कभी-कभी यह होता है, जो कुछ अनुभव में घटित हो रहा है वह नामालूम तरीके से एक रूटीन के तहत गुजर जाता है और बाद में वह गुजरा हुआ बार-बार हर क्षण महसूस होता रहता है। अनुभव बीत जाता है अनुभूति का एहसास भीतरी तहों में दुबक कर बैठ जाता है। पहली और दूसरी, शायद तीसरी बैठक तक मरीज थी, वे चिकित्सक। और शायद तीसरी बैठक के बादहां, तीसरी बैठक के बाद ही वे चिकित्सक से उसके सर्वश्रेष्ठ हो गए, वह मरीज से उनकी दीवानी हो गई। जब उम्र में कच्चापन था, तब जब उसने जिस सर्वश्रेष्ठ की कल्पना की रही होगी शायद, वह पैतींस के लपेटे में है और उनके नाम के आगे बडी-बडी ड़िग्रियां लगी हुई है तो चालीस से कम भी नहीं होगे। जब वह उम्र के खूबसूरत और ताजा मोड पर भी थी और खूब अच्छी तरह जानती थी कॉलेज के जूनियर, सीनियर लडक़े और एडहॉक के पिपरसानिया सर उस पर कुर्बान है, तब भी वह किसी की ओर आकृष्ट नहीं हुई थी। उन दिनों उसे अपने अनिंद्य सौंदर्य का कुछ इस कदर गुमान था कि वह किसी को अपने जोड का नहीं समझती थी। उसे किसी सर्वश्रेष्ठ की तलाश थी, तलाश नहीं प्रतीक्षा थी। और उसे विश्वास था ईश्वर ने कहीं, एक सर्वश्रेष्ठ उसके लिए रख छोडा है जो उसे निश्चित रूप से मिलेगा।

उसे सर्वश्रेष्ठ की साध थी और पति रूप में निहायत औसत किस्म का केशव मिल गया। उसने भाग्य का लेख मान कर केशव को स्वीकार तो कर लिया, पर विरोधस्वरूप उससे जरूरत भर को बोलती थी। वर्ष, दो वर्ष बाद जब सहज रूप से बोलने लगी तब केशव हंसा – ” अम्बिका, मैं तो डर गया था पंडितजी ( अम्बिका के पिताजी) ने मुझे गूंगी लडक़ी थमा दी है, पर नहीं, तुम्हे तो बोलना आता है।”

और इस तरह सब ठीक-ठाक चलने लगा। तो फिर अब क्या हो रहा है? अम्बिका को किसी परिवर्तन की चाह है? या उसका आसमानी सर्वश्रेष्ठ डॉ व्यास के रूप में अवतरित हो गया है? कुछ तो है।अम्बिका, डॉ व्यास। उनका चेहरा, उनका स्वर, उनका व्यक्त्वि अम्बिका पर सम्मोहन डाल रहा है। एक भंवर है, डूब जाने के जोखिम से भिज्ञ होते हुए भी जिसमें डूब जाने को जी करता है।

अम्बिका चिकित्सक के पास नहीं जाना चाहती थी। उसे औषधि और इंजेक्शन से तो अरुचि है ही, उससे भी बडा भय यह कि डॉक्टर कोई गम्भीर बीमारी बता देंगे और वह उस बडी बीमारी का नाम सुनकर पहले से अधिक पीडित, आतंकित और रुग्ण हो जाएगी। अम्बिका इधर के एक दो वर्षो में अजब सुस्ती, उदासी, निराशा, निष्क्रियता, अवसाद से घिरती गई है। सब कुछ वैसा ही चल रहा है जैसा विगत पद्रंह वर्षो से चला आ रहा है, इसलिए वह अपनी उदासी और शिथिलता का कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं बता सकती। उसे नहीं मालूम क्या करना चाहती है, पर कुछ करना चाहती है। उसे नहीं मालूम क्या पाना चाहती है। कुछ कमी सी लगती है और जब ढूढने लगती है तो पाती है उसके पास सब कुछ है। फिर क्या? पता नही, जीवन, जगत, केशव सब नीरस, निरर्थक, निष्प्रयोजन लगते है। अनिद्रा, भूख न लगना, वजन घटना और अब उदर शूल।

” खुश रहा करो, तुम खुश रहती हो तो घर का माहौल अच्छा रहता है।”

केशव अपनी व्यवसायिक व्यस्तता के बीच यह सरल सी बात कहता तो अम्बिका सोच में पड ज़ाती – केशव कभी भी किसी स्थिति को देखकर असहज क्यों नहीं होता। और जब इंट्राक्यूनाल के वृहद सेवन से उदर शूल नहीं रुका तो केशव ने दर्द को गंभीरता से लेते हुए अपने घर से थोडी दूर रहने वाले अपने मित्र श्रीनिकेत से चर्चा की –

” अम्बिका को किस डॉक्टर को दिखाना चाहिए?”
” केशव, तुमने अब तक बताया नहीं। यहां मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर रविकिरण व्यास है, वे मेरे बहुत अच्छे मित्र है। गेस्ट्रोइंट्राक्यूनॉल, गेस्ट्रो इंटस्टाइनल एन्डोस्कोस्कोपिस्ट उनके नाम के साथ पता नही कितनी डिग्रियां जुडी हुई है। उनका डायग्नोसिस बहुत अच्छा है। दर्द कैसा भी हो आगे चल कर खतरा बढाता है।दिखा लो।”

और अम्बिका को चिकित्सक के पास जाना पडा। डॉ व्यास के घर के गेट पर नेवी ब्लू मारुति खडी थी। अम्बिका कार का नम्बर देख कर बोली –

” कितना मजेदार नम्बर र्है दस बीस ( एक, शून्य, दो, शून्य)।”
” व्यास का काम निराला है तो उसकी कार का नम्बर भी निराला है। चलिए चार सौ बीस नही है,” श्रीनिकेत ने मजाक करने की कोशिश की।

जल्दी ही डॉ  व्यास अवतरित हुए। अम्बिका को नही मालूम, सबसे पहली बार वे कैसे दिख रहे थे।

” अरे श्रीनिकेत। आओ, आओ। यहां ड्राइंग रूम में आओ।”

अम्बिका को नहीं मालूम तब उनका स्वर कैसा था।

” पेशेन्ट लाया हूं।” श्रीनिकेत उठ कर खडा हो गया। केशव और अम्बिका भी।
” अच्छा।” डॉ  व्यास ने केशव और अम्बिका को बारी-बारी विलोका।

अम्बिका को नही मालूम उनकी चितवन कैसी थी।

श्रीनिकेत ने परिचय कराया – ” ये मेरे मित्र केशव पुराणिक और ये इनकी धर्मपत्नी। तुम्हारी पेशेन्ट।”
” आइए, अन्दर आइए।” डॉ व्यास सबको कर्लाकक्ष में ले आए।अम्बिका को नही मालूम तब उनका चेहरा कैसा था।
” हां, बताइए।” डॉ व्यास ने अम्बिका को ताका।
अम्बिका के स्थान पर केशव ने बताना शुरू किया – ” सर, इधर कोई एक साल से ये सुस्त”
” पेशेन्ट को बताने दीजिए।” डॉ व्यास हाथ के संकेत से केशव को रोक कर अम्बिका से बोले –
” हां, बताइए।”
” पेट में दर्द और भारीपन रहता है। ठीक से समझ नही आता पेट भारी है या दर्द हो रहा है। भूख नही लगती, नींद नहीं आती, वजन कम हो रहा है, सुस्ती बनी रहती है।” अम्बिका ये यही प्रमुख समस्याए बताई।
” और कुछ?” अम्बिका ने फिर भिन्न प्रकार से घुमा फिरा कर वहीं बातें कई बार दोहराई। वस्तुत: उसे लग रहा था वह अपनी बात ठीक से कह नही पा रही है।
” ठीक है।” डॉ व्यास सोफे से उठे और अम्बिका के पास दीवान पर आ कर बैठ गए।

अम्बिका को नही मालूम उनकी देह परिमल कैसी थी। डॉ व्यास ने उसकी नाडी पकडक़र पल्स रेटिंग देखी। जीभ और आंखो की जांच की। रक्त चाप मापा। आला लगा कर छाती और पीठ की जांच की। दीवान पर लेटने को कहा और पेट मे उंगलियो से दबाब डालकर जांचा-परखा। अम्बिका ने बाई ओर संकेत कर बताया कि किस स्थल पर दबाने से अधिक दर्द हुआ।

अम्बिका को नहीं मालूम उनका स्पर्श कैसा था। उस सबके उपरान्त डॉ व्यास बरान्डे में रखी वेइंगमशीन उठा लाए –

” वजन लीजिए तो ” अम्बिका मशीन पर खडी हो गई और डॉ व्यास भूमि पर ऊकडूं बैठ कर रीडिंग देखने लगे
” सिक्सटी। अरे तो आप की ऊंचाई के अनुसार यह आदर्श वजन है।”
” इधर आठ-दस किलो वजन घटा है।”
” तब आप ओवर वेट रही होगी। लोग तो वजन घटाने के लिए बडे ज़तन करते है।आपका वजन सही है।” डॉ व्यास हंसते हुए बोले।अम्बिका को नही मालूम उनकी हंसी कैसी थी।
” खांसी आती है? ”
” नहीं।”
” सांस फूलती है?”
” नहीं।”
” बुखार? चेस्ट में पेन?”
” नहीं।बस लॉस ऑफ एपेटाइट। लॉस ऑफ वेट और पेट दर्द।”
” तनाव तो नही रहता?”
” नहीं तो।”

