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व्यंग्य
हाय मेरे नितम्ब!
यह बात दीगर हैं कि अब बराबरी का ज़माना आ गया है और आदमियों को भी यह ज़नाना शौक चर्रोने लगा है। एक मेरे लड़कपन का वक्त था कि जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाले मेरे एक पहलवान छाप दोस्त ने जब एक हमउम्र हव्वा को आंख मारकर उसका दिल दहला दिया था, तो हव्वा की शिकायत बड़े बूढ़ों ने यह कहकर खारिज़ कर दी थी कि 'वह मेरा दोस्त' ऐसा कर ही नहीं सकता है क्योंकि वह सिर घुटाकर रहता है और पतलून तो क्या कभी सुथन्ना पाजामा भी नहीं पहिनता है।' उन बूढ़ों की समझ में अपनी खूबसूरती के प्रति बेख़बर सिर सफाचट रखने वाला और धोती-कुर्ता पहिनने वाला लड़का भीष्म-प्रतिज्ञ ब्रह्मचारी के अलावा और हो ही क्या सकता था? जब कि सच यह था कि मेरे दोस्त मोशाय सूरत के जितने भोले थे, सीरत के उतने ही मनचले थे, और मौका हाथ आते ही इधर उधर मुंह मार लेते थे। उन दिनों मैं भी अच्छा बच्चा समझे जाने के चक्कर में सिर पर एक लम्बी और मोटी चोटी रखता था और बेखौफ़ लुकाछिपी कर लेता था। पर आज ज़माना बदल गया है और खुला खेल फरक्काबादी खेला जाने लगा है। अब तो कल-के-छोकरे न सिर्फ बालों की लहरदार कुल्लियां रखाये घूमते हैं बल्कि हर घंटे, आध-धंटे में बडों के सामने बेझिझक उन पर कंघी भी फिराते रहते हैं। आज के लड़कों के मुंह से तोतले बोल भी डिज़ाइनर टी-शर्ट और लिवाइज़ जीन्स की फ़रमाइश के साथ ही निकलते हैं। और वे ऐसा क्यों न करें जब उनके बापों को खुले आम ब्यूटी पार्लर में नमूदार होते और वहां से होठों पर लिप-स्टिक लगवा कर और गालों पर पाउडर क्रीम चुपड़वाकर निकलते देखा जाता है? जब बाप छुलकां मूतते हैं तो बेटे चकरघिन्नी की तरह घूम - घूम कर मूतेंगे ही। ऐसे माहौल में ब्यूटी पार्लर वालों की पांचो उंगलियां घी में हो गईं हैं। अगर आप बेकार हैं और बेकाम के आदमी या औरत हैं तो एक कमरे के दरवाजे पर 'मेल ब्यूटी पार्लर' या 'लेडीज़ ब्यूटी पार्लर' या सिर्फ़ 'ब्यूटी पार्लर' का बोर्ड जड़ दीजिये और उसके दाहिने कोने पर पेंटर से शहनाज़ हुसेन का एक गहरा रंगा-पुता चित्र बनवा दीजिये। फिर चाहे वह चित्र टुनटुन जैसा ही क्यों न दिखता हो, आप पायेंगे कि उस दरवाजे क़ी शामें रोज़ ज्यादा से ज्यादा खुशनुमा हो रहीं हैं और आप की तिजोरी की सेहत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है। रूप और रुपयों की यह बरसात देखकर डाक्टरों का माथा भी ठनका है और उन्होंने सोचा है कि वे भी क्यों न इस बहती गंगा में हाथ धो लें? सो उन्होंने फ़िगर सुधारने के 'भरोसेमंद' शॉर्ट कट्स निकालने शुरू कर दिये हैं। उन्हीं में एक को नाम दिया है लिपो सक्शन जिसका हिंदी तर्जुमा होता है कि अगर आप के शरीर का कोई अंग जैसे पेट, जांधें आदि हिप्पो जैसा मोटा है तो वे उसकी चर्बी को खींच कर उसे लिपा हुआ सा पतला बना देंगे। लिपो सक्शन के ईजाद होने की खबर जैसे ही धनी महिलाओं में फैली कि चारों ओर हड़बडी मच गई। कौन नहीं जानता है कि बेमुरौव्वत चर्बी को महिलाओं के पेट से बेपनाह उन्सियत होती है- जहां किसी 36.24.36 की कमनीय काया को मातृत्व की गरिमा प्राप्त हुई, तो अविलम्ब 24 की मध्य-संख्या 36 की गुरुता को प्राप्त करने को उतावली होने लगती है। हाल में रोमानिया की एक माडल के बच्चा पैदा होने पर उसके साथ भी यही हादसा हुआ और वह अपने पेट की चर्बी से काफी ग़मगीन रहनें लगी। हालांकि उसके नितम्ब एवं वक्ष पर भी कुछ चर्बी आ गई थी, परंतु देखने वालों ने उस चर्बी से उसकी सुंदरता में चार चांद लगने की बात कही थी- बस पेट की चर्बी ही चांद पर ग्रहण लगा रही थी। वह माडल एक मशहूर कौस्मेटिक सर्जन का नाम सुनकर उनके पास पेट की चर्बी कम कराने गई। मोटा ग्राहक फंसते देखकर सर्जन साहब के चेहरे पर रौनक आ गई और वह फटाफट बोले,'अरे, यह तो मिनटों का काम है।', और फिर अपनी व्यस्तता दिखाने हेतु डायरी देखते हुए लिपो सक्शन हेतु दूर की एक तारीख़ निश्चित कर दी। वह तारीख़ आते आते सर्जन साहब यह भूल गये कि लिपो सक्शन कहां का होना है, और जब आपरेशन थियेटर में एनिस्थीसिया के नशे में वह माडल अपनी कमर के पुन: पुरुष-संहारक हो जाने का स्वप्न देख रही थी तब उन्होंने सक्शन यंत्र उसके नितम्ब में लगाकर उन्हें निचोड़ दिया। जब माडल की मोहनिद्रा खुली और उसने अपने बदन को टटोला तो वह यह जानकर हतप्रभ रह गई कि उसका पेट यथापूर्व मोटा था और उसके नितम्ब निचुड़ गये थे जिससे उसका बदन ऐसा हो गया था जैसे बांस की खपाचों पर गेहूं से भरा बोरा रख दिया गया हो। यह देखकर विषादपूर्ण आश्चर्य से उसके मुख से बस तीन शब्द निकले, ''हाय मेरे नितम्ब!'' -महेश चंद्र द्विवेदी |
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