पतझड़ की शुष्क हवाएं
उड़ा लाई हैं‚
मेरे आँगन में पीले पात
सर्दियों की गुनगुनी धूप में बैठा‚
ऊंघ रहा है दिन
कौन कहेगा कि‚
यही नये साल का पहला दिन है ।
अपने ही किसी हमउम्र दोस्त सा
ऐसे ही किसी इतवार को
साथ बैठा मूँगफलियाँ टूँग रहा है।
कस्बाई जीवन और नये साल का पहला दिन
न कोई उत्सव‚
न कोई कार्निवाल
बस‚
एक लम्बा फुर्सत भरा दिन
जैसे‚
अपना ही कोई बेरोज़गार साथी।
कविताएँ
नव वर्ष
आज का विचार
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
आज का शब्द
जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।