अम्बिका ने डॉ व्यास के चेहरे पर सरसरी निगाह डालकर पलकें झुका ली। अम्बिका किसी पुरूष से दृष्टि मिलाकर बात नहीं कर पाती। उसकी पलकें या तो बार-बार झपकती है या दृष्टि को साधे रखने के प्रयास में चेहरा कुछ खिंच सा जाता है। डॉ व्यास ने पर्चे में ब्लड शुगर, ई एस आर , चेस्ट एर्क्सरे, एब्डामन अल्ट्रासाउन्ड आदि जांच कराने के निर्देश लिख दिए थे।

” ये टेस्ट कराने होगे।”
” तुम्हारी क्या ओपीनियन बनती है?” श्रीनिकेत ने औचक पूछ लिया।
” ओपीनियन रिर्पोट के बाद दूंगा। आज मेडिकल साइंस इतना विकसित हो गया है, तो हमें जांच के बाद ही कोई राय कायम करनी चाहिए।”

घर पहुंच कर अम्बिका शिथिल थी और केशव उसे देर तक समझाता-संभालता रहा। फिर सब कुछ चमत्कारिक ढंग से घटता गया

अम्बिका को संभावित बीमारी ने निराश किया, पर अनूठा एहसास भी हुआ। एक नया अनुभव, जो अब तक नहीं हुआ। कभी सोचा नहीं था, ऐसा होता है। अब डॉ व्यास फकत एक चिकित्सक नहीं थे। वे अम्बिका को लगभग चमत्कारिक ढंग से अपनी ओर खींच रहे थे। अम्बिका रात में बिछावन पर आई तो जेहन में डॉ व्यास ठहरे हुए थे – छ: फुटी गेहुंआ आकृति। अम्बिका को सबसे पहले उनका स्पर्श याद आया। डॉ व्यास ने उसकी नब्ज देखने हेतु उनकी कलाई में पडी चूडियो को उंगलियों से सरकाया था। पीठ पर आला रखते हुए चोटी आगे की ओर की थी। आंखो की जांच करते हुए पलकों पर अंगूठे को टिकाया था। अम्बिका ने पलकें मूंद कर उनपर बहुत मुलायमियत से तर्जनी फेरी। पलकों में इस तरह सिहरन हुई जैसे डॉ व्यास का स्पर्श अभी वहां है। पेट पर उनकी गर्म उंगलियो का दबाब अब भी बना हुआ है। डॉ व्यास आपका गरम-करारा स्पर्श जादुई है। शायद आपके स्पर्श से तरंगे उत्पन्न होती हैं जो मुझे आवेशित कर रही है। अम्बिका को याद आया वेइंग मशीन पर उसका वजन देखने हेतु वे उकडूं बैठकर मशीन पर झुके हुए थे। डॉ व्यास यह आपकी बहुत सरल पर बहुत प्रभावी मुद्रा थी। डॉ व्यास की हंसी – डॉ व्यास ऐसी संयत, सलीकेदार हंसी मैने पहली बार ही देखी है। आप शायद जानते है हंसने का तरीका मनुष्य के व्यक्तित्व को बनाता और बिगाडता है। डॉ  व्यास की दृष्टि – यह दृष्टि अम्बिका को एने चेहरे पर फिसलती हुई मालूम हो रही थी। डॉ व्यास आपकी दृष्टि की भेदन क्षमता असाधारण है। डॉ व्यास का चेहरा – इस चेहरे की खासियत? हां, डॉ व्यास आपके दांत बहुत उजले है जो आपके तेजस्वी चेहरे को प्राकृतिक चमक देते है और यह जो बात करते हुए आप क्षणांश के लिए पलकें मूंद कर खोलते है वह अद्भुत है, मैने पुष्प को कभी खिलते हुए नहीं देखा फिर भी सोचती हूं वह इस तरह बहुत आहिस्ता और नरमाई से खिलता होगा। डॉ व्यास की उम्र – डॉ व्यास आप बहुत युवा दिखते है, पर इतनी बडी-बडी ड़िग्रियां और अब स्थापित चिकित्सक है तो चालीस से कम नहीं होगे।

अम्बिका बडी देर तक उनकी उम्र के आंकडों में उलझी रही। अम्बिका की दशा विचित्र थी। डॉ व्यास जब बहुत समीप थे तब उनका समीप होना नहीं जाना और इस वक्त जब वे अपने घर में मीठी नींद सो रहे होंगे तब उनके समीप होने का बोध हो रहा है। जी चाहा कार स्टार्ट कर इसी वक्त डॉ व्यास के घर पहुंच जाए – डॉक्टर साहब मुझे कुछ हो गया है। आप कलीनिकली एक्सप्लेन करेंगे मुझे क्या हुआ है? पल्स देखिए। ब्लड प्रेशर मापिए। स्टेथोस्कोप से जांच? अच्छा ये पेट में दर्द इस तरफ जो रात अपनी शांति और निस्पंदन के कारण अम्बिका को उदार और मलिन लगती थी वह आज सुंदर लग रही है। बहुत दिनों के बाद, वर्षो बाद। उसने पुलक में भरते हुए करवट बदली। और सामने केशव दिख गया। सांसो का संतुलन बताता है केशव गहरी नींद में है।

अम्बिका निद्रामग्न केशव को देखती रही। केशव बहुत नियमित लगभग तराशी हुई दिनचर्या जीता है। इसकी दिनचर्या में जोड-घटाव की गुंजाइश नही होती। अम्बिका को उसे प्रत्यक्षत: कोई शिकायत, जो सचमुच शिकायत मानी जाए, नहीं है। बस बहुत सी छोटी-छोटी आम किस्म की रूठने मनाने वाली शिकायतें रही है। फिर भी वह इधर के वर्षो में अजब खीज, चिडचिडेपन से भरती गई है। संबंधों की नियमितता और एकसरता से उपजे ठहराव, ठंडेपन, सडांध, जडता के कारण उसके भीतर का वह सब मरता गया है जो कभी जीवित हुआ करता था। वह घंटो अकेली पडी रहती। चाहती मस्तिष्क में विचारों का दबाव न रहे और शून्यात्मक स्थिति में विश्राम की अवस्था में पडी रहे। गहन विषाद और निराशा का दौर ऐसा आया जब उसे लगने लगा कि जिंदगी को जिस तरह जी रही है। उस तरह नहीं जीना चाहती है। किस तरह जिए, नहीं जानती, बस इस तरह नहीं। इस तरह जीते हुए सब कुछ रस्म अदायगी सा लगने लगता है – प्रायोजित सा। नियतिबध्द। एक बाध्यता। वह वैसे भी मितभाषिणी रही है और इधर एक-दो वर्षों में उसका केशव से जरूरी बातों के अलावा सीधा संवाद कम ही हुआ। सोचती अवश्य कि दिन भर के बाद जब केशव लौटेगा, वह उसका जोरदार स्वागत कर दिन भर का ब्योरा देगी, पर जब केशव सामने आता तो उस पर एक श्लथ भाव तारी हो जाता और लगता उल्लेखनीय कुछ भी घटित नहीं हुआ जिसे रेखांकित कर केशव को बताया जाए। अम्बिका अपने अवसाद का कारण ढूंढती तो कारण न मिलता। कमी? प्रत्यक्षत: कुछ भी नहीं। असंतोष, अतृप्ति, तृष्णा मालूम नहीं। फिर क्या? पता नहीं।

और आजआज डॉ व्यास के संदर्भ में सोचते हुए उसे एकाएक सब कुछ अच्छा और सुंदर लगने लगा है। जिंदगी भी। जिंदगी कैसी भी हो इतनी महत्वहीन नहीं होती कि बाध्यता की तरह जी जाए। अम्बिका की इच्छा हो रही थी, जाए और डॉ व्यास को ध्यान से, खूब गहरी दृष्टि से देखे। पर अब तो बांबे वाली रिर्पोट आ जाने के बाद ही संभव होगा। जो कि दस दिन बाद मिलेगी। डॉ व्यास की सीढियां चढते हुए अम्बिका ने श्रीनिकेत से पूछ ही लिया –

” डॉ व्यास की बडी ख्याति है जबकि उम्र कुछ खास नहीं होगी।”
” मेरी ही उम्र के है चालीस-बयालिस के। व्यास की पत्नी भी डॉक्टर है। उनकी पोस्टिंग इटारसी में है।”

डॉ व्यास की पत्नी का यहां न होना अम्बिका को अपने अनुकूल प्रतीत हुआ। उसका चेहरा चमक उठा। वह अपने आप में मुस्करा दी। बेल बजाने पर मिठ्ठू बाहर निकला और उन लोगो को ड्राइंग रूम में बैठाकर अंदर चला गया। जल्दी ही डॉ व्यास आ गए।

” कैसी है आप?”

