रेत की किताब

अनुवाद : मनीषा कुलश्रेष्ठ

रेखा का निर्माण अनन्त बिन्दुओं से होता हैऌ अनंत रेखाओं से एक तलऌ अनंत तलों से मिलकर एक आयतन बनता है, अनंत आयतनों से एक परा – आयतन बनता है। … ना, बिला शक यह कोई रेखागणितीय मामला नहीं है — यह मेरी कहानी आरंभ करने का एक बेहतरीन तरीका है। यह दावा करना कि यह हकीकत है, किसी भी बनायी गयी कहानी को आरंभ करने की परंपरा सी बन गई है। लेकिन मेरी, फिर भी सच्ची है।

मैं ब्यूनस आयरस में बेलग्रानो स्ट्रीट में चौथी मंजिल पर स्थित अपार्टमेन्ट में अकेला रहता हूँ। कुछ महीने पहले, एक दिन देर शाम को मैं ने अपने दरवाज़े पर एक थपथपाहट सुनी। मैं ने दरवाज़ा खोला तो एक अजनबी वहां खड़ा था। वह एक लम्बा व्यक्ति था, जिसके नाक नक्शे का कोई खास वर्णन नहीं किया जा सकता— या हो सकता है कि वह मेरा निकट दृष्टि दोष रहा हो जिससे मुझे ऐसा लगा। उसने सलेटी कपड़े पहने थे और सलेटी ही सूटकेस अपने हाथों में थाम रखा था, उसके चेहरे से उसकी थाह पाना कठिन था। उसे देखते ही मैं ने जान लिया कि वह एक विदेशी था। पहले वह मुझे बूढ़े जैसा लगा, केवल बाद में ही मुझे पता चला कि उसके पतले, हल्के भूरे बालों की वजह से यह गलतफहमी हुई थी, वे कुछ कुछ स्कैण्डनेविया के निवासियों के से थे, एकदम सफेद। हमारी बातचीत के दौरान, जो कि एक घण्टे भी नहीं चली थी, मुझे पता चल गया था कि वह ऑर्कनीज़ से आया था। मैं ने उसे अन्दर आमंत्रित किया, एक कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए। वह बोलने से पहला थोड़ा रुका। उसकी तरफ से एक उदासीनता विसर्जित हुई — जैसी कि अभी मुझसे हो रही है।
“ मैं बाइबिल बेचता हूँ।” उसने कहा।
कुछ – कुछ पाण्डित्य का दिखावा सा करते हुए, मैं ने उत्तर दिया, “ इस घर में कई अंग्रेजी बाइबिल हैं, सबसे पहली – जॉन विक्लिफ वाली के समेत। मेरे पास किप्रियानो डी वेलेरा की भी है। लूथर की भी है — जो कि साहित्यिक नज़रिये से सबसे बेकार है — और वल्गेट की लातिनी प्रति भी है। जैसा कि तुम देख रहे हो, मुझे बाइबिल की कोई ज़रूरत नहीं है।”

खामोशी के कुछ पलों के बाद, वह बोला, “ मैं केवल बाइबिल ही नहीं बेचता। मैं आपको एक पवित्र पुस्तक दिखा सकता हूँ जो मुझे बीकानेर के बाहरी इलाकों से मिली है। यह शायद आपको रुचिकर लगे।”
उसने सूटकेस खोला और एक किताब निकाल कर मेज़ पर रखी। यह एक अष्टांगीय ग्रंथ था, कपड़े की जिल्द बंधा। इसमें कोई शक नहीं था कि यह कई हाथों से गुज़र कर आया था। उसे परखते हुए, मैं उसके असामान्य वज़न से चकित था। उसकी पीछे की ओर पर ‘ होली रिट ’ लिखा था, और उसके नीचे, “ बॉम्बे ”।
“ संभवतया उन्नीसवीं शताब्दी की, ” मैं ने टिप्पणी जड़ी।
“ मुझे नहीं पता,” वह बोला, “मैं ने कभी पता नहीं किया।”

