कितनी ही कस कर
बंद कर लो अपनी ही आंखे
आभास घेर लेगे तुम्हारे मन
तुम्हारी आत्मा तक को।
स्मृतियों के कोष छुपा लो चाहे
व्यक्तित्व के भूमिगत हिस्सों में
ये तो चींटियों का एक बिल है‚
एक–एक कर स्मृतियां निकलती चली आऐंगी।
कहां–कहां से जोड़ोगे रिसते मन को
मिट्टी और पानी से
उमड़ पड़ेगे दूने वेग से आहत भाव
एक बार बांध टूटा तो
विनाश होगा ही।
उम्र बढ़ेगी‚ मोह घटेगा
बहुत कुछ पीछे रह जाएगा
फिर भी मन के घुमावदार रास्तों में
मील–पत्थर दबे रह जाऐंगे
जहां से होकर पीछे लौट जाने को
मन बहुत तरसेगा।
कविताएँ
स्मृति कोष
आज का विचार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।
आज का शब्द
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।