अम्बिका ने लक्ष्य किया, उसे देखकर डॉ व्यास की आंखे उत्साह से खिल उठी है।

” यह तो रिर्पोट देख कर आप ही बताएंगे।” अम्बिका ने बडी मोहक मुद्रा में गर्दन तिर्यक करके कहा।
” देखे रिर्पोट क्या कहती है। वैसे आज आप स्वस्थ दिखाई पडती है। पहले दिन नर्वस दिख रही थी।” डॉ व्यास रिर्पोट देखने लगे –
” यस , इन्फेक्शन है, कॉक्स एब्डामन। अच्छी बात ये है कि इनीशियल स्टेज में डायग्नोस हो गया। यह रोग दुसाध्य नहीं है।” डॉ व्यास पर्चा लिखते हुए अम्बिका को बहुत कुछ समझाते
” वे फीस नहीं लेते है और बार-बार जाना भद्दा लगता है। एक माह बाद बुलाया है, तभी चलेगे।”
” उन्होने कहा था कि बीच में कोई तकलीफ हो तो आ जाएं। मुझे तकलीफ है। मैं हार्ट डिसीज, कैंसर पता नहीं क्या-क्या रात भर सोचती रही और तुम गंभीरता से नहीं ले रहे हो।”
” अम्बिका तुम शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से अधिक बीमार हो। धैर्य से काम लो।”
” तकलीफ रहे तो धैर्य छूटने लगता है।” अम्बिका ने तीक्ष्ण स्वर में कह दिया।
” देखते है, श्रीनिकेत से बात करूंगा।” अम्बिका गरम हो जाए तो केशव इसी तरह आत्मसमर्पण कर देता है।
” श्रीनिकेत क्यों?”
” श्रीनिकेत की उपस्थिति में डॉक्टर साहब फीस लेने में सकुचाते है, हम अकेले जाएं तो ले लेंगे।”
” ले ले, तो अच्छा। संकोच तो न होगा।”

डॉ व्यास ने अम्बिका का ब्लडप्रेशर लिया। स्टेथोस्कोप से जांच की, पेट टटोला कहने लगे –

” आप अम्बिका जी घबरा गई है।आप सोचती अधिक है।”
” हां, कैंसर तक पहुंच चुकी है।” जवाब केशव ने दिया।
सुनकर डॉ व्यास, अम्बिका की ओर देखकर हंसने लगे -” मैं बैठा हूं न।”

कुछ है इस दृष्टि में। एक ऐसा समर्पित भाव जैसे, डॉ  व्यास सिर्फ उसी के लिए बने है।

” आपको दिखा लिया तो अब अच्छा लग रहा है। मैं सचमुच बहुत डिप्रेस्ड थी।”
” मैं कहता था, कुछ नहीं बेकार आपको परेशान किया।” केशव संकुचित हो आया।
” यहां न आती तो परेशान रहती। डॉक्टर कह दे, चिंता की कोई बात नहीं, इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव मरीज पर पडता है और वह स्वस्थ अनुभव करता है। अम्बिका जी ये एक लंबा कोर्स है, धैर्य चाहता है। टेंशन मत लीजिए। वैसे आज की सबसे बडी समस्या टेंशन ही है। वर्क प्रेशर, टेंशन, पोलुशन तनाव को दूर करने के लिए हमें फिर से ध्यान और योग की ओर लौटना चाहिए। तनाव मुक्ति के लिए शवासन उत्तम साधन है। मैने जब से शवासन और टहलना शुरू किया, रिलेक्स रहता हूं। आपके लिए टहलना और शवासन लाभप्रद होगा।”

बात समाप्त करते हुए शायद उन्हे ध्यान आया हो, वे अम्बिका पर ही केंद्रित रहे है। अत: केशव की ओर मुखातिब हुए –

” पुराणिकजी, शवासन आप भी कर सकते है। वर्क टेंशन तो आपको भी रहता होगा।”
” अभी तो सबसे बडा टेंशन धर्मपत्नी का है।” केशव ने तर्जनी से अम्बिका की ओर संकेत किया।

इस पर डॉ व्यास अम्बिका की ओर देख कर हंसे। वह हंसी अम्बिका की नसों में विद्युत धारा बनकर प्रवाहित होने लगी। बोली –

” आप एलेपैथी वाले ध्यान-योग पर आस्था रखते है, यह अद्भुत है।”
” परिणाम को देखकर आस्था हो जाती है। मैं भी कभी डिप्रेशन का शिकार हो चुका हूं और ध्यान से लाभ हुआ है। ध्यान के अभ्यास से शरीर की पूरी रासायनिक क्रिया में परिवर्तन आता है जो मानसिक-शारीरिक व्याधियों को दूर करने में हेल्प करता है।”

अम्बिका पूछना चाहती र्थी डॉ व्यास आपके डिप्रेशन का कारण? आपका जीवन चक्र? मेरे बारे में आपकी राय? नहीं पूछ सकी। विवेक का सख्त नियत्रंण और चेतना पर पडता यथार्थ का दबाव साहस को क्षीण कर देता है। चलते हुए केशव ने सौ का नोट टेबिल पर रखे पेपर वेट से दबा दिया। सेंटर टेबिल पर ही बटुआ रखा था।

” औपचारिकता न करें।” डॉ व्यास वह नोट अम्बिका के बटुए में डालने लगे।
” नहीं प्लीज।”

बटुआ छीनने के प्रयास में अम्बिका और डॉ व्यास के हाथ टकरा गए। डॉ व्यास ने अनायास अथवा सायास अम्बिका की कलाई पकडी और नोट उसकी हथेली पर रख दिया – ” बिल्कुल नहीं।” जब तक अम्बिका समझ पाती, उस क्षण क्या घट गया, तब तक डॉ व्यास उसकी कलाई मुक्त कर चुके थे। ओहओह डॉ व्यास आपने ये क्या किया? मेरा सब कुछ हरण कर लिया।

अम्बिका का चित्त अशांत है। चित्त को शांत करना है। वह शवासन के लिए प्रवर्त हो भूमि पर कंबल बिछा कर लेट गई। डॉ व्यास का स्वर प्रतिध्वनि होने लगा –

”ध्यान, योग का सातवां अंक है। यम, नियम, आसन प्राणायम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान, समाधि ध्यान में आने के लिए शवासन द्वारा मन और शरीर को शिथिल किया जाता है आंखे बंद रखे, दोनो पैरों की ऐडियों को मिलाएं, पैरों के दोनो अंगूठों को ढीला छोडें। दोनो भुजाओं को पैरों के दाएं-बाएं रख हथेलियां खुली और ढीली रखें, सोचे कि पैरों के अंगूठे ढीले पड क़र सुन्न हो रहे हैं, फिर उंगलियों, तलवों को शिथिल पडता महसूस करें

अम्बिका को अंगूठे सुन्न होते जान नहीं पडते। जेहन में मौजूद डॉ व्यास उत्पात मचा रहे है।

” मन को दोनो पिंडलियों पर केंद्रित करें, पिंडलियों, घुटनों को सुन्न होता महसूस करें। पैरों की मांसपेशियों का कसाव ढीला पडेग़ा और ऐसा आभास होगा, पैर शरीर में है ही नहीं”

पिंडलियां, घुटने सुन्न होते नहीं जान पड रहे। ड़ॉ व्यास घुस-पैठ कर रहे है।

” इसी प्रकार क्रमवार रूप से पेट, कमर, हृदय, छाती, पीठ, कंधे, कोहनी, भुजा, कलाई, मणिबंध, हाथ की उंगलियों को सुन्न होता महसूस करें। आभास होगा, गरदन और चेहरे की मांसपेशियों को आराम मिल रहा है, चेहरे में रक्त प्रवाह बढ ग़या है। श्वास-प्रश्वास सहज गति से हो रहा है। प्रक्रिया के बीच शरीर के किसी भाग को न हिलाएं”

नहीं, अम्बिका ऐसा कुछ भी नहीं महसूस नहीं कर पा रही। पेट, कमर को शिथिल होता महसूस डॉ व्यास  छाती, चेहरा, भाल डॉ व्यास  डॉ व्यास पीछा नहीं छोडते।

” पूरे शरीर को शिथिल करने में प्राय: आधा घंटा लगता है। शरीर विश्राम अवस्था में सोया हुआ है और गुरुत्वाकर्षण शक्ति चुंबक की भांति शरीर के फाइबर-सेल्स को भीतर से खींच रही है”

डॉ व्यास आप मुझे चुंबक की तरह अपनी ओर खींच रहे है और मैं नन्हे-बारीक लोह कणों की तरह आपकी दिशा में खिंची चली जा रही हूं। अम्बिका योग मुद्रा छोड क़र उठ बैठी। ऐसे झटके से उठी कि कम्बल उसके पास सिमट आया।

” इस तरह फिर से शरीर भारी लगने लगेगा, यहीं है शवासन ”

शवासन की ऐसी की तैसी, अम्बिका, डॉ व्यास के अतिरिक्त कुछ सोच नहीं पा रही है। उसने दोनो हाथों से कनपटियां थाम ली। कनपटियां तप्त है। यह क्या हो रहा है?