मैं ने पुस्तक एकाएक खोली। उसकी लिपी मेरे लिये अनजानी थी। उसके पृष्ठ घिसेपिटे, मुद्रण के हिसाब से बहुत ही खराब से थे , वे दो कॉलमों में बाइबिल की तरह बंटे थे। उसका मूलपाठ बहत पास पास छपा हुआ था और श्लोकों की तरह क्रमबद्ध था। पृष्ठों के ऊपरी कोने में अरबी अंक डले हुए थे। मैं ने ध्यान दिया कि एक बांयी तरफ का पृष्ठह्यमान लो कि (40,514 और दांयी तरफ का पृष्ठ पर 999 संख्या वाला था। मैं ने पन्ना पलटा) उस पर आठ अंकों की संख्या अंकित थी। इस पर संक्षिप्त विवरण भी था, जैसे कि शब्दकोशों में हुआ करता है — कलम और स्याही से एक लंगर बना हुआ था, जो कि किसी स्कूली छोकरे के बेतरतीब हाथों का बना लगता था।

उस क्षण वह अजनबी बोला, “ चित्र की बारीकियों को ध्यान से देखो, इसे तुम दुबारा नहीं देख सकोगे।”
मैं ने वह जगह ध्यान से देखी और किताब बन्द करदी। उसी वक्त, मैं ने किताब दुबारा खोली। पन्ना दर पन्ना, मैं ने वह लंगर का चित्र ढूंढना चाहा था, मगर सब व्यर्थ। “यह किसी भारतीय भाषा के धर्मग्रन्थ संस्करण मालूम होता है। है ना!” मैं ने अपनी हताशा छिपाने के लिये कहा।
“ नहीं।” उसने जवाब दिया। जैसे कि वह फिर कोई रहस्य छिपाना चाह रहा हो उसने अपनी आवाज़ धीमी कर ली, “ मैं ने यह पुस्तक मैदानी इलाके के एक शहर से महज मुट्ठी भर रूपयों और एक बाइबिल के बदले में प्राप्त की है। इसका मालिक पढ़ना ही नहीं जानता था। मुझे शक था कि वह इस विलक्षण किताब को एक रक्षा कवच की तरह देखता था। वह सबसे नीची जाति का थाऌ उसके जैसे दूसरी नीची जाति लोगों के अलावा अन्य कोई भी उसकी परछांई से भी संक्रमित हुए बिना नहीं रह सकता था। उसने मुझे बताया कि उसकी यह किताब ‘ रेत की किताब’ के नाम से जानी जाती थी, क्योंकि न तो रेत का और न ही इस किताब का कोई आदि और कोई अन्त नहीं होता।
उस अजनबी ने मुझसे उस पुस्तक का पहला पृष्ठ निकालने को कहा।
मैं ने अपना बायां हाथ उस पुस्तक के आवरण पर रखा और अपना अंगूठा पुस्तक के पहले पन्ने पर रखा, मैं ने किताब खोली। यह व्यर्थ रहा। मैं ने कोशिश की पर हर बार बहुत सारे पन्ने मेरे अंगूठे और आवरण के बीच आ गये। ऐसा लग रहा था मानो कि ये किताब में से उगते ही चले आ रहे हों।
“अच्छा अब अंतिम पन्ना निकालो।”
मैं फिर असफल रहा। ऐसी आवाज़ में जो कि मेरी सी नहीं थी, मैं बामुश्किल हकलाया, “ यह नहीं हो सकता।”
अब भी धीमी आवाज़ रखते हुए वह अजनबी बोला, “ यह नहीं हो सकता, मगर है। इस पुस्तक के पन्ने अन्ांत से न तो ज्यादा है न हीे कम । कोई भी पहला पन्ना नहीं और कोई भी आखिरी नहीं। मुझे नहीं पता कि क्यों उन्होंने इस ऊटपटांग तरीके से इन पर क्रम संख्या डाली है। शायद यह सुझाने के लिये कि अनंत संख्या – श्रेणियों में भीे पदों की कोई भी संख्या हो सकती है।

