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साहित्य समाचार
'प्रवास में' कहानी संग्रह का लोकार्पण…
अभी हाल ही में लंदन बारो ऑफ मर्टन ने कॉमन वेल्थ फेस्टिवल के अन्र्तगत ऊषा राजे सक्सेना जी की पुस्तक 'प्रवास में' का भव्य लोकार्पण किया। इंग्लैण्ड के प्रवासी भारतीयों के लिये यह विशिष्ट घटना थी, क्योंकि किसी सरकारी संस्था ने ब्रिटेन में पहली बार किसी हिन्दी पुस्तक का लोकार्पण करवाया है। उन्होंने हमारी भाषा को महत्व दिया, पहचाना और मुख्यधारा से जोड़ा है। यहाँ प्रस्तुत है 'लोकार्पण' की यह रिपोर्ट — अपराजिता

14 जुलाई 2002 को विम्बल्डन गिल्ड हॉल, ड्रेक हाऊस, साउथ लन्दन में ऊषा राजे सक्सेना की पुस्तक 'प्रवास में' में' का लोकार्पण लंदन बारो ऑफ मर्टन के काऊंसलर एडिथ मकाले, जस्टिस ऑफ पीस ह्य मेयर, द लंदन बारो ऑफ मर्टनहृ द्वारा सम्पन्न हुआ। भारतीय परम्परा के अनुसार, श्री व श्रीमति मदन टंडन ने द्वीप प्रज्ज्वलित कर सभा को आलोकमय किया। मां सरस्वति की वन्दना लन्दन के जाने माने गीतकार श्री सोहन राही ने सस्वर की।

ड्रेक हाउस, हिन्दी व अहिन्दी भाषी सुधि श्रोताओं से खचाखच भरा हुआ था। समय की मांग को देखते हुए श्री तेजेन्द्र शर्मा जी ने बड़ी कुशलता से हिन्दी व अंग्रेज़ी में मंच संचालन किया। मर्टन के एथनिक आर्ट और कम्यूनिटी डेवलेपमेन्ट ऑफिसर श्री इकबाल हुसैन ने महापौर तथा आए हुए अतिथियों एवं ऊषा राजे सक्सेना का स्वागत करते हुए कहा, ' हमारे लिये यह लोकार्पण एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है। कॉमन वेल्थ इंस्टिट्यूट द्वारा फंडेड एक महीने से चल रहे ' फॉरेस्ट ऑफ फेस्टिवल' जैसे मल्टीकल्चरल कार्यक्रम का समापन, ऊषा राजे सक्सेना की पुस्तक 'प्रवास में' के लोकार्पण समारोह से हो रहा है, यह हमारे लिये गर्व व अभिमान की बात है। उन्होंने कहा, ' ऊषा राजे जी साउथ लन्दन की जानी मानी हस्ती हैं। बारो ऑफ मर्टन ने उनके कार्यों को सदा सराहा है।'

तेजेन्द्र शर्मा ने संचालन के दौरान कहा कि ऊषा राजे की कहानियां आज ब्रिटेन ही नहीं, हिन्दी के गढ़ भारत में भी अपनी पहचान बना रही हैं। भारत के चोटी के कथाकार कमलेश्वर जी ' प्रवास में' की भूमिका में लिखते हैं, ये कहानियां प्रवासी भारतीय जीवन की मर्मस्पर्शी गाथाएं हैं… इन कहानियों को लेखिका ने अपनी संवेदनात्मक ऊर्जा से नये किस्म का रचनात्मक आयाम दिया है…कहानियाँ यात्रावृत शैली में लिखी हैं…भाषा सरल, सचित्र और गतिमान है… उसमें सम्प्रेषणीयता की भरपूर गर्माहट है। काऊंसलर एडिथ मकाले ने ऊषा जी को बधाई देते हुए कहा कि मर्टन काऊंसिल ऊषा राजे जैसी प्रतिभा सम्पन्न नागरिकों पर अभिमान करता है। आशा है कि भविष्य में भी इसी तरह के मल्टीकल्चरल साहित्यिक कार्यक्रम बॉरो के अन्र्तगत होते रहेंगे।

