• प्रेम जनमेजय
  • , Uttar Pradesh
  • जन्मदिवस: 18/03/1949

    वर्तमान दौर की सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य विधा के संवर्धन एवं सृजन के क्षेत्र में प्रेम जनमेजय का विशिष्ट स्थान है।  प्रेम जनमेजय के व्यंग्य -लेखन को हिंदी साहित्य के सभी महत्वपूर्ण रचनाकारों एवं आलोचकों ने सराहा है ।व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय ने पिछले लगभग दो दशक से से ‘व्यंग्य यात्रा ‘के सम्पादन द्वारा व्यंग्य विमर्श का एक सुदृढ़ मंच तैयार किया है।  हिंदी व्यंग्य नाटक की रेतीली जमीन को इन्होंने अपने तीन व्यंग्य नाटकों द्वारा उर्वर किया है। अनेक पत्रिकाओं ने इन पर  एकाग्र प्रकाशित किए हैं। मुम्बई, गुजरात, चेन्नई केंद्रिय विश्वविद्यालय आदि विश्विद्यालयों के पाठ्यक्रम में इनकी रचनाएँ सम्मिलित हुई हैं।बर्दमान विश्विद्यालय, दक्षिण हिंदी प्रचार सभा,उच्च शिक्षा विभाग मद्रास,पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, जीवाजी विश्विद्यालय ग्वालियर आदि में शोध हो चुके हैं/हो रहे हैं।

   लगभग चार वर्ष तक ‘यूनिवर्सिटी आफ वेस्ट इंडीज’ में अतिथि आचार्य के रूप में कार्य करते हुए प्रेम जनमेजय ने त्रिनिदाद में सांस्कृतिक और भाषाई स्तर पर भी महत्वपूर्ण कार्य किए। भोपाल में आयेजित 10 वें विश्व हिंदी सम्मेलन के , ‘विदेशो में हिंदी’ सत्र की अध्यक्षता करने के साथ मारिशस में आयेजित 11 वे विश्व हिंदी सम्मेलन के प्रवासी भारतीय वाले सत्र में बीज वक्तव्य दिया था। इसके अतिरिक्त लंदन में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में दक्षिण अपफ्रीका, यू के, न्यू यार्क आदि में आयोजित संगोष्ठियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रेम जनमेजय ने भारतीय संस्कृतिक संबंध परिषद् की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘ गगनांचल ’ के संपादन के अतिरिक्त ‘हरि गंधा’ ‘ व्यंग्य विविधा’ जैसी अनेक पत्रिकाओं के अतिथि संपादक की भूमिका निभाई है।

   पिछले 20 वर्षों से, प्रेम जनमेजय के संपादन में निरंतर प्रकाशित हो रही‘ व्यंग्य यात्रा ’ को अनेक साहित्यिक पत्रकारिता सम्म्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। जैसे– माधवराव सप्रे साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान  पं0बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान 2013, हिंदुस्तान प्रचार सभा मुंबई का साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, ‘स्पंदन सम्मान’ , साहित्य मंडल श्रीनाथद्वारा सम्मान आदि।

प्रेम जनमेजय का पहला संकलन ‘राजधानी  में गंवार’ बहुत चर्चित रहा।

प्रकाशित कृतियों की संख्या : 47

लेखन की विधा: व्यंग्य, नाटक,  संस्मरण ,प्रवासी साहित्य ,  बाल  – साहित्य, नव -साक्षरों के लिए, संपादन 

व्यंग्य संकलन: 

राजधानी में गंवार, बेर्शममेव जयते, हंसो हंसो यार हंसो, भ्रष्टाचार के सैनिक  आदि 

व्यंग्य नाटक:

 तीन  व्यंग्य नाटक  व्यंग्य , क्यूं चुप तेरी महफल में है ।    

संस्मरण: इर्दम गिर्दम अहं स्मरामि, स्मृतियन के घाट पर जनमेजय चंदन घिसें   

कहानी: तीसरी प्रेमिका 

कविता: मेरी नादान काव्याभिव्यक्तियां

आलोचना  : आजादी के बाद का हिंदी गद्य व्यंग्य, प्रसाद के नाटको में हास्य व्यंग्य, हिंदी का राष्ट्र : राष्ट्र की हिंदी, श्रीलाल शुक्ल  आदि 

बाल साहित्य शहद की चोरी , अगर ऐसा होता ,नल्लू राम                                                               

संपादन धर्मवीर भारती :धर्मयुग के झरोखे से,नरेंद्र कोहली एक मूल्यांकन , बींसवीं शताब्दी उत्कृष्ट साहित्य, हिंदी व्यंग्य की धार्मिक पुस्तक: परसाई, शरद जोशी: हिंदी व्यंग्य का नाविक आदि

नव साक्षरों के लिए:हुड़क, मोबाईल देवता आदि

   सम्मान: बीबी

प्रेम जनमेजय व्यंग्य विधा को केंद्रित लगभग सभी सम्मानों से सम्मानित हो चुके हैं। मुख्य हैं — हरिशंकर परसाई स्मृति सम्मान, शरद जोशी सम्मान, व्यंग्यश्री  सम्मान, माध्यम ’ पं0 श्रीनारायण चतुर्वेदी सम्मान शिखर  अट्टहास -सम्मान, कमला गोइन्का व्यंग्यभूषण सम्मान, दुष्यंत कमार  अलकरण ‘नई धारा’ 2015 रचना सम्मान आदि

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