फिर, जैसे कि वह गंभीर सोच में हो, वह बोला, “अगर अन्तरिक्ष अनन्त है, तो हम इसमें किसी भी बिन्दु पर हो सकते हैं, अगर समय अनन्त है, तो हम समय के किसी भी छोर पर हो सकते हैं।”

“ हां, मैं एक प्रधान पादरी द्वारा शासित संघ से हूँ। मेरी अन्तर्रात्मा साफ है। मैं तकरीबन निश्चिंत हूँ कि मैं ने उस नागरिक को धोखा नहीं दिया है, जब मैं ने उसे उसकी शैतानी किताब के बदले में
‘ईश्वर के पवित्र शब्द’ दिये।”

मैं ने उसे आश्वस्त किया कि उसे स्वयं को धिक्कारने की आवश्यकता नहीं है, और फिर मैं ने पूछा कि वह यहां से होकर गुज़र रहा था क्या? उसने बताया कि वह कुछ ही दिनों में अपने देश लौटने की सोच रहा हैै। तब मुझे समझ आया कि वह ऑर्केनी आयलैण्ड एक स्कॉटलैण्डवासी था। मैं ने उसे बताया कि मुझे स्कॉटलैण्ड के प्रति एक खास निजी आकर्षण रहा है, मेरे स्टीवेन्सन और ह्यूम के प्रति प्रेम के चलते।
“ तुम्हारा मतलब स्टीवेन्सन और रॉवी बन्र्स,” उसने सुधारा।

जब हम बतिया रहे थे, मैं उस अनंत पुस्तक का अन्वेषण करता रहा, एक बनावटी उदासीनता के साथ। मैं ने उससे पूछा, “ क्या तुम इस जिज्ञासा भरी चीज़ को ब्रिटिश म्यूज़ियम में देने का इरादा रखते हो?
“ नहीं, मैं इसे तुम्हें पेश कर रहा हूँ।” उसने कहा और उसने अपेक्षाकृत एक बड़ी राशि का अनुबंध रखा।
मैं ने अपनी पूर्ण सत्यता के साथ उसे उत्तर दिया कि इतना पैसा देना मेरी औकात से बाहर की बात है, और मैं ने सोचना शुरु कर दिया। एक या दो मिनट के बाद मुझे एक योजना सूझी।
“ मैं एक अदला – बदली का सौदा रखता हूँ।” मैं ने कहा, “ तुम्हें यह किताब मुट्ठीभर रूपयों और बाइबिल की एक प्रति के बदले मिली। मैं अपनी पेन्शन के चैक की राशि जो मैं ने अभी निकलवाई है और मेरी काले अक्षरों वाली विक्लिफ बाइबल तुम्हें देता हूँ। यह मुझे अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है।”
“काले अक्षरों वाली विक्लिफ बाइबल!” वह बुदबुदाया।

मैं अपने शयनकक्ष में गया और उसके लिये पैसा और किताब लेकर आया। उसने पन्ने पलटे और एक सच्चे पुस्तक प्रेमी की उत्सुकता के साथ मुखपृष्ठ का अध्ययन किया।
“ तो यह सौदा पूरा हुआ।” उसने कहा।

इस बात ने मुझे विस्मित किया कि उसने कोई मोल – भाव नहीं किया। केवल बाद में मुझे यह अहसास हुआ कि वह मेरे घर में यह तय करके घुसा था कि वह किताब बेच कर ही रहेगा। रूपयो को बिना गिने उसने अन्दर रख लिया।

हमने भारत के बारे में बातें की, ऑर्केनी के बारे में, और नार्वेजियन जाल्र्स के बारे में भी, जिन्होंने उस पर कभी शासन किया था। जब वह आदमी गया तब रात हो चुकी थी। मैं ने उसे फिर कभी नहीं देखा, न ही मैं उसका नाम जानता था।

