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पंचकन्या - 6
इरावती कर्वे का यह अनुमान गलत न होगा कि धर्मराज‚ प्रथम देवता जिन्हें कुन्ती ने आमन्त्रित किया था वे कोई और नहीं स्वयं विदुर थे‚ जो कि इस महाकाव्य में धर्मराज के अवतार माने गये हैं। यूं भी 'नियोग' के लिये पति के छोटे भाई यानि देवर ( सौतेला भाई ही सही) को ही उचित पात्र माना गया है। एक बार भीष्म ने उसे आश्रय दे दिया तो यह कुन्ती ही थी जिसने अपने बच्चों की रक्षा स्वयं अकेले की थी। कई बार इस प्रकार की असुरक्षा की स्थिति में कुन्ती ने किसी को न बता कर विदुर को ही बताया‚ भीष्म तक को नहीं‚ जब भीम को जहर देकर मारने का प्रयास हुआ था। यह कुन्ती ही थी जिसने युधिष्ठिर को विदुर के वाक्यों के गूढ़ अर्थ पर चिन्तन करने के लिये सावधान किया था जो कि विदुर ने चलते समय मलेच्छ शब्दावली में कहे थे। किन्तु आगे के कुछ वर्णनों में कुंती को कितना पाषाण-हृदय पाते हैं हम कि यह भी कुन्ती ही थी जिसने एक निषाद स्त्री को उसके नशे में धुत्त पांच पुत्रों को लाक्षागृह में ला बिठाया था‚ ताकि जलने के बाद यह साक्ष्य लोगों को ना मिले कि कुन्ती और उसके पांच पुत्र बच कर निकल गये हैं। उस ज्वलनशील गृह को जलाने के लिये भीम को उकसाने वाली कुन्ती ही थी। इस क्रूरतापूर्ण आहूती में छह निषादों को झौंक देने के साथ ही यह सत्य सामने आता है कि सत्यवती निषाद राज कायम करना चाहती थी मगर धृतराष्ट्र के वंशजों द्वारा‚ न कि पाण्डु के पुत्रों द्वारा. एक सीमा तक सत्यवती की दूरदृष्टि चली भी. अत:हस्तिनापुर का निषाद राज धृतराष्ट्र और उसके पुत्रों तक सीमित हो केवल दो पीढ़ी आगे तक चला‚ भी किंतु वे सभी अंतत: मारे गये।
वन में कुन्ती की कभी हार न मानने वाली इच्छाशक्ति ने ही उन
सभी की थकित शमित मानसिकता को पटरी पर बनाये रखा।
"
हाय! मैं कुन्ती‚
पाँच पुत्रों की माता‚
और मैं तृषित वहाँ जब युधिष्ठिर जब भीम को भीम से ही आकर्षित हिडिम्बा को मारने से रोकते हैं‚ तब कुन्ती ने अपनी विशेष दूरदृष्टि से भांप कर यह जान लिया था कि इस भाग्यवाहक घटना की नींव पर अपना संगठन बनाया जा सकता है और उन पांच मित्रहीन पुत्रों से कहा था‚ मुझे कोई राह नहीं सूझ रही इस भीषण अन्याय का बदला लेने की जो कि दुर्योधन ने हमारे साथ किया है एक भयंकर समस्या हमारे सम्मुख है‚ तुम जानते हो हिडिम्बा तुम से प्रेम करती है उससे विवाह कर एक पुत्र को जन्म दो यही मेरी इच्छा है। वह हमारी रक्षार्थ काम करेगा पुत्र मैं तुम्हारे मुख से न नहीं सुनना चाहती यह वचन दो‚ हम दोनों के सामने। ( 157।47 – 49) यह तो हम सभी जानते हैं कि कितना अच्छा फल मिला था इस सम्बन्ध से‚ घटोत्कच के रूप में‚ जिसने अर्जुन को कर्ण के अमोघ अस्त्र से अपना जीवन देकर बचाया था। यहाँ फिर कुन्ती ने ही घटोत्कच को उसकी कर्तव्यशीलता याद कराते हुए कहा था। " तुम कुरुवंश के पुत्र हो‚ मेरे लिये तुम भीम का ही रूप हो‚ पाण्डवों के सबसे बड़े पुत्र हो, तुम्हें उनकी सहायता करनी चाहिये।" ( 157।