इस बार भी डॉ व्यास ने उनका आत्मीय स्वागत किया।बल्कि चाय भी पिलाई। रूटीन चेकअप के उपरांत कहा –

” आरसीनेक्स खाली पेट खाते रहना है। एक माह बाद इसकी पोटेन्सी कम की जाएगी।”

अम्बिका चाहती थी, डॉ व्यास बोलते रहें वह सुनती रहे। वही सामने बैठे रहे वह देखती रहे। उनकी समीपता का एहसास गुदगुदाता रहे। अम्बिका के भीतर उस क्षण परम आनंद का स्फुरण हुआ। यह आनंद कभी समाप्त न हो। आनंद ही आनंद अम्बिका के भीतर वह सब जो, मरता जा रहा था, लहलहा कर जी उठा। बल्कि उसे लगता है, मरा कुछ भी नहीं था। अम्बिका जिंदगी जीने का गुर सीख रही है। जिंदगी जीने का गुर

कोई भी क्षण अपनी उपस्थिति दर्ज कराए बिना गुजरने न पाए। जिजीविषा प्रबलतम रूप में हो और जिंदगी को उसके समूचेपन के साथ जिया जाए कि जिंदगी हर हाल में बेशकीमती और खूबसूरत है। डॉ व्यास से मिलने के बाद अम्बिका को लगता है, जीवन नितांत व्यक्तिगत मामला है और इसे अपने तरीके से जिया जाना चाहिए। समाज के नियम इस व्यक्तिगत जीवन को बाधित न करें। वह सोचती है, उसे जीवन की पुनर्रचित का अवसर मिले तो वह उस की पुनर्रचित जीवन का आरंभ डॉ व्यास के साथ करना चाहेगी। पुनर्रचनाडॉ व्यासअम्बिका अपनी सोच पर मुस्करा कर रह जाती है।

एक डिपार्टमेंटल स्टोर की ओपनिंग सेरोमनी में डॉ व्यास मिल गए तो अम्बिका के अतिरेक में भरते हुए मन ही मन कहा – ” अहो भाग्य।” अम्बिका, दोनो बेटियों के साथ इधर-उधर घूम कर चीजें देख रही थी। ऐन सामने डॉ व्यास आ खडे हुए।

” अम्बिका जी कैसी है?”
” ठीक हूं।” भीड क़े नाना स्वरों के बीच उसे कुछ तेज बोलना चाहिए था, पर वह बुदबुदा ही पाई। उन्होने फिर भी सुन लिया।
” आप एकदम स्वस्थ लग रही है।”
” हां, बेटर फील करती हूं। किसी दिन रूटीन चेकअप के लिए आऊंगी। ” कुछ परचेज किया?”
” ये दो ऑडियो कैसेट। सोने से पहले संगीत सुनना अच्छा लगता है।”
” संगीत मुझे भी पसंद है।” अम्बिका ने झूठ कहा।

बेटियां फिल्मी गाने सुनती है तो वह चीख पडती है, वॉल्यूम कम करो, कपाल फटने लगा।

अम्बिका, डॉ व्यास को बातों में उलझाए रखना चाहती थी पर उसे एक भी मुद्दा सूझ नहीं पडा। जिसके बारे में बहुत सोचो उसके सामने आ जाने पर मनुष्य शायद इसी तरह बावरा हो जाता है।

” नमस्कार डॉक साब।” पीछे से किसी ने डॉ व्यास को पुकार लिया और वे एक्सक्यूज मी कहते हुए चले गए। तब अम्बिका को एक साथ बहुत सी बातें याद आ गई। सबसे पहले ये कि उनसे कभी घर आने का आग्रह करना चाहती थी। अम्बिका को निरंतर महसूस होता रहा, दो आंखे उसका पीछा कर रही है और उसने उत्साह में आकर बेटियों की पसंद की बहुत सी चीजें खरीद डाली। उसके इस उदात्त भाव पर लडक़ियां चकित थी। अम्बिका के वश में होता तो वह सारा जहान खरीद लेती।

अम्बिका के बहुत सारे ख्वाब एक साथ सामने आ रहे है। बेशुमार ख्वाब। वह सोचती थी, जिंदगी ख्वाबों से खाली हो चुकी है जबकि ख्वाब कभी नहीं मरते। मनुष्य जिंदगी-भर ख्वाबों के संचय में लगा रहता है, भले ही वह ख्वाबों का संचित होना जान न पाए। यह एक अनथक प्रयास है जो जीवन के ठीक सबसे अंतिम क्षण मैं जाकर थमता है। अम्बिका के भीतर राग, भोग, शोक, पीडा, कामना, भय, जिजीविषा, स्वप्न सब कुछ मौजूद है। कुछ भी चुका नही है। अम्बिका बिछावन में लेटी हुई ठंडी गहरी सांसे छोडती है – जिस शख्स ने जीवन के प्रति मोह जागृत किया उसे नहीं कह सकती, वह उसकी चाहना करने लगी है। इंसान यहां पर बंधा हुआ होता है। ये सारे पहरे प्रेम पर ही क्यों लगाए जाते है? मनुष्य हर किसी से शत्रुता, घृणा, प्रतिद्वंद्विता, संघर्ष करने के लिए स्वत्रंत्र है पर हए किसी से प्रेम नहीं कर सकता। अम्बिका उस व्यक्ति से भी प्रेम करने के लिए सामाजिक रूप से स्वत्रंत्र नही मानी जा सकती जिसके कारण उसने अवसाद और निराशा के व्यूह से निकलना सीखा है।

वर्जित फल! समाज और समाज के नीतिबध्द कायदे! अम्बिका चेकअप के लिए डॉ व्यास के घर को निकली तो केशव के साथ श्रीनिकेत भी था। अम्बिका, श्रीनिकेत से बोली –

” डॉ व्यास फीस नही लेते है, हमें संकोच होता है। क्या कभी उन्हे रात्रि भोज पर बुलाया जाए?”
” शर्त बस इतनी सी कि भोज में मैं भी रहूंगा।” श्रीनिकेत ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया।
” चलो इसी बहाने हमें भी अच्छा-अच्छा खाने को मिलेगा।” केशव ने प्रस्ताव पारित कर दिया।

केशव व्यवसायी है और व्यवसायिक कारणों से अधिकारियों, नेताओं, व्यवसायियों को कभी घर, कभी बाहर भोज पर आमंत्रित करता रहता है। वह इस तरह संबंध विकसित करने को व्यवसाय के पार्ट के रूप में देखता है। डॉ व्यास ने अम्बिका का वजन किया, रक्तचाप मापा। सुबह खाने वाली गोली में परिवर्तन किया। तत्पश्चात श्रीनिकेत ने रात्रिभोज का आमंत्रण दिया।

” अम्बिका जी पेशेन्ट है और श्रीनिकेत तुम पेशेन्ट पर भार डाल रहे हो।” कहते हुए डॉ व्यास ने अम्बिका को ताका।
” पेशेन्ट कहां हूं, रूटीन वर्क करती हूं। आप आएं, हमें अच्छा लगेगा।” अम्बिका तत्परता में बोल गई।
” यह होती है स्पिरिट। जरूर आऊंगा।”

अम्बिका ने सारा काम बडी स्फ़ूर्ति से लगभग उन्मत्त भाव से संपन्न कर डाला। छप्पन भोग तैयार किए, खुद भी रुचि से तैयार हुई। मां को बनी-ठनी देखकर निम्मी, निन्नी उत्फुल्ल हो गई। इधर एक दो वर्षो से वे दोनो अम्बिका को मुंह गाडे, उदास बिस्तर पर पसरी हुई देखती थी और उनकी दिनचर्या प्रभावित होती थी।

” ममा, इसी तरह खूब अच्छी साडियां पहना करो। हमें अच्छा लगता है।” निन्नी बोली।
” ममा, तुम आज बहुत ब्यूटिफुल लग रही हो।” निम्मी बोली।
” पर ममा, तुम्हारे डॉक्टर तो अभी तक नहीं आए।” निन्नी बोली।

तुम्हारे डॉक्टर ? यानी मेरे डॉक्टर ? डॉ  व्यास आप मेरे डॉक्टर बनना पसंद करेंगे? एक विजयी चमक अम्बिका के अंतस में फूटी और स्निग्ध कपोलों पर लालिमा बन कर छा गई। डॉक्टर व्यास की दृष्टि का अनुगमन कर रही अम्बिका स्पष्ट रूप से महसूस कर रही है, वे घर की सुव्यवस्था निहारते हुए कनखी से उसका निरीक्षण किए डालते है। डॉ व्यास आप मुझसे प्रभावित है, इसका स्पष्ट संकेत देंगे?

” पुराणिकजी आपका घर बडा खूबसूरत है।” डॉ व्यास कह रहे है।

डॉ व्यास मुझे मालूम है, घर के मिस आप मेरी सराहना कर रहे है।

” हमारी होम मिनिस्टर का कमाल है।” केशव ने अम्बिका की ओर इंगित किया।
” होम मिनिस्टर?” डॉ व्यास हंसने लगे –
” आपके होम मिनिस्टर ने खाना बहुत बढिया बनाया है”

खाने के मिस मेरी सराहना

” बढिया खाना मिल जाए तो आदमी का दिन सफल हो जाता है।”

डॉ व्यास ने एक क्षण को आंखे मूंदी फिर खोल दी। डॉ व्यास इन आंखो में मेरे लिए कुछ है, मैं जानती हूं। डॉ व्यास ने कई मुद्दों पर बातें की। चलने से पूर्व काफी समाप्त करते हुए डॉ व्यास ने अम्बिका से पूछा –

” अब कैसा फील करती है?”