मैं ने अपनी किताबों की अलमारी में विक्लिफ के हटने से खाली हुई जगह पर ‘ रेत की किताब’ को रखने की सोचा, फिर अन्त में मैं निश्चय किया कि मैं इसे ‘थाउजेण्ड एण्ड वन नाइट’ के खण्डों के अधूरे सेट के पीछे छिपा कर रखूं। मैं बिस्तर पर जा लेटा मगर सोया नहीं। सुबह के तीन या चार बजे, मैं ने बत्ती जला दी। उस असंभव सी किताब को उतारा और उसके पन्ने पलटने लगा। उनमें से एक पर मैं ने एक मुखौटा उकेरा हुआ देखा। उस पृष्ठ के ऊपरी कोने पर एक संख्या डली हुई थी, मुझे वह संख्या तो अब याद नहीं, पर वह दस की नवीं घात के गुणज में थी।

मैं ने अपना यह खज़ाना किसी को नहीं दिखाया। इसके मालिक होने के सौभाग्य में उसके चुराये जाने का डर भी शामिल हो गया था, और फिर यह आशंका कि हो सकता है कि यह वास्तव में अनन्त न निकले। इन जुड़वां पूर्वधारणाओं ने मेरे पुराने मानवद्वेषी स्वभाव को घनीभूत कर दिया। मेरे कुछ ही दोस्त बचे रह गये थेऌ अब मैं ने उनसे भी मिलना बन्द कर दिया था। मैं किताब का कैदी बन कर रह गया था, तब मैं लगभग कभी बाहर निकला ही नहीं। किताब की घिसी पिटी रीढ़ और आवरण को मैग्नीफाइंग ग्लास से पढ़ने के बाद, मैं ने किसी किस्म के कपट भरे सौदे की संभावनाओं को नकार दिया था। मैं ने तस्दीक किया कि संक्षिप्त विवरण दो हज़ार पृष्ठों में फैले थे। मैं उन्हें वर्णक्रम के अनुसार पुस्तिका में सूचीबद्ध करने के लिये बैठा, मैं जानता था पुस्तिका पूरी भरने में ज्यादा देर नही लगेगी। किसी भी एक विवरण को एक बार भी दोहराया नहीं गया था। रात के लघु अंतरालों में मेरे अनिद्रा रोग ने मुझे बख्श दिया, और मैं किताब के सपनों में खो गया।

गर्मियां आईं और चली गईं, और मैं ने महसूस किया कि किताब विराट थी। इससे मेरे साथ अच्छा तो यह हुआ कि मैं, जिसने कि इस खण्ड को अपनी आंखों से देखा, और सोचा, कि वह जिसने इसे मेरे हाथ सौंपा, वो क्या कम विराट था? मैं ने महसूस किया कि यह पुस्तक भयावने सपनों की कोई वस्तु थी, एक अश्लील चीज़ जिसने कि वास्तविकता को ही खुलेआम कलंकित कर दिया था।

मैं ने इसे आग में झौंकने की सोचा, लेकिन मुझे डर था कि इस अनन्त पुस्तक का जलना भी इसकी तरह अनन्त सिद्ध न हो जाये और पूरे ग्रह का धुंए से दम न घोट दे। तभी मुझे याद आया कि कहीं पर मैं ने पढ़ा था कि एक पत्ती को छिपाने के लिये सबसे अच्छी जगह जंगल होती है।

अपनी सेवानिवृत्ति से पहले मैं मैक्सिको स्ट्रीट पर स्थित अर्जेन्टाइन राष्ट्रीय पुस्तकालय में काम करता था, जिसमें नौ सो हज़ार पुस्तकें थीं। मंै जानता था कि प्रवेशद्वार के बिलकुल दायीं और कुछ घुमावदार सीढ़ियां थीं जो नीचे तलघर की ओर जाती थीं, जहां पर पुस्तकें, नक्शे और पत्रिकाएं आदि रखी रहती थीं। एक दिन मैं वहां गया, और वहां के एक कर्मचारी से बचता – बचाता हुआ, बिना यह ध्यान दिये कि दरवाजे से कितनी दूर और कितनी ऊंचाई पर और तलघर की किस सीलन भरी शेल्फ में मैं उस किताब को छोड़ आया।

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