74) इस तरह पाण्डव राजवंश धीमी गति से किन्तु अवश्य निर्मित हुआ और अपने विभिन्न जातियों के रक्तसम्बन्धों के साथ अस्तित्व में आया। आरंभ में‚ कुन्ती के कारण ही भीम की मित्रता नाग आर्यक से हुई‚ उसके पिता के नाना थे वे।. अब एक सम्बन्ध जंगल में रहने वाले राक्षसों से जुड़ा। बाद में अर्जुन का सम्बन्ध नाग और अन्य जातियों से बना। कुन्ती ने अपने बच्चों को यह शिक्षा दी कि आम जनता को के हितैषी बनो और उनका विश्वास प्राप्त करो। एकचक्र में वह युधिष्ठर के क्रोध प्रदर्शन को नकार कर भीम को नियुक्त करती है‚ बका नामक राक्षस के पास उस बा्रहमण के विकल्प के रूप में जाने के लिये जिसने कि उन्हें आश्रय दिया था। इस घटना में माता पुत्र सम्वाद में कुन्ती जैसा कि पहले उसके व पाण्डु के सम्वाद की भांति ही वह एक विजेता की तरह उभर कर आती है। युधिष्ठिर कहते हैं। "माता‚ आपको क्या अधिकार है उसे इस तरह भेजने का? क्या तुम अपना विवेक खो चुकी हो? क्या हमारे कष्टों की वजह से आपका सन्तुलन खो गया है? ( 164।11) इसके बाद वह कभी अपनी मां के सम्मुख इस तरह के शक्तिशाली तर्क विर्तक में उलझा‚ केवल एक बार को छोड़ कर जब युद्ध के बाद वह कर्ण के उसके बड़े भाई होने का राज उजागर करती है। युधिष्ठिर का असन्तोष केवल यह बताता है कि वे कुन्ती की बुद्धिमत्ता और दूरंदेशी निर्णय को समझ पाने में असफल रहे थे‚ उन्हें इसमें भीम के रूप में अपने एकमात्र रक्षक के जीवन की चिन्ता अधिक थी। किन्तु बाद में यह बताने के बाद कि यही एक तरीका है जो कि हम अपने आतिथ्य के बदले में गरीब ब्राह्मण को चुका सकते हैं। वह युधिष्ठिर को भीम की अपरिमित शक्ति के बारे में बताती है और बताती है कि राजा होने के लिये किन गुणों की आवश्यकता होती है। " यह राजा का कर्तव्य है कि वह, शूद्र को भी बचाये‚ अगर शूद्र रक्षार्थ पुकारे तो।" ( 164।28) यह भीष्म की असफलता थी कि क्षत्रिय होकर भी वे उन्हें नहीं बचा सके। कुन्ती अब अपने पुत्र को झिड़कती है फिर वह इस निर्णय के पीछे छिपे कारण को व्यक्त करती है। "मैं मूर्ख नहीं‚ मुझे अनभिज्ञ मत समझो‚ मैं स्वार्थी भी नहीं। मैं जानती हूँ कि मैं क्या कर रही हूँ यह भी धर्म की एक क्रिया है युधिष्ठिर। इस कार्य से दो लाभ होंगे – पहला‚ हम ब्राह्मण का ऋण उतार सकेंगे दूसरा‚ हम जनता की दृष्टि में उपर उठेंगे एक क्षत्रिय जो ब्राह्मण की सहायता करता है वह जीवन के बाद स्वर्ग की ऊंचाइयां प्राप्त करता है।"(167।20 – 22) कुन्ती की परिपक्वता और दूरदर्शिता और जीवन को बारीकी से समझ पाने की दृष्टि तथा अनुभवों से सीख लेकर शीघ्र ऐसा निर्णय जो कि उसके बच्चों तथा समाज दोनों के लिये हितकर हो‚ लेने की विलक्षण क्षमता उसे इस महाकाव्य के अन्य चरित्रों से अलग व ऊपर उठाता है‚ एक केवल कृष्ण को छोड़ कर। भीम को हिडिम्बा से विवाह करने का आदेश देकर कुन्ती की यह मंशा स्पष्ट होती है कि वह अपने और अपने पुत्रों के प्रति हुए अन्याय का बदला चाहती है। उसका दूसरा निर्णय पांचाल जाने का‚ भी इसी मंशा को इंगित करता है‚ द्रौपदी को जीत कर वह हस्तिनापुर के पुराने शत्रु से गठबंधन कर कौरवों को चुनौती देना चाहती है। |
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