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नारी सशक्तिकरण वर्ष

इस वर्ष को नारी सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाने जा रहे हैं यह सुन कर बहुत अच्छा लगा था। इस विषय पर चर्चाएं‚ गोष्ठियाँ हुई। टेलेविज़न पर कई आकर्षक हस्तियों ने इस पर अपने विचार रखे। नेताओं ने भाषण दिये। कुछेक नई योजनाएं आरंभ हुई। कुल मिला कर संतोष मिला कि एक सार्थक वर्ष के रूप में मनाया जाएगा यह वर्ष कि भारतीय नारी अपने सशक्तिकरण के प्रति जागरुक होगी। बहुत सकारात्मक शुरुआत थी‚ बहुत सी आशाएं‚ योजनाएं ‚ सपनों को साथ लिये। पर फिर ये शोर धीरे–धीरे दब गया। लोगों को तब याद आया जब जयललिता ने करुणानिधी पर कहर ढाया कि‚ अरे यह तो होना ही था नारी सशस्त्रीकरण वर्ष जो है 2001।

भारत की जनता और सरकार दोनों की ही याददाश्त कुछ खराब है कि लोग बड़ी से बड़ी घटना पचा जाते हैं और सरकार अपनी बड़ी–बड़ी योजनाएं भूल जाती है।

पर नारी सशक्तिकरण वर्ष एक सार्थक प्रयास है‚ इसे व्यर्थ नहीं जाना चाहिये। आज भी आवश्यकता है कि भारतीय नारी अपनी शक्ति पहचाने। स्वकेन्द्रित न होकर अपने पूरे वर्ग के परिप्रेक्ष्य में अपना निर्णय ले। दहेज के बिना शादी का निर्णय‚ लिंग परीक्षण न करवाने का निर्णय‚ बेटियों को सक्षम बनाने का निर्णय‚ घर की वृद्धा को ससम्मान रखना महज एक स्त्री का अपना निर्णय नहीं यह निर्णय सारे स्त्री वर्ग को प्रभावित करता है। ये छोटे छोटे व्यक्तिगत और पारिवारिक निर्णय नारी की एक पूरी पीढ़ी को सुधार के रास्ते पर ले जाएंगे। तो आप ही से क्यों न शुरुआत हो।

सशक्किरण आपका अपना अधिकार है‚ और अगर सरकार इसके लिये आगे बढ़ कर घोषणा करती है तो यह तो सकारात्मक बात है।यह उसका अधिकार है कि वह अपने लिये बनाई गई योजनाओं का पूरा लाभ ले। अगर हम चाहते हैं कि यह वर्ष सचमुच नारी सशक्तिकरण वर्ष के रूप में सफल हो हो हम शिक्षित महिलाऔं को आगे आकर उन तमाम योजनाओं के बारे में अपने आस–पास की अशिक्षित महिलाओं को बता कर इस अभियान में अपना ज़रा सा योगदान देना ही चाहिये।

स्त्री की जागरुकता ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है। इस देश के विकास के लिये प्रत्येक महिला का जागरुक होना अति आवश्यक है।. आओ हम सब मिल कर नारी सशक्तिकरण वर्ष की सफलता में योगदान का हाथ बढ़ाएं।

– मनीषा कुलश्रेष्ठ

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