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मानसून  

भारत के उत्तरी हिस्सों में मानसून दस्तक दे रहा है। उत्तरी हिस्से जो प्रमुख कृषि उत्पादक क्षेत्र हैं। मानसून के लिये इस बार भविष्यवाणी भी सकारात्मक है। मौसम वैज्ञानिक भविष्यवाणी कर चुके हैं कि इस बार मानसून सामान्य रहेगा। लेकिन यह सामान्य मानसून की परिभाषा जरा टेढ़ी है। मौसम विभाग के सामान्य मानसून के आंकड़े स्थान और समय के हिसाब से बरसात के वितरण को नहीं देखते। किसी स्थान पर ज्यादा तो कहीं कम बरसात का औसत मिला कर ही क्या मानसून सामान्य मान लिया जाए? उन क्षेत्रों का क्या जहाँ बहुत कम बरसात हुई हो?

सन 2014 में देश में प्रमुख कृषि उत्पादक क्षेत्रों में आवश्यकता से बहुत कम बरसात हुई। मध्यप्रदेश‚ राजस्थान‚ गुजरात के कई और उत्तरप्रदेश और हरियाणा के कुछ जिले सूखे की मार सहते रहे‚ जबकि मानसून तो सामान्य ही था।

मौसम विभाग को अपनी तकनीकी में आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिये और उसकी भविष्यवाणियों को गाँव–गाँव तक सही समय पर‚ फसल उगाने से लेकर काटने के विभिन्न चरणों के सही समय और सही मौसम की उपयोगी जानकारियों के साथ उपलब्ध करवानी चाहिये‚ ताकि सही समय पर बुवाई‚ कटाई हो। कटी हुई भरपूर फसल पानी में भीग कर खराब न हो पाए। आखिर कृषि गाँवों में ही होती है और हमारे देश की 60 प्रतिशत आबादी आज भी गाँवों में रहती है जिनमें अधिकतर कृषि पर निर्भर रहते हैं।

एक अच्छी बात यह है कि मौसम विभाग भविष्यवाणी की तकनीक में सुधार कर रहा है‚ पिछले कुछ वर्षों से उसने देश को तीन हिस्सों में बाँट कर उनके लिये मानसून की अलग–अलग भविष्यवाणी की व्यवस्था शुरु की है। अब मानसून की जिलेवार भविष्यवाणी पर योजनाबद्ध काम चल रहा है‚ जिसके लिये मॉडल्स बनाए जाएंगे।

अब आवश्यकता है कि किसान को आधुनिक तकनीकों का फायदा मिले। आवश्यकता है कि गाँव में कम्प्यूटर पहुँचे और वह स्वयं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर जाकर अपने क्षेत्र की सैटेलाईट पिक्चर देखे। इंटरनेट के माध्यम से जान सके कि खाली अनाजों की ही नहीं अनाजेतर फसलों को उगाने में फायदा है‚ देश की अर्थव्यवस्था से सीधा जुड़ सके। जान सके कि वह जो फसल उगा रहा है उसका मूल्य क्या होगा‚ अनाज उत्पादन की बहुलता से सरकारी गोदाम ही नहीं भर रहा‚ अपने पैर पर कुल्हाड़ी भी मार रहा है। नकद पैसा दिलाने वाली फसलें और फलों‚ सब्जियों की बागवानी से देश और किसान दोनों का फायदा है।

ग्रामीण क्षेत्रों में में मूल सुविधाओं को सुधारा जाए तभी अच्छे मानसून का सही लाभ किसान को मिल सकेगा। अपने अन्नदाता किसान के महत्व और उसके अस्तित्व को आम शहरी भारतीय कितना समझता है? क्यों कभी उठ खड़ा नहीं होता उसके अधिकारों के लिये लड़ने के लिये? या किसानों की आत्महत्या शहरी भारतीय के लिये महज एक अखबार में छपी बुरी खबर बन कर रह जाती है?

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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