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गधा‚ घास और अमरीका   

आज सुबह सुबह उठ के अपनी बालकनी से बाहर झाँक के देखा तो तबीयत खुश हो गयी। दिल बल्लियों उछलने लगा। मुझे अपने अमरीका प्रवास में पहली बार हरी हरी घास देख के वो खुशी हुई जो शायद गधे को भी सावन के महीने में भी क्या होती होगी।
घास और गधों का बड़ा गहरा रिश्ता है। जहाँ घास होती है वहीं गधे चले आते हैं, शायद यही कारण है कि अमरीका में गधे बहुत कम हैं, क्योंकि यहाँ आधे साल तक तो घास सफेद सफेद बर्फ के नीचे दबी रहती है, गधे खाएँगे क्या? मगर मैं सोच रहा हूँ कि भारत के गधों के पास अगर यह सुविधा होती कि वे अमरीका आ सकें और यहाँ की घास ट्राई कर सकें, तो अमरीकन दूतावास के सामने इंसानों से ज्यादा तो गधे खड़े दिखाई देते। गधों का इंटरव्यू लेने के लिए दूतावास के कर्मचारियों को खासतौर से "ढेंचू" भाषा सीखने के लिए कहा जाता। गधों के साथ होम सिकनैस की भी कोई समस्या नहीं होती क्योंकि जब होम ही नहीं है बेचारों के पास तो सिकनैस कहाँ से होगी। इसलिए सारे गधे अमरीका जाकर अमरीकन गधियों की खोज में लगे रहते कि अगर किसी अमरीकन गधी को पटा के उससे शादी कर लें तो हमेशा के लिए अमरीका की नरम नरम घास खाने का इंतज़ाम हो जाएगा। साथ ही भारत के बेदर्द धोबियों की मार खाने से छुटकारा मिल जाएगा।
अमरीका की घास गधों के लिए बहुत मोहिनी साबित हो सकती है। एक तो यहाँ पे हर जगह घास आसानी से मिल जाती है‚ केवल कुछ रेगिस्तानी इलाकों को छोड़कर दूसरे यहाँ की घास होती भी मुलायम है। और अगर कभी ठंड में घास जम जाए तो आइसक्रीम का मज़ा देती है। भारत की घास भी कोई घास है। अव्वल तो हरी घास देखने को ही नहीं मिलती. सूखे भूसे से काम चलाना पड़ता है और अगर किसी पार्क वगैरह में हरी घास खाने का चान्स मिल भी जाए तो कुछ ही देर में माली आ के भगा देता है. और डण्डों से पिटाई होती है वो अलग। कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर यहाँ आ के कोई भी गधा वापस ना जाना चाहे तो।
क्यों जाए कोई भला उस देश में वापस जहाँ न ढंग की घास मिलती हो और न ही इज्ज़त। गधों को जितना जलील भारत में किया जाता है उतना शायद ही कहीं और किया जाता हो। गधों की तुलना बेवकूफ निकम्मे इन्सानों से की जाती है। पिता यदि पुत्र को दस बार एक ही सवाल समझाए और पुत्र की समझ में फिर भी न आए तो झल्ला के बाप कह देता है "गधा कहीं का। यह भी नहीं कर सकता।" गधे के ऊपर उस समय क्या बीतती होगी यह गधा ही बता सकता है। और मुमकिन है कि अपने कॉलोनी के पीछे जो गधा ढेंचू ढेंचू चिल्लाता था वह शायद इसी नाराज़गी का इज़हार करने का लिए करता हो. क्योंकि मेरे पिताजी भी मुझे आमतौर पे गधे के सम्बोधन से ही बुलाते थे मगर हमने कभी उसकी ढ़ेंचू को सीरीयसली नहीं लिया उसमें छुपे गुस्से और तिरस्कार की भावना को नहीं समझा। वैसे गधों को अमरीका में भी कोई खास इज्ज़त से नहीं देखा जाता पर उन्हें इसी बात से तसल्ली हो जाती है कि यहाँ कोई उन्हें निकम्मे नालायक इन्सानों से कम्पेयर नहीं करता।
एक बार गधा अमरीका में आ गया तो उसे निकालना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि गधे तो गधे हैं कोई इन्सान नहीं जो कि शक्ल से पहचान में आ जाएँ। सब के सब एक जैसे दिखेंगें। ऑथॉरिटीस को दिक्कत हो जाएगी कि कौन सा गधा लीगली यहाँ पे आया है और कौन इल्लीगली। इसीलिए भारत से गधों को आसानी से अमरीका जाने का परमिट नहीं मिला करेगा। केवल कुछ गधों को अमरीका वाले स्पेशाल कॉन्ट्रैक्ट पे अपने अपने लॉन की घास कतरने के लिए बुलाएँगे क्योंकि लॉन मूवर ऑपरेट करने वाले इन्सान बहुत ज़्यादा चार्ज करते हैं और गधे यह काम फोकट में घास खाने के लालच में करेंगे। अगर एक भी गधे ने भारत वापस जा के यह बता दिया कि अमरीका की घास कितनी मुलायम है. तो भारत के गधों में अमरीका जाने का क्रेज़ पैदा हो जाएगा। गधे स्पेशल कोचिंग ले ले के अपनी घास खाने की स्पीड बढ़ाएँगे क्योंकि जो गधा सबसे तेज़ घास खाएगा उसे ही अमरीका जाने का चान्स मिलेगा। फिर शायद अमरीका से वो अपने रिश्तेदारों के लिए भी कुछ अमरीकी घास भेज दे।
मगर कुछ ही दिनों बाद अमरीका में गधों को महसूस होने लगेगा की वो कुछ मिस कर रहे हैं। जब भी कभी धूल भरी सड़क पे या कीचड़ भरे तालाब में लोटने का मन किया करेगा तो घूम घूम के उनके पैर घिस जाएँगे पर कहीं कीचड़ भरा तालाब या धूल का ढेर नहीं मिलेगा। जिस गोबर की बदबू और ईंट की भठ्ठी के धुँए में उन्होने अपनी ज़िन्दगी बिता दी. वह अगर यहाँ नहीं मिली तो गधों को साँस की बीमारियाँ हो जाएँगी। भरी दोपहर में भरपेट लन्च के बाद मस्त होके ढेंचू ढेंचू चिल्लाना एक सपना बन के रह जाएगा क्योंकि अगर ऐसा किया तो पड़ोस में चर रहा गधा जलन के मारे नायस पाल्यूशन का केस ठोक देगा। दुलत्ती मारने का रईसी शौक भी इसी वजह से खतम हो जाएगा।
मगर इस अमरीकी घास का लालच गधे को वापस नहीं जाने देगा। आखिर गधा घास नहीं खाएगा तो भूखा नहीं मर जाएगा

– योगेश शर्मा

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