कैसा फील करती हूं? ताप, धीमा नशा, खुमारी, बहुत मध्दिम करेंट की गुदगुदीभरी झनझनाहट, अकुलाहट, बेचैनी। आपको जानना चाहती हूं, छूना चाहती हूं, महसूसना चाहती हूं। मैं अपनी फीलिंग पूरी तरह बता नहीं पाऊंगी और आप भी क्लीनिकली एक्सप्लेन कर नहीं पाएंगे।

प्रत्यक्षत: बोली – ” बेटर फील करती हूं, पहले मन एकदम उचाट था।”
” डॉक साब ये पेट दर्द से कैंसर तक सोच चुकी थी और हम इनके राम नाम सत्य की प्रतीक्षा में थे।” केशव ने कहा तो अम्बिका ने उसकी ओर दृष्टि संधान किया – ऐसी बातें कहने की है।
” ओ गॉड।” डॉ व्यास हंसे। डॉ व्यास आप हंसते हुए बहुत जंचते है।
” अम्बिकाजी आप अपनी पोजीशन को नॉर्मल समझिए। कॉक्स एब्डामन के बहुत मरीजों की आंत में आब्सट्रेक्शन(अवरोध) हो जाता है और सर्जरी करनी पडती है। टेंशन न ले। जब भी कंसल्ट करना चाहे घर आ जाए, फोन कर ले।”

रसोई समेट कर अम्बिका लेटी तो दिन भर का लेखा-जोखा सामने था। आज वह अपना चरित्र-चित्रण करने लगी – मैं स्वभाव से छलिया भी नही हूं, केशव के साथ छल नहीं करना चाहती। ठीक है, केशव के प्रति मैं विरक्ति महसूस करने लगी थी, पर किसी अन्य के प्रति आसक्त नहीं थी। मै स्वभाव से साहसी भी नहीं हूं। कभी डॉ व्यास प्रेम को अभिव्यक्त करें तो बहुत संभव है, मैं घबरा जाऊंगी और इस घबराहट में इंकार कर दूंगी। दुत्कार भी सकती हूं। औरऔरकभी चुनाव की स्थिति बनी तब? किसी एक के लिए फिर ये कोई एक डॉ व्यास ही क्यों न हो अपने घर-परिवार से उदासीन हो जाना आसान नहीं होगा। और केशव? यह सच है, इसकी संगत में अब दोहराव लगता है, पर इसके प्रति मेरी जिम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। और फिर केशव एक इकाई मात्र नहीं है। इसे घर, बच्चियां, सामाजिक संर्दभो के साथ समग्र रूप में देखना पडता है। यदि सामाजिक दबाव न हो तो भी केशव को नहीं छोड सकूंगी। हां, डॉ व्यास के लिए भी नही। मैं उसे प्यार करती हूं। मै केशव को ही प्यार करती हूं और अब डॉ व्यास को भी प्यार करने लगी हूं। इस  ही  और  भी  में मूल और सूद का संबध है।

अम्बिका उद्भ्रांत है – क्या एक स्त्री दो पुरुषों को सम भाव से प्रेम नहीं कर सकती? संतानो, माता-पिता को समान रूप से प्रेम कर सकती है तो एक से अधिक पुरूषों से प्रेम क्यों नहीं कर सकती? यह असामाजिक हो सकता है, पर अस्वाभिक क्यों? अव्यवहारिक हो सकता है, पर अप्राकृतिक क्यों?

अम्बिका की दृष्टि सोए हुए केशव की पीठ पर पडी। उसे केशव पर बहुत सा प्यार आया और दया भी। केशव तुम अच्छे पति हो, बहुत-बहुत अच्छे। मैं सोचती थी, तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम खत्म हो चुका है। बस निबाहने की जवाबदेही बची है, पर डॉ व्यास के परिप्रेक्ष्य में सोचते हुए पाती हूं मैं तुम्हे आज भी प्रेम करती हूं। यद्यपि यह भी उतना ही सच है, मैं डॉक्टर व्यास को भी प्रेम करने लगी हूं। उतना ही जितना तुम्हे।

तुम समझ सकते हो, प्रेम कोई प्रतिशत नही है जो एक ओर बढे तो दूसरी ओर घट जाए। प्रेम एक भावना है जिसे सौ की सीमा में नहीं बांधा जा सकता है और न ही विभाजित किया जा सकता है। इसे कोई विशिष्ट प्रतिस्पर्धा भी मत समझो क्योकि तुम दोनो में तुलना नहीं हो सकती। तुम दोनो ही अतुलनीय हो। डॉ व्यास तुम्हारा स्थानापन्न नहीं बन सकते बल्कि उसके लिए मेरे भीतर एक अलग स्थान बन गया है। मुझे लगता है, केशव कभी भी किसी का स्थानपन्न नही बन सकता बल्कि सबका अपना अलग स्थान हुआ करता है। एक साथ दो पुरुषों से प्रेम करते हुए मुझे असहज और विचित्र कुछ भी नहीं लग रहा है।

अच्छा बताओ तुम कभी एकसरता से संत्रस्त नही होते? आखिर पंद्रह वर्षो से एक जैसा जीवन जीते रहना कोई छोटी और मामूली त्रासदी नहीं है। या कि तुम इतने व्यस्त रहते हो कि थोडा-सा ठहर कर कभी जानना नहीं चाहा, दांपत्य जीवन कैस बीत रहा है – उत्तम, मध्यम अथवा निकृष्ट। तुम सचमुच इतने परितृप्त हो? और तुम्हारे भीतर कुछ घट भी रहा हो तो उस भेद को मैं कैसे जान सकती हूं जैसे कि तुम मेरे भीतर घट रहे को नहीं जान सकते। मैं क्या करूं केशव, मैं डॉ व्यास के प्रति जबरदस्त आकर्षण महसूस करती हूं। वे मुझे पूर्ण पुरुष लगते है। अ कंप्लीट मैन। उन्हे पाने की दुर्दमनीय कामना है। उन्हे लेकर इन दिनो मैं इतनी प्रसन्न और निमग्न हूं कि मुझे जड में चेतना दिखाई पडती है।

अम्बिका को डॉ व्यास का फोन नम्बर कंठस्थ हो गया है। और उसने पाया, उसकी थरथराती उंगलियां उनका नम्बर डायल कर रही है। यह एक सुहानी शाम है। कुछ देर पहले हुई बारिश ने मौसम को धो-पोंछ दिया है।

” हलो।” डॉ व्यास की आवाज बडी क़ोमलता से उसके भीतर उतरती हुई वृत्ताकार तरंगे बनकर समूची देह में फैल गई।
” मै अम्बिका।”
” हल्लो अम्बिका जी।” डॉ व्यास के स्वर में अकस्मात तेजी भर गई।इस तेजी ने अम्बिका को स्फूर्त कर दिया।
” आपको डिस्टर्ब तो नही किया?” अम्बिका ने इस कदर मिठास के साथ पूछा कि सर बनावटी हो गया।
” नही, नहीं बस टहलने निकल रहा था। आपका टहलना जारी है?”
” शुरू कब किया जो जारी रहता।”
” यह गलत बात है। दवाएं अपनी जगह है, एकसरसाइज अपनी जगह।”
” बच्चों के साथ अपने लिए वक्त कहां। शाम को बच्चो के टयूटर आ जाते है, दूसरे अकेले टहलने जाना आकवर्ड लगता है।”
” तो हमारे साथ चलिए।” डॉ व्यास हंसे। ” मजाक कर रहा था। टहलना शुरू कीजिए।”

मजाक मत कीजिए डॉ व्यास।

” कोशिश करूंगी।”
” इस कोशिश में ही तो बात बनती नहीं। बाई दि वे, फोन कैसे किया?”
” आजकल कुछ वीकनेस लगती है। उठते बैठते हुए बेकबोन में दर्द चिलक सी उठती है।”
” अच्छा-अच्छा। आना चाहे कभी भी आ जाए। देख लूंगा।”
” किसी दिन आती हूं।”

तो हमारे साथ चलिए इस कोशिश मे तो बात बनती नहीं तो हमारे…. इस कोशिश डॉ व्यास आप कुछ संकेत दे रहे है? मुझे देख कर आपकी जो आंखो मे चमक, चेहरे मे तृप्ति, स्वर में आह्लाद समा जाता है, उसमें मेरे प्रति एक नरम भाव है, मैं जानती हूं। विजय की विधिवत उद्धोषणा नहीं हुई, पर अम्बिका को विजय का आभास मिलने लगा है। जी चाहा खूब चहचहा कर घर गुंजार कर दे। उसे जो भी सी  ड़ी  सामने पडी दिखी, उसने सी ड़ी  प्लेयर में लगाई और तेज वाल्यूम में संगीत सुनने लगी।” हम्मा.. हम्मा..एक हो गए हम और तुम।” अम्बिका सुर में सुर मिला कर गा रही है। उसे याद आया, कभी वह अच्छा गाती थी। अब सब कुछ भूली-बिसरी बातें हो गई।

हम थोडा-थोडा बदलते हुए एक दिन इतना बदल जाते है कि भूल जाते है, पहले, बहुत पहले हम कैसे हुआ करते थे। हमारे भीतर का बहुत कुछ पुराना पडते हुए पता नहीं कहां गुम हो जाता है। निन्नी और निम्मी ने मां को गाते थिरकते देखा तो घबरा गई। निन्नी बोली –

” ममा, बंद कीजिए, आपको सर दर्द हो जाएगा।”
” अच्छा लग रहा है।” अम्बिका ने दोनो लडक़ियों को अपने पास बिठा लिया।

संगीत में आनंद है। यह दुनियावी पेचिदगियों से दूर खूबसूरत दुनिया में ले जाता है। अम्बिका को लगा, वह आज भी बहुत युवा, ताजा, ऊर्जावान, क्रियाशील है। उसके अंतस में ऊर्जा, उत्साह, उमंग की अजस्त्र धार बह रही है।

” केशव मुझे रीढ मे दर्द रहता है। सोचती हूं डॉ व्यास से कन्सल्ट कर लिया जाए।”
” अब रीढ में दर्द हो गया? अम्बिका मुझे तो लगता है, तुम मानसिक रूप से बीमार हो। कोई ग्रन्थि विकार है, ट्रीटमेन्ट चल रहा है, सिस्टम को नॉर्मल होने में समय लगता है। टहलने को एडवाइस किया तो वह करना नहीं है। डॉ व्यास सोचते होगे, अच्छा मुफ्त का मरीज गले पड ग़या।”
” बता रही हूं, रीढ में तकलीफ है।”
”तुम्हारी तकलीफ खत्म होने की बजाय बढ रही है तो तुम्हारा ये स्पेशलिस्ट बेकार है। चलो दिल्ली, बॉम्बे कही दिखाया जाए।”