भारतीय उच्चायोग से आए हुए श्री अनिल शर्मा ने कहा, आज का यह कार्यक्रम ऊषा जी की अपनी साहित्यिक यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव है, वस्तुत: यह पड़ाव उनके लिये ही नहीं वरन् आज यू के के हिन्दी साहित्य में जो कुछ लिखा जा रहा है उसमें भी यह महत्वपूर्ण पड़ाव है। उन्होंने आगे कहा 'प्रवास में' की अधिकांश कहानियां पुरवाई पत्रिका में 'एक मुलाकात' नामक स्थायी स्तम्भ के अन्तरगत पिछले पांच वर्षों से प्रकाशित हो रही हैं। संकलन की अधिकांश कहानियां यात्रावृत्तांत शैली में लिखी हैं, इनमें कुछ कहानियों के शीर्षक जैसे 'प्रवास में', 'यात्रा में ', ' सफर में ' आदि इसी ओर संकेत करते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य के यात्रावृत्तांत एवं संस्मरण के क्षेत्र में ऊषा जी की ये कहानियां उल्लेखनीय दस्तावेज़ हैं।
उन्होंने कहा कि ऊषा जी की कहानियों में समकालीन जीवन का सशक्त चित्रण मिलता है। 'प्रवास में', 'तान्या' व 'शन्नो' आदि कहानियां माइग्रेशन, महिला अधिकार, उनके उत्पीड़न, उनके इमैन्सिपेशन के सवालों को उठाते हैं साथ ही वे एक बेहतर भविष्य की ओर भी संकेत करते हुए हिन्दी प्रवासी साहित्य के इन क्षेत्रों में मील के पत्थर हैं। ऊषा जी का लेखन ब्रिटेन के जनजीवन से गहरा जुड़ाव रखता है। उनकी रचनाओं का मुख्य स्वर प्रगतिवादी है उनमें प्रगतिशीलता, लोकप्रियता व प्रतिबद्धता सभी स्वर विद्यमान हैं जो कि सफल साहित्य के आधार हैं।
उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी भाषा के पंडित सलमान आसिफ़ ने कहा, ऊषा जी का लेखन और व्यक्तित्व किसी परिचय का मोहताज नहीं है वह हिन्दुस्तान में भी उतनी ही जानी जाती हैं जितनी लन्दन में। उन्होंने कहा… 'सफर में ' की कहानियां माईग्रेशन की प्रक्रिया की जीती जागती दास्तान हैं। ये कहानियां, ये गाथाएं लेखक के कान्धे पर चढ़ कर उसे पृथ्वी पर चित्त गिरा, उसके सीने पर सवार हो चिल्लाती हैं…लिख… कलम को अनुभवों की स्याही में डुबो कर लिख… उन्होंने कहा, ऊषा जी के कलम से लिखी दिलों के तार को झनझनाती ' प्रवास में ' की कहानियां जब आप पढ़ेंगे तो इन कहानियों के शब्द जल्द ही आपसे बातें करते करते आपको अपनी गिरफ्त में लेते हुए आपकी आंखों में आंखें डाल कर आपकी नज़र में, आपकी अपनी विचारधाराओं को, आपके प्रबोध को चुनौती देते हुए आपको ललकारेंगे, आपसे सवाल पर सवाल करते जाएंगे … शायद ऐसी कहानियां ऐसे ही लिखी जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि, साहित्यकार का काम बहुत कठिन होता है, उसे सागर की बूंद को सिर्फ देखना ही नहीं होता बल्कि उसे पाठक को दर्शाना भी होता है इसके लिये उन्होंने प्रवास की भूमिका से लेखिका के ' स्नेल और चिड़िया' के एक एक शब्द चित्र को उद्धरित किया…
उन्होंने कहानियों की रवानगी को रेखांकित करते हुए कहा, ये रचनाएं पाठक को अपनी गिरफ्त में कब और कैसे ले लेती हैं यह पाठक उसी समय जान पाता है जब वह किताब को खत्म कर लेता है। उन्होंने कहा कि, ' जब मैं ने ' प्रवास में ' की कहानियां पढ़ीं तो अहसास हुआकि उम्दा साहित्य केवल समाज का आईना ही नहीं बल्कि वह एक दरीचा है जिसमें से नई दुनिया की, ज़िन्दगी की बड़ी से बड़ी हकीकतें और उसके बदलते नज़ारे दूर से नज़र आते हैं।
अंत में उन्होंने कहा कि ऊषा जी की अपनी सोच, अपनी यह यात्रा, अपना यह सफर कायम रखें ताकी हमें नई दुनिया और उसके नज़ारे आगे भी मिलते रहें… महकें तेरे शब्दों के सुमन और ज़ियादा… अल्लाह करे ज़ोरे कदम और चलें।' की दुआ के साथ उन्होंने अपना वक्तव्य समाप्त किया।
टदोपरान्त वन्दना सक्सेना – पोरिया, अभिनेत्री सुरेन्द्र कोचर, अभिनेत्री नयना शर्मा ने क्रमशÁ'सफर में ' तथा ' शुकराना' कहानी का पाठ अंग्रेज़ी, हिन्दी और गुजराती में अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से किया।

अंत में लंदन के जाने माने साहित्यकार, आलोचक, कहानीकार डॉ। गौतम सचदेव ने अपने अथ्यक्षीय भाषण में ऊषा जी के लेखन को समक्ष रखते हुए कहा, हमारी मातृभाषा हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसका सम्बन्ध संस्कृत से है जिसने लगभग भारत की सभी भाषाओं को जन्म दिया है…आगे उन्होंने कहा कि पुस्तक का प्रकाशित होना, उसका प्रकाश में आना अर्थात उसका जनजर्नादन का हो जाना है। आलोचक क्रोचे का कहना है रचना मन में हो चुकती है किन्तु शब्दों के माध्यम से जब वह प्रकाश में आती है तो लेखन बन जाती है।
उन्होंने कहा कहानी लेखन कोई पश्चिमी विधा नहीं है… संस्कृत से यदि हम हिन्दी में आएं तो वेद, महाभारत, हितोपदेश आदि सब इसी परम्परा के संवाहक हैं। हिन्दी में यह परम्परा लगभग सौ वर्ष पुरानी है, जिस कहानी संकलन ' प्रवास में ' का आज लोकार्पण हआ है यह उस 'हिन्दी कहानी की विशाल गंगा धारा' में एक और योगदान करती नदी है जो यहाँ इस देश में प्रवाहित हो रही है। आज यहाँ ऊषा जी के कथा संग्रह की कुछ कथाओं का वाचन हुआ जिसमें सबसे विशेष बात यह है कि कथा वाचन उनकी ही एक और कृति उनकी पुत्री वन्दना ने किया जो कि आज के इस परिवेश में दुर्लभ संयोग है।
गौतम जी ने प्रथम कहानीकार इंदुमति नाग को याद करते हुए प्रेमचन्द, जयशंकर प्रसाद, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि वास्तव में हम सब स्वयं ही जीवन्त कहानियां हैं। बस अन्तर सिर्फ इतना है कहानीकार मनुष्य के भीतर पहुंचकर उसकी मानवता का साक्षात्कार बाहृय जगत के मानवीय सरोकारों से कराता है। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण है। दर्पण में मात्र प्रतिबिम्ब दिखता है। उसमें वे मानवीय सम्वेदनाएं नहीं दिखतीं जो साहित्य को साहित्य बनाती हैं। कहानीकार
दर्पण से बहुत आगे हैं। वह ज़िन्दगी से हमारा साक्षात्कार कराता है। ऊषा जी की ये कहानियां भारतीय कहानी गंगा में ब्रिटेन की कहानी धारा बन मुहाने पर मिलेगी।

कार्यक्रम के मध्य एक नई संस्था ' साउथ लंदन विमेन्स गिल्ड ऑफ हिन्दी राईटर्स ' की स्थापना हुई जिसका उद्घाटन मर्टन बारो के महापौर जुडिथ मकाले द्वारा हुआ। संस्था की सदस्या श्रीमति स्नेह ऑबरॉय ने संस्था के उद्देश्य और कार्यप्रणाली पर प्रकाश डाला साथ ही लेखिका कादम्बरी मेहरा ने अपने वक्तव्य में कहा, ' इस संस्था की साउथ लन्दन के रचनाकारों को आपस में मिलाने, जोड़ने विचार विर्मश करने के लिये बड़ी आवश्यकता थी।

श्री के. बी. एल. सक्सेना ने आए हुए अतिथियों को धन्यवाद देते हुए जलपान के लिये आमंत्रित किया।

– अपराजिता

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