब मौन साध कर भी दुर्योधन के साथ थे। आखिर आप जिसका अन्न खाते हैं उसे सलाह दे सकते हैं‚ दबाव नहीं डाल सकते।
चापलूसी‚ मोह‚ स्वार्थ व स्वकेन्द्रता किसी भी शासक को धृतराष्ट्र बना सकती है‚ वहीं चाणक्य जैसे मात्र एक कटुआलोचक वह सलाहकार की उपस्थिति शासक को चन्द्रगुप्त बनाती है।
अमेरिका की लगभग तीस प्रतिशत जनता बुश के इस निर्णय के खिलाफ है। वे सड़क पर इस युद्ध के खिलाफ उतर आये हैं। क्योंकि यह युद्ध वह भेड़िये और मेमने की बचपन में पढ़ी कहानी की याद दिलाता है कि एक बार एक मेमना नहर पर पानी पी रहा था कि भेड़िया आ गया। उसने धमका कर मेमने को कहा‚
" क्यों बे तूने मुझे कल गाली दी थीॐ"
" नहीं तो भेड़िया दादा मैं ने तो नहीं दी थी।"
" तो तेरे बाप ने दी होगी।"
" वोऽ वो तो हैं ही नहीं जाने कब से नदी पार गये हैं।"
" तो तेरा दादा होगा‚ मैं तुझे नहीं छोड़ने वाला।"
और भेड़िया मेमने को खा गया।
अमेरिका से झौड़ लेने का माद्दा ही कहां है सद्दाम में? तूफान के आगे दिया क्या मायने रखता है? पर यह इराकी जनता की संर्घषशीलता है कि वह इस युद्ध को अन्त तक झेलेगी। सद्दाम का क्या बिगड़ेगा? मेटरनिटी अस्पतालों पर‚ बाज़ारों में मिसाइल आ आ कर गिरा करें। महिलायें बच्चे काल ग्रस्त हों उससे सद्दाम और बुश का क्या वास्ता? यह तो जंग है वर्चस्व कीॐ
बहरहाल लड़ाई जारी है और दुनिया की एक अकेली महाशक्ति का सबसे शक्तिशाली तन्त्र अपने एक विशाल सैन्य हिस्से के साथ एक मकड़जाल में जा फंसा है। यह बात स्वयं बुश और टोनी ब्लेयर जानते हैं कि इराक से युद्ध को लेकर उनकी गणना व अनुमान गलत साबित हुए हंै और यह युद्ध ज़रा भी आसान और शीघ्र परिणाम देने वाला कतई साबित नहीं हुआ है। यह बात एकदम गलत साबित हुई कि इराकी फौज का मनोबल गिरा हुआ है। दूसरा यह कि इराक के लोग सद्दाम की क्रूर तानाशाही से तंग हैं और जैसे ही वे उसे ढहता देखेंगे गठबन्धन फौज को मुक्तिदाता मान लेंगे और उनका साथ देंगे। पर इराक के लोग अपने देश को विदेशी प्रभुत्व से बचाने के हरसंभव प्रयास में हैं।
आज ही खबरों में सुना कि तुर्की ने गठबन्धन फौज के लिये रास्ता और मोर्चा दोनों खोलने से मना कर दिया। पावेल साहब तुर्की को मनाने में लगे हैं‚ उधर सीरीया और इरान को अस्पष्ट गुर्राहट में अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि —' अभी तो ठीक है कर लो विरोध पर कल क्या जब इराक में सद्दाम की जगह उनका मोहरा होगा?'
सम्पूर्ण विश्व में पहले से ही युद्ध विरोधी माहौल घना हो गया था। और अब युद्ध के आरंभ होने के पश्चात जनता के स्तर पर इस युद्ध के प्रति सारी दुनिया में एक बेचैनी है। दिन प्रतिदिन इराक की निर्दोष जनता की हताहत तस्वीरें कुछ प्रोअमेरिकन और ब्रिटिश टी वी चैनलों को छोड़ हर चैनल पर आ रही हैं‚ उससे यह अनुमान लगाना गलत नहीं है कि आने वाले समय में अमेरिका को घोर विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
अमेरिका के पास जितना परमाणु‚ रासायनिक और जैविक हथियारों का जखीरा है उतना दुनिया के सारे देशों के पास नहीं होगा। यह बात गले कैसे उतरे कि अमेरिका के पास जो हथियार हैं वे मानवता की रक्षार्थ हैं शेष सबके पास जो भी है वह मानवता के खिलाफ है?
माना अंततÁ जीत अमेरिका की होगी पर यह जीत सारी दुनिया के विरोध की कीमत पर होगी। यह जीत नैतिकता और वैधता की कीमत पर होगी।
 

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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