केशव आमतौर पर कटु वचन नहीं कहता, उसे इस समय कुछ व्यवसाय संबंधी अडचन है और वह भडक़ गया।

” अब ये बात भी नही।” गडबडा गई अम्बिका। वैसे भी उसे रीढ में मामूली तकलीफ थी जो डॉ व्यास के घर जाने का अच्छा बहाना थी।

संस्काराें की वर्जनाएं चेतावनी देती रही, फिर भी अम्बिका स्वयं कार ड्राइव कर डॉ व्यास के घर चल दी। उन्हे देखने की, महसूस करने की प्यास सी है जो बुझती नही। प्यास विचित्र होती है, सोचने मात्र से लग आती है, फिर बुझाए नही बुझती। डोर बैल बजाने पर मिठ्ठू आया और अम्बिका को ड्राइंग रूम में बिठा कर भीतर डॉ व्यास को सूचित करने चला गया। पहले मिठ्ठू अब डॉ व्यास निकलेगे। इस घर के नियम शायद कभी नहीं बदलते। डॉ व्यास खादी के सफेद कुर्ते पैजामे और उलझे-बिखरे बालों में भव्य लग रहे थे। उन्होने आते ही इधर उधर गर्दन घुमाकर कमरे में फैली खुशबू का स्रोत जानना चाहा। अम्बिका झिझकी कि जल्दबाजी में परफ्यूम का प्रयोग कुछ अधिक कर लिया है। असभ्यता सूचक। खुशबू बस इतनी ही जो प्राकृतिक लगे।

” अकेली आई है?”

अम्बिका की झिझक बढ र्ग़ई इस तरह अकेले आने को डॉ व्यास गलत अर्थ में तो नहीं लेगे।

” पुराणिकजी को फुर्सत नहीं तो।”
”तो आप पढी-लिखी स्त्रियां पति पर इतना डिपैन्ड क्यों रहना चाहती है? आपको तकलीफ है और तकलीफ को गंभीरता से लेकर आप दिखाने आई है, यह अच्छी बात है। आजकल लोगो में अवेयरनैस आ गई है। यह मैं कहूंगा। हां, आप फोन पर कुछ प्रॉब्लम बता रही थी।”

डॉ व्यास की आंखे खिल उठी। डॉ व्यास आपकी खिली आंखे मिथ्या अथवा कृत्रिम नहीं है। ये मेरा स्थान तय करती है। वह स्थान जानना चाहती हूं।

” पेट ऑलमोस्ट ठीक है। बैकबोन की प्रॉब्लम है।”
” लेट जाइए, देख लेते है।”

अम्बिका वांछित एकान्त में मनचाहे व्यक्ति का स्पर्श महसूसती रही – महसूसती रही…महसूसती रही।

” कुछ नहीं है। रिकवरी सैटिसफैक्टरी है। ट्रीटमेन्ट कन्टीन्यू रखे। एक बार पेट का अल्ट्रासाउन्ड करा ले, कम्पेयर हो जाएगा।”
” ठीक है।”
” चाय पीजियेगा? मिठ्ठू बना रहा है।”

तो आप, डॉ व्यास मुझे चाय के बहाने रोकना चाहते है? जी तो करता है, यहीं बस जाऊं पर-

” पी लूंगी।”

और चाय पीते हुए अम्बिका को एक भी कायदे की बात नही सूझी जो वहां रुके रहने का कारण बनती। और डॉ व्यास ही कहां कुछ कह पाए। कमरे में मौन था और आरामदेह लग रहा था। चाय खत्म कर अम्बिका चलने को उध्दत हुई। वे रोकना चाहते थे पर रोकने का कोई कारण नहीं मिला । वे रास्ते भर उनकी समीक्षा करती रही – डॉ व्यास आप अरसिक है या विमूढ? क्या आप बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहे है, मैं आप की ओर आकर्षित हूं, और आप के पास जाने के बहाने ढूंढती हूं? और यदि आप ये कहे, स्त्री का मन भांप कर ही पुरुष आगे बढता है तो मन कोई किताब तो नहीं जिसे खोलकर कहूं, इसमें आप के लिए संदेश है। आप शायद शुरुआत करने से डरते है। यह शुरुआत बहुत कठिन, लगभग असंभव सी स्थिति क्यों होती है?

” केशव, अभी एक दिन डॉ व्यास मार्केट में मिल गए थे। एक बार फिर अल्ट्रासाउन्ड कराने को कहा है।” अम्बिका ने डॉ व्यास के घर जाना छिपा लिया।

इस तरह के झूठ, मक्कारियां, चोरी, लुकाव-छिपाव, छल गृहस्थी को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी होते है।

” संडे को चलते है।” केशव ने नहीं पूछा, डॉ व्यास ने और क्या कहा। केशव हर बात को इतने ठंडे और सहज ढंग से कैसे ले पाता है, अचंभित होती है अम्बिका। इधर के वर्षो में केशव की उपस्थिति खीझ से भरती रही है और उसकी क्षमताओं और विशेषताओं को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि अब जब उसे फिर से सबकुछ अच्छा और सुंदर लगने लगा है तब पता चल रहा है केशव के साथ जिंदगी अच्छी ही बीत रही थी, रही है। धन दौलत, बच्चे, मान मर्यादा, ऐसी कोई कमी नहीं है जो सचमुच कमी समझी जाए। शायद वह अपनी सुविधा-संपन्न भूमिका से ऊबने लगी थी।

अल्ट्रासाउन्ड की रिर्पोट आ गई।अम्बिका रिर्पोट दिखाने अकेली जाना चाहती थी, पर बार-बार यह अशोभन लगेगा।

” केशव हमें वेडिंग रिसेप्शन में जाना है, उसी तरफ से डॉ व्यास को रिर्पोट दिखा लेगे।” अम्बिका बोली।
” कभी-कभी तुम भी यार दिमाग से काम ले लेती हो।” केशव ने चुहल की – ” पर ऐसी सजी बजी हो कि लगता नहीं डॉक्टर को दिखाने जा रही हो।”
” पार्टी में पेशेन्ट बनकर भी नही जाया जा सकता।”
” ये भी ठीक है।”

इस बार डॉ व्यास के घर पर दृश्य बदला हुआ था। डॉ व्यास दीवान पर आसन लगाए दो छोटे बच्चों के साथ शतरंज खेल रहे थे और उनकी पत्नी मोक्षदा व्यास दर्शक बनी हुई थी। अम्बिका निराश हुई। सजधज कर समाधि भंग कर डालने आई है और यहां

डॉ व्यास ने अम्बिका को भरपूर निगाह से देखा –

” आइए।”
” अल्ट्रासाउन्ड की रिर्पोट।”

केशव ने लिफाफा मेज पर रख दिया।

” हां-हां, वन मिनट।ये मेरी वाइफ और मोक्षदा, ये केशव पुराणिक, ये मिसेस पुराणिक।”

डॉ व्यास ने परिचय कराया। अम्बिका ने देखा मध्य ऊंचाई की कुछ भरी देह की सांवली सी स्त्री, कुल मिलाकर ठीकठाक, डॉ व्यास से तुलना करे तो सामान्य और अम्बिका से तुलना करे तो अति सामान्य। चेहरे की दूधिया, स्निर्ग्धमहीन त्वचा और केशव का भूरा स्याहपन अम्बिका की उम्र का पता नहीं चलने देता। वह अति सामान्य स्त्री अम्बिका को आक्रान्त कर रही है।

डॉ व्यास अंग्रजी में श्रीनिकेत का उल्लेख करते हुए अम्बिका की हिस्ट्री मोक्षदा को बताते रहे। अम्बिका अंग्रेजी अच्छी तरह बोल नहीं पाती पर समझती है। मोक्षदा सिर की जुम्बिश देते हुए डॉ व्यास की बातें ध्यान पूर्वक सुनती रही। डॉ व्यास का ध्यान आज पूरी तरह पत्नी पर केंद्रित था। अम्बिका को मोक्षदा सेर् ईष्या हुई। किस कुसाइत में यहां आई। उसने डॉ व्यास को ताका। उसे डॉ व्यास असहज लगे जैसे समझ न पा रहे हो इस स्थिति को कैसे ले। डॉ व्यास आप मोक्षदा के साथ कई वर्षो से साथ रहने की त्रासदी की तरह नहीं लेते? एकसरता, दोहराव आपके भीतर जडता नहीं भरता? आपको किसी परिवर्तन, नवीनता, अनोखेपन की चाह नही? आप खुश है?

डॉ व्यास अल्ट्रासाउन्ड रिर्पोट देखते हुए बोले –

” रिर्पोट तो ठीक है। बीमारी के लक्षण वाशआउट हो गए है। आरसीनेक्स लेते रहना है।”

कहते हुए उन्होने अपने घोडे क़ो ढाई घर चला कर चाल चली।अम्बिका पीडित हो गई। डॉ व्यास अब आप असहनीय हो रहे है। इस तरह मेरी उपेक्षा का कारण? पत्नी का खौफ?

