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आजादी के लिए बैले नृत्य- अदिती सेशाद्री 

विमेन्स फीचर सर्विस  

मुम्बई ( विमेन्स फीचर सर्विस ) - शर्मिला आर्ते, 37, एक पूर्ण पत्नी, बहू व माँ है। लेकिन उसका एक गोपनीय जीवन भी है। एक सप्ताह में दो अपराह्न, वह मुम्बई में अपने माटुगा निवास से मंदिर जाने के बहाने खिसक जाया करती थी। लेकिन वहां जाने के बजाय, वह अर्ध-शहरी क्षेत्र जाया करती, इस विनती के साथ कि वह यातायात में न फंस जाय और उसको अपने बैले  नृत्य कक्षा के लिए देर न हो जाय। 

बैले नृत्य लम्बे समय से हल्की-भूरी ऑंखों, गोरी-चमडी की अरबी महिलाओं की यौनोत्तेजना से सम्बध्द रहा है। यह विदेशी धरती, सुन्दर महिलाओं व भ्रष्ट पुरूषों के बारे में है तथा इसके साथ अस्पष्ट अनैतिकता व अश्लीलता के भाव जुडे हैं। 

इसके ऋणात्मक अर्थों के बावजूद, बैले नृत्य ने इस महा-नगरी में जगह बनाई है और बृहद सख्या में प्रशंसक अनुयायकों को जुटाया है। दूषित मानसिकता की शहरी महिलाओं की बडी संख्या अब खुलने लगी हैं, रूकावटों को दूर कर रही हैं व अपने नित्य के कष्टदाई जीवन को मसालेदार बना रही हैं। शकीरा, अपनी पीठ थपथपाते कहती है। 

''मैं अपने घर व परिवार को पिछले कई सालों से चला रही हूं। भले ही मैं कुछ स्वैछिक कार्य कर लेती हूं, मुझे लगा कि मुझे कुछ और करने की जरूरत है, विशेष रूप से अब जब कि मेरे बच्चे अपने दोस्तों व अन्य कार्यों में ब्यस्त हैं,'' आर्ते कहती है। 

इस प्रकार छ माह पूर्व, नृत्य के प्रति लम्बे समय से विस्मृत प्रेम को याद करते हुए, उसने नृत्य कक्षाओं में स्वेच्छा से भाग लेना प्रारम्भ किया। उसने पश्चिमी नृत्य जैसे साल्सा व बॉलरूम नृत्य को अस्वीकार किया क्योंकि इनमे साथी की जरूरत होती है। तभी उसने समाचार पत्र में बैेले नृत्य के विज्ञापन की एक सूचि देखी। ''मैंने इनको किसी भी समय कक्षा में प्रवेश के लिए फोन किया। लेकिन प्रशिक्षक ब्यवसाय कुशल व मित्रवत था, व मेरी झिझक को समझता प्रतीत हुआ। उसने मुझे आने व एक कक्षा देखने को कहा,'' वह याद करती है। जब आर्ते एक अभ्यास सत्र के लिए गई, वह प्रभावित हुई। ''मुझे महिलाओं के पाँव संचालन की शैली पसंद आई। और सभी छात्र अच्छे परिवारों से थे, अच्छे कपडों में थे।'' छ महिने में, आर्ते कहती है: ''मैं विश्वास से युक्त, ताजी, कामिनी व प्रसन्न अनुभव करती हूं। इसने मेरे जीवन को बदल दिया है।'' 

अंधेरी की रहने वाली कविता रंजन इस भाव को गूंज के साथ दोहराती है। 29 वर्षीय आठ महीने से बैले नृत्य सीख रही है, लेकिन आर्ते के विपरीत, उसका परिवार इसके बारे में जानता है। ''मेरा पति इससे ठगा सा रहता है और यहां तक कि मैं अपनी 4 साल की बेटी को नृत्य दिखाती हूं,'' रंजन कहती है, जिसका अंश-कालिक पाठन कार्य है। ''मेरे माता-पिता को धक्का लगा जब मैने उन्हें बताया कि इन कक्षाओं में प्रवेश ले रही हूं, इसलिए भी वे भयभीत थे कि मेरे ससुराल वाले व 'समाज' इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे।''  

उसके सारे डर समाप्त हो गए जब रंजन एक दिन अपनी माँ को अपने साथ किसी एक कक्षा में ले गई। ''उसने देखा कि वह नृत्य सुन्दर, नरम व सुरूचिपूर्ण है। वह बहुत प्रभावित हुई,'' वह कहती है। भले ही उसका परिवार उसकी रूचि को स्वीकार करता है, रंजन कहती है कि वह, दूसरे क्या कहेंगे, के बारे में अनिश्चित है। ''मेरे कुछ दोस्त जानते हैं, लेकिन मैं नहीं समझती कि पडोसी व बिस्तृत परिवार के लोग समझेंगे। और उनमे से हरेक को मैं अपनी कक्षा में, वहां क्या होता है, दिखाने नहीं ले जा सकती।'' 

आर्ते मानती है, ''मैं जानती हूं कि नृत्य में कुछ भी अश्लील नहीं है, लेकिन मैं जानती हूं कि मेरे ससुराल वाले व पति इसको वैसे नहीं देखते। उनको धक्का लगेगा।''   

यह, डॉ. प्रीती राव, 28, कहती है, सबसे बडी रूकावट है। यह दन्त चिकित्सक, जो पल्स स्टुडियो, सान्ताक्रूज, मुम्बई, में बैले नृत्य सिखाती है, कहती है, ''मैं मध्य पूर्व, जहां बैले  नृत्य उनकी संस्कृति का एक अंश है, में पली-बढी हूं। महिलाएं इसमें वैसे ही थिरकती हैं जैसे पुरूष भंगडा में पलक झपकते ही थिरकते हैं। यह एक बडी गलत धारणा है कि बैले नृत्य पुरूषों को आनन्दित करने के लिए है। यह महिलाओं के लिए है।'' 

स्वाभाविक तौर पर, अधिकांश महिलाएं अपने शरीर व अपनी नृत्य कुशलता के बारे में ऋणात्मक अवधारणा के साथ आती हैं। ''हमें उन्हें समझाना है कि इस नृत्य को आप तब भी कर सकती हैं यदि आप मोटी हों। इस नृत्य के लिए अच्छे रूप, शैली व दृष्टिकोण की जरूरत है, इसलिए आप स्वयं-सचेत नहीं बने रह सकते,'' राव कहती है। ''इसके लिए मांसपेशी-नियंत्रण की भी जरूरत है, जिसको सीखना कठिन है।''  

इसमें बहुत से उत्साही ब्यक्तियों के लिए आवाह्न निहित है। दिमाग से सभी बातों को अलग रखते हुए और कुछ सीखने पर ध्यान केन्द्रित करने व इसको ठीक से कर पाने से आजादी मिलती है। ''यह शरीर व मन का अभ्यास है, और इससे मुझे मानसिक शान्ति मिलती है,'' शान्ति शाह, 40, जो कि बैले  नृत्य की चार कक्षाओं को पार कर रही है, कहती है। 

उसकी प्रशिक्षक प्रजक्ता साठे, 24, है। ''प्राय: महिलाओं, जिनकी शास्त्रीय नृत्य की पृष्टभूमि है, को अपने उस कौशल को भूलना होगा ताकि बैले बैले नृत्य सीख सकें। क्योंकि भारतीय शास्त्रीय नृत्य में कुछ सख्ती है, बेले नृत्य में तरलता है,'' साठे, जिसने हाल ही में एक-पर-एक कक्षा, छात्रों को विविध बिकल्प का प्राविधान देते हुए, प्रारम्भ की है, कहती है। ऑंचल गुप्ता, 28, जो सियोन में आर्ट्स इन मोशन स्टूडियो चलाती है, आगे बताती है, '' भारतीय महिलाओं की झटके के साथ नृत्य करने की प्रवृति है, जब कि
बेले नृत्य में गति संयमित रखने की जरूरत है।
'' 

भले ही पल्स स्टूडियो व आर्ट्स इन मोशन स्टूडियो ने प्रदर्षनी लगाई जिसमें बैले नृत्य को भी दिखाया गया, एक सच्चाई कि महिलाओं को अपनी निपुणता को दिखाने का - शादियों में महिला-संगीत (विवाह-पूर्व संगीतोत्सव) के अलावा कोई स्थल नहीं है, किसी को इससे कोई मतलव नहीं है। ''यदि कोई अवसर उपलब्ध हो तो मैं सार्वजनिक रूप से नृत्य करना पसंद करूंगी, लेकिन मैं अपने लिए सीख रही हूं,'' शाह, जो अपने परिवार को अपनी अनूठी रूचि के बारे में बताने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रही है, कहती है।  

राव व साठे को सारी जनता के बीच नृत्य करने के अनुरोध मिले, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। साठे ने इसलिए स्वीकार नहीं किया क्यों कि रेस्टोरेंट से सन्देहपूर्ण बुलावा था, और राव ने इसलिए स्वीकार नहीं किया क्यों कि उसने केवल महिलाओं के साथ नृत्य किया था और ''यही रास्ता है आगे बढने का'' 

स्पष्टतया, इन महिलाओं के लिए बैले नृत्य इस बारे में नहीं है कि वे किसके लिए नृत्य कर रहे हैं। जैसे गुप्ता कहती है, ''हम कठिन जीवन जीती हैं कि हम महिलाएं आक्रामक व कठोर हो गई हैं। यह नृत्य हमारी गति कम करने, हमें इन्द्रियासक्त व अधिक स्त्रीशक्तियुक्ता बनने में मदद करता है।'' यदि समाज यह देख पाता।

सौजन्य : ;विमेन्स फीचर सर्विस
 

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