पटाखों की कहानी


प्यारे दोस्तों,
हम सबके लिए कितनी आनंदमय होती है न दीपावली! नए कपड़े, जगमगाते घर, मिठाइयां और सबसे महत्वपूर्ण चीज़ पटाखे। मगर क्या हमने कभी सोचा कि इन पटाखों की असली कहानी क्या हो सकती है?
हम तो बस इनका आनंद लेने में मग्न रहते हैं और इन सब बातों पर ध्यान ही नहीं देते।

पटाखों की इस कहानी की शुरुआत होती है तमिलनाडु के शहर शिवाकाशी से। यह शहर पटाखों के कारखानों से भरा पड़ा है। या यूं भी कहा जा सकता है कि यह देश में बनने वाले पटाखों का केन्द्र है।
इन कारखानों के श्रमिक ज़्यादातर मासूम बच्चे हैं। यानि की बाल श्रमिक। दोस्तों, यह हम और आप जैसे ही हैं मगर फर्क सिर्फ इतना है कि घर में गरीबी के चलते यह बच्चे बाल मजदूरी के शिकार हैं।
अब आप ही बताइये क्या इन बच्चों को दीपावली हमारी तरह मनाने का हक नहीं? क्यों दीपावली इनके लिए सिर्फ काम का भारी बोझ है। अगर यह भी काफी नहीं तो यह सुनें। इन पटाखों को बनाते समय ये बच्चे अपनी आखें
खो बैठते हैं, अपाहिज हो जाते हैं या पटाखों के मसालों से हुई बीमारियों से इनकी मृत्यु तक भी हो जाती है। क्या इन बच्चों का बचपन हमें यूं ही अपने आनन्द के लिए उजड़ने देना चाहिए?

चलिए अब आगे की कहानी भी सुनी जाए। आखिर में दीपावली का दिन आ ही पहुंचा है, दीपमालाओं से सजे घर और हर घर में बनी रंगोलियां। क्या इस पवित्र उत्सव का हमारे पर्यावरण को नुकसान होना चाहिए? सभी यही कहेंगे कि नहीं।


मगर आप ही बताइए क्या पटाखों से फैलता धुआं हमारी धरती मां, इस पर उगे पेड़ - पौधे, लताएं, मासूम जंगली जानवरों पर भी प्रभाव नहीं डालता होगा? फिर जवाब मिलेगा कि साल में एक बार, इतने से धुंए से कोई फर्क नहीं पड़ता। और फिर एक बच्चे, एक व्यक्ति या एक परिवार के पटाखे न चलाने से कोई बदलाव भी तो नहीं आने वाला। मैं यह जानना चाहूंगी कि अगर सौ करोड़ से भी अधिक आबादी वाले इस देश में जहां लगभग सभी दीपावली मनाते हैं वहां सब यही सोचने लगें तो फिर क्या होगा?
अरे भाई! बूंद - बूंद से ही तो सागर बनता है। अगर आप यह त्याग करेंगे तो शायद आपसे प्रेरित होकर कोई और भी करेगा।

कुछ लोग यह भी कहेंगे कि मैं ने तो उनकी दीपावली का मज़ा ही किरकिरा कर दिया। क्यों भई पटाखों के अविष्कार से पहले भी तो लोग दीपावली पूरे उत्साह और खुशी के साथ मनाते थे।
इसके अलावा दीपावली सिर्फ पटाखे छोड़ना ही तो नहीं है। यह तो प्रकाश का त्यौहार है। इस त्यौहार की पवित्रता को हमें बाल मजदूरी और पर्यावरण के प्रदूषण से अपवित्र नहीं करना चाहिए।
तमसो मा ज्योर्तिगमय - अर्थात अंधेरे से प्रकाश की ओर गमन। पर हम उन पटाखे बनाने वाले बाल मजदूरों और पर्यावरण को तो उजाले से अंधेरे की तरफ धकेल रहे हैं।

इस दीपावली पर ज़रा पटाखों को दीपावली से दूर ही रखिए। और परिवार वालों के साथ ज़्यादा समय बिता कर अपनी दीपावली खुशहाल बनाएं। और हां अपने आस पड़ोस में भी यह संदेश फैलाएं।

मैं ने आपको बता दी पटाखों की कहानी अब फैसला आपका ही है कि या तो अपनी दीपावली एक बाल मजदूरी व पर्यावरण - प्रदूषण के दोषी बनकर मनाएं या तो पटाखों का त्याग कर इस दिन को गर्व के साथ मनाएं।

कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
अक्टूबर 15, 2006