” डॉक साब हमें इजाजत दीजिए, एक रिसेप्शन में जाना है।”

केशव को समझ गया, आज डॉ व्यास का चित्त बच्चों और खेल में रमा है।

” ओ  क़े ” ड़ॉ व्यास औपचारिकतावश उठ कर खडे हो गए।
” बहुत दिनो के बाद बच्चे अपने पापा से मिले है तो शतरंज खेला जा रहा है।” मोक्षदा ने न जाने क्या सोचकर या कुछ न सोचकर कहा।
” सॉरी हमने डिस्टर्ब किया।” केशव की संकोची वृत्ति मुखर हो गई।
” ऐसी कोई बात नहीं।” डॉ व्यास ने कहा पर नित्य की भांति उन्हे बाहर छोडने नहीं आए।

अम्बिका का चेहरा पराजय के भाव से बुझ गया। कल्पानाओं ख्यालों में मनुष्य कितना स्वत्रंत्र, स्वछन्द और मौजूं होता है। जो सोचता है पा लेता है और यथार्थ के अपने दबाव, कटुताएं, सीमाएं है। अम्बिका को अभी-अभी सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था और अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। किसी ने खूब कहा है, मन हारे हार है, मन के जीते जीत। अधिकार जैसी स्थिति नहीं बनी है फिर भी वह डॉ व्यास पर अपना अधिकार समझने लगी है। क्यों उसे लगता है, डॉ व्यास को उसकी जरूरत होनी चाहिए? क्यों होता है ऐसा जब खुद पर खुद का नियंत्रण नहीं रहता?

विपुल प्रकाश से जगर-मगर करता वैवाहिक पंडाल अम्बिका को धूसर-स्याह प्रतीत हो रहा था। बाह्य वातावरण का अपना व्यक्तित्व कुछ नहीं होता, वह वैस ही दिखाई पडता है। हम खुश है तो बाहर भी खुशी दिखाई देती है और हम दु:खी है तो सब कुछ विषाद भरा हो जाता है। अम्बिका मन को साधना चाहती है पर वह दांव हार चुकी है। वह इतनी कुपित और पीडित है कि चाहती है डॉ व्यास अब कभी याद न आएं। वह उन्हे भूलना चाहती है, वे याद आते है। भूलने का प्रयास तेज करती है, वे शिद्दत से याद आते है, वह अपनी दुनिया से डॉ व्यास को निकालना चाहती है पर उसकी दुनिया डॉ व्यास के एहसास से बनी हुई है और उनके निकल जाने पर दुनिया के नष्ट होने का अम्देशा है। अम्बिका ने डॉ व्यास का निर्लिप-निराशाजनक व्यवहार सहन नहीं हो पा रहा। हार स्वीकारने के लिए विजेता का सा जिगर चाहिए।

डॉ व्यास आपने मेरी उपेक्षा क्यों की? मैं चेतर्न अवचेतन दशा में आपके साथ जीती रही हूं। मुझसे तिरस्कार सहा न जाएगा। आप इस तरह मेरे आत्मबल को क्षीण करेगें जबकि चिकित्सक होने के नाते आप जानते ही होगे, रोगी के लिए दवाई से अधिक आत्मबल जरूरी होता है। अम्बिका शायद सैडिस्ट होती जा रही है। उसे लगता है, कोई उसका नाम पुकार रहा है – डॉ व्यास, दिशाएं, हवाएं, शून्य ही। वह डॉ व्यास का नंबर डायल करती, वे हलो-हलो करते और अम्बिका मौन। उनके स्वर में झलकती परेशानी से उसे आनंद मिलता। बदला लेने का संतोष। प्रतिशोध की आदिम वृत्ति प्राय: सभी में होती है।

दिन बहुत मंद और सुस्त हो गए। बडी क़ठिनाई से दो माह बीते और तब जाकर डॉ व्यास के घर रूटीन चेकअप के बहाने जाने का सुयोग हुआ। अम्बिका को आशा थी डॉ व्यास का जो संतुलित आचरण था वह मोक्षदा के खौफ के कारण, अब वे पहले की तरह गरमजोशी से पेश आएंगे। यह सोचते हुए उसके भीतर आशा की स्फुलिंग हुई। पर यहां डॉ व्यास के व्यवहार का संतुलन कायम था। अम्बिका का दिल बैठने लगा। ये मेरी कलाई थाम नब्ज क्यों नहीं देखते? ब्लडप्रेशर ही चेक करें, पेट का मुआयना, कुछ नहीं। बेवकूफ आदमी। कहना पडा –

” ब्लडप्रेशर चेक कीजिए?”
” ऐनी प्रॉब्लम?”
” सीढियां चढ क़र आई तो लगा, दम फूल रहा है।”
” क़ुछ नहीं हैं। इसलिए मैं एकसरसाइज पर, टहलने पर जोर देता हूं। शरीर को जितना आराम दो, वह आराम का आदी हो जाता है, सुस्ती आती है।” डॉ व्यास ने दो टूक कहा।
” डॉक साब ये इधर सुस्त पडी रहती है।” केशव ने जानकारी दी।

डॉ व्यास आप जिम्मेदार है।

” यह ठीक नहीं, मुझे लगता है, आप ठीक से खाती पीती नहीं है। अपना ध्यान रखिए। ट्रीटमेन्ट को लगभग सात माह हो रहे है। कोर्स नौ माह का है पर एहतियात के तौर पर आप एक साल तक दवा लें। ठीक रहेगा।”

फिर उन्होने केशव से कुछ औपचारिक बातें की, अम्बिका की ओर देखने की आवश्यकता नहीं समझी। अम्बिका के भीतर क्रोध, खीझ, निसहायता का आवेग उमडा। डॉ व्यास आप शहर के सफलतम चिकित्सक होगें पर निहायत अक्षम और बेवकूफ है। तभी मेरे मन के भाव नहीं ताड पा रहे है। क्या सचमुच आप मुझसे थोडा भी प्रभावित नहीं है? आप पेशेन्ट से लगाव रख सकते है और क्यों रखे, पर मैं फकत मरीज नहीं, सुंदर और आकर्षक भी हूं। लोग मेरी ओर आकृष्ट होते रहे है। यह पहला मौका है जब मै किसी की ओर आकर्षित हूं और आप समझते नहीं।

अम्बिका को नींद नहीं आ रही है। वह विजय की उद्धोषणा का इंतजार कर रही थी और विजय का आभास ही गलत साबित हो रहा है। वह जैसे अब तक जिस घर, मोहल्ले, दुनिया में बडे अधिकार और निश्चिंतता के साथ रह रही थी, वह किसी प्रभावशाली व्यक्ति के आदेश पर इस कदर उजाड दी गई है कि लगता नही कभी यहां एक भरा पूरा संसार आबाद था। उसे लगा, गहन दु:ख, विषाद, पीडा के प्रहर से सिकुड क़र वह मुटठी भर रह गई है। रीढ क़ी हड्डी में सधाव नहीं रहा, आंतरिक अंग एकाएक गायब हो गए है और भीतर एक विशाल शून्य उभर रहा है।

अम्बिका आखिर चाहती क्या है? अपनी वास्तविक जिंदगी के समानांतर एक और जिंदगी। जो इच्छानुसार, सुविधानुसार रची-बुनी जाए। एक जिंदगी केशव के साथ दूसरी डॉ व्यास के साथ। एक जिंदगी क्रेंद पर दूसरी परिधि पर हो और यह क्रम जिंदगी के अंतिम क्षण तक निर्बाध चलता रह सके। एक दो बार डॉ व्यास सार्वजनिक स्थलों पर मिले किंतु अम्बिका को अनदेखा कर गए। यह तकलीफदेह था। अम्बिका उदास हो गई। जीवनशक्ति समाप्त। कोई उद्दीपन नहीं, स्फुलिंग नहीं। कभी पेट में ऐठन, कभी छाती में दर्द, कभी भारीपन का एहसास, कभी सांस फूलती जान पडती है। देह ताप से जल रही है तो मस्तिष्क पर दबाब है, अब स्मृति लोप हो रही है, छोटी छोटी बातों, चीजों, नामों को याद रखना दूभर हो रहा है। अस्थि-मज्जा, अवयवों, मांसपेशियों, रक्त, वजन का त्वरा से क्षरण हो रहा है और अंत समय निकट आता प्रतीत हो रहा है।

” केशव मुझे ताप है।”
” नहीं तो।” केशव ने उसका भाल, कपोल,गला,हथेली टटोल डाली।
” मुझे लगता है।”
” अम्दरूनी बुखार हो सकता है। तुम सुस्त दिखती हो।”
” कुछ अच्छा नही लगता। केशव मैं कभी ठीक नही हो सकती।”अम्बिका ने बहुत कातर भाव से कहा तो केशव ने भावुक हो कर उसे अपनी बाहों मे घेर लिया।
” पागल हो। कोर्स पूरा होने को है और कहती हो, ठीक नही हो सकती।”
अम्बिका का जी भर आया – ” ऐसा लगता है।”
” कहो तो बॉम्बे हॉस्पिटल मे दिखा लाऊं। सेकेन्ड ओपिनीयनन मिल जाएगी और हमें भी विश्वास हो जाएगा, उपचार सही लाइन पर हुआ। कई बार मरीज को लगता है, उसका उपचार सही तरह नहीं हो रहा है और वह मानसिक रूप से परेशान रहता है।”
” इलाज तो ठीक हुआ।”
” तुम खुश रहा करो।”
” हूं।”
” कोर्स पूरा हो जाए तो ट्रीटमेन्ट फाइनली बंद करने से पहले डॉ व्यास से पूछ लेगे।”
” यह ठीक होगा।”

एक वर्ष पूरा हो गया। अम्बिका ने डॉ व्यास के प्रति निरपेक्ष हो जाने की बहुत कोशिश की, पर अब चीजे उसके हाथ में नहीं रही। उसने पाया, न चाहते हुए भी वह रुचि के साथ तैयार हो रही है। गुलाबी फूलों वाली साडी और हल्के मेकअप में उसकी त्वचा गुलाबी दिख रही है। जाने से पहले श्रीनिकेत आ टपका।

” श्रीनिकेत तुम भी चलो।” केशव ने प्रस्ताव रखा।
” चल पडूंगा। व्यास से मिलना अच्छा लगता है। आज इतवार है फोन पर पूछ लेते है, वह घर पर है या नहीं?

श्रीनिकेत ने कहा तो केशव ने उसे कॉर्डलेस पकडा दिया। श्रीनिकेत और डॉ व्यास की लंबी बात हुई। बात समाप्त कर श्रीनिकेत, केशव से कहने लगा –

” बिना गए ही काम बन गया, व्यास कह रहा है, दवा बंद कर दे, दिखाने की जरूरत नहीं है।”

अम्बिका शुरुआत के पूर्व अंत हो जाने के आघात से निसहाय हो उठी। तो क्या डॉ व्यास कभी मुझसे प्रभावित नहीं रहें? जाकी रही भावना जैसी के सुरूर मे मैं ही उनकी आंखो में चमक, चेहरे में उत्साह, स्वर में आह्लाद ढूंढती रही? हे भगवान क्या ये ही सच है? अंतिम सत्य? उसने गहरी असहायता में खुद को ईश्वर के भरोसे छोड दिया। शिकायत के तौर पर बोली –

” डॉ व्यास हमें टाल रहे है। उन्हे हम फीस नहीं देते और डॉक्टर्स अब बहुत प्रोफेशनल हो गए है।”
केशव ने हस्तक्षेप किया – ” फीस हमने दी थी, उन्होने नहीं ली।”
” बेकार बात, तुम लोग व्यास से मेरे नजदीकी संबंध को समझ नहीं रहे हो। वह मेरे मामले में पैसे की बात सोच नहीं सकता। उसने आवश्यकता नहीं समझी होगी इसलिए रोक दिया। और फिर जो बात फोन पर हुई वही वहां होती।”
श्रीनिकेत ने अम्बिका और केशव की बात का जोरदार खंडन किया।

अम्बिका ने सुलगती दृष्टि से श्रीनिकेत को निहारा – मैं आत्मवध की सी निराशाजन्य वेदना से जूझरही हूं और यह चंडाल डॉ व्यास के पक्ष मे दलीले देने बैठा है।

” ठीक है। फीस न लेना डॉ व्यास का बडप्पन है। हमें भी बडप्पन दिखाते हुए उन्हे कुछ गिफ्ट देना चाहिए।”
अम्बिका आशाओं से रिक्त हो जाने को तैयार नहीं।
” ये बात अपील करती है। दीपावली आने को है। त्योहार के बहाने हम उन्हे मिठाई और गिफ्ट दे सकते है।” केशव सहमत हो गया।
” तुम लोग जैसा ठीक समझों।” श्रीनिकेत ने फिर हस्तक्षेप नहीं किया।

अम्बिका दीपावली की खरीदारी के लिए बाजार गई। तमाम आवश्यक वस्तुओं के साथ उसने डॉ व्यास के लिए कीमती रिस्ट वॉच खरीदी। फांसी पर चढाए जाने वाले मुजरिम की भी अंतिम इच्छा पूरी की जाती है, उसे विश्वास है डॉ व्यास यह तुच्छ भेंट स्वीकार कर लेगें।

दीपावली के दूसरे दिन श्रीनिकेत त्योहार की शुभकामनाएं देने आया। केशव ने पूछा –

” तो फिर डॉ व्यास के घर कब चलना है?”
अम्बिका खिन्न र्हुई श्रीनिकेत साथ में हो ही जरूरी है?
” अच्छा अच्छा, गिफ्ट देना है? क्या दे रहे हो भाई?”
श्रीनिकेत तनिक उत्साहित हुआ।
” रिस्ट वॉच।”
” व्यास दीपावली पर बच्चों के पास इटारसी न चला गया हो? फोन पर पता करुं?”
फिर फोन। यह टेलीफोन इजाद न होता तो अम्बिका सुखी होती।
” हां, यह ठीक होगा।” केशव बोला।
डॉ व्यास फोन पर है। अम्बिका के प्राण लौटे।
” व्यास तुम दीपावली पर इटारसी नही गए?”
” ”
” अच्छा मैं कल तुम्हारे घर आना चाहता हूं, केशव और अम्बिका भाभी साथ होगी  तबियत ठीक है बस यूं ही क्यों क्या वे लोग आत्मीयता बतौर तुम्हे कुछ गिफ्ट देना चाहते है।”
””
” जरूरत नहीं है पर तुम फीस लेते नहीं हो, केशव को संकोच होता है।”

बात नहीं बनेगी क्या? अम्बिका आतंकित हो गई। डॉ व्यास क्या कह रहे है? वह आवेशित सी उठी और शयन कक्ष में जाकर पैरेलल लाइन पर वार्ता सुनने लगी। वह खुद को रोक नहीं पा रही है।

” कैसा संकोच श्रीनिकेत? न जाने कितने घूसखोर अधिकारी है जिन्हे उनके घर जाकर बिना फीस के देखना पडता है फिर ये लोग तो तुम्हारे मित्र है। फीस? यह तो कोई बात नहीं हुई।”

अम्बिका जैसे युगों बाद डॉ व्यास सुनरही है।

” मैं समझता हूं पर ये बेवकूफ केशव समझे तब न।” श्रीनिकेत का ठहाका गूंजा।
” ये लोग मुझे परेशानी में डालेंगे।”
” परेशानी में तो तुमने इन लोगो को डाल रखा है। अम्बिका भाभी ने जब भी रूटीन चेकअप करने के लिए आना चाहा तुमने टाल दिया। कभी गई तो तुमने ठीक से न देखकर कह दिया, दवा कन्टीन्यू रखे। पेशेन्ट मानसिक रूप से कमजोर हो जाते है, इसलिए भावुक भी। सोचने लगते है, डॉक्टर लापरवाही बरत रहा है। आखिर उसे फीस नहीं मिल रही है।”
” ओ गॉड दरअसल…दरअसल श्रीनिकेत तुमसे कहूं न कहूं दरअसल यह लेडी मुझे अपनी ओर खींचती है। आकर्षित करती है। और यह सब ठीक नहीं। हम समाज में रहते है। वाइफ है, बच्चे है एक  बार  जब यह लेडी घर आई तो मेरी वाइफ आई हुई थी अब फोन पर क्या कहूं फिर कभी तुमसे बात करूंगा।
” क्या बेवकूफी है?”
” मै हैरान हूं। कभी शो हो जाएगा तो पुराणिक जी पता नहीं क्या रिऐक्ट करेंगे अम्बिका जी तो शायद मुझे संदिग्ध समझ कर गाली देंगी। प्लीज तुम उन्हे रोक देना, गिफ्ट देकर मुझे संकोच में न डालें।”
” देखता हूं।”

डॉ व्यास ने रिसीवर रख दिया। स्वर गुम हो गया। अम्बिका बढ ग़ई हृदय गति को संभालते हुए बहुत आहिस्ता से बिछावन पर बैठ गई। जैसे डर हो, कोई बहुत नरम कोमल अहसास बहुत मामूली धक्के से ही क्षतिग्रस्त हो जाएगा। सब कुछ अप्रत्याशित है। अद्भुत! उसे एकाएक बहुत बडी ख़ुशी हस्तगत हो गई है। खुशी का प्रभाव इतना घनीभूत है कि उसकी कनपटियां तपने लगी। सारी कामनाएं पूर्ण हुई। जो चाहा सिध्द हुआ। वह सफल है। विजेता है। ठीक है, डॉ व्यास। हमारे सामने समाज और सामाजिक संबंध खडे है, पर मै आपसे भावनात्मक संबंध तो रख सकती हूं। आपको पा नहीं सकती, छू नहीं सकती हूं, महसूस तो कर सकती हूं। प्लीज मत रोकिए, यह मेरी जीवन शक्ति है। जीवन राग। अब इस रिस्ट वॉच का क्या होगा?

आश्चर्य ही कह ले, उसे केशव स्मरण हो आया। वह रिस्ट वॉच केशव को दे देगी – दीपावली पर दुनिया के सबसे अच्छे आदमी को छोटी सी भेंट। केशव कहेर्गा मुझे तो अपनी पुरानी घडी प्रिय है। जब मैं कॉलेज में आया था तब पिताजी ने दी थी। उनकी याद में ये घडी हमेशा मेरे हाथ मे बंधी रहनी चाहिए। तब वह कहेगी – घडी तो बदलनी पडेग़ी। और ये याद वाली बात है तो यह जो हमारा दिल है, यादों के संग्रह के लिए बहुत सुरक्षित जगह है। यादों को इसमें रख दो, सुरक्षित रहेगी।

यह सोचते हुए अम्बिका ने विजेता के अंदाज में कंधे सतर किए, गर्दन को जुम्बिश दी और केशव के पास कला कक्ष में न जाकर चाय बनाने के लिए किचन में चली गई। यह उसकी निजी खुशी है। निजी मामला है, निजी क्षण है जिन्हे वह अकेले अपने तरह से जीन चाहती है। वह इस समय अपने आस पास किसी को भी, डॉ व्यास को भी नहीं चाहती। उसे डर है किसी की उपस्थिती में वह इन क्षणों को खूब अच्छी तरह नहीं जी